सोमवार, 6 जून 2011

ज़िंदगी और असमानंतर रेखाएं


अक्सर 
रेल कि पटरियों को
देखते हुए
सोचती हूँ
रेल
कितनी सुगमता से
भागती है इन
समानांतर  रेखाओं पर
और पहुँच जाती  है
अपने गंतव्य पर
लेकिन ज़िंदगी की
गाड़ी के लिए
न तो समानांतर
पटरियां हैं
और न ही
निश्चित व्यास लिए
पहिये ही ..
वक्त ज़रूरत पर
गाड़ी स्वयं ही
संतुलित करती है
अपने पहियों को
और दौड जाती है
बिना पटरियों के भी .
ज़िंदगी भी तो
अपना गंतव्य
पा ही जाती है ....



संगीता स्वरुप

19 टिप्‍पणियां:

  1. खूबसूरत कविता... रेखों के बहाने रिश्तों का चित्रण...

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  2. एक फर्क है.
    ज़िन्दगी अपनी बुद्धि से दौड़ती है और रेल दूसरे की बुद्धि से.

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  3. जिन्‍दगी की दोनों पटरियां पति और पत्‍नी है तथा इनकी रेल है बच्‍चे। बच्‍चों के सहारे से ही इनके मध्‍य पुल का निर्माण होता है और दौड़ पड़ती है रेल के साथ पटरियां भी।

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  4. ज़िंदगी भी तो
    अपना गंतव्य
    पा ही जाती है ....


    वाह ...रेल से प्रेरणा पाती ज़िन्दगी की गाड़ी .....!!
    बहुत सुंदर रचना ...!!

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  5. रेल की पटरियों का उपमान ज़िंदगी में समरसता और समानता का प्रतीक दिखाकर अच्छा संदेश दिया है।

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  6. बिना पटरियों के भी .
    ज़िंदगी भी तो
    अपना गंतव्य
    पा ही जाती है ....bahut sare hausle jaga gai...

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  7. ज़िंदगी को दौड़ाने के लिए रेल की पटरियाँ!
    --
    वाह! कितनी अनूठी कल्पना है!

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  8. यही ज़िन्दगी का सच है……………सुन्दर रचना।

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  9. ज़िन्दगी में भी तो समानान्तरता विद्यमान है .उसी का होना गति को यथावत् रखता है ,वह भंग हुई कि हुआ एक्सीडेन्ट!

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  10. रेल और जीवन की तुलना कुछ हद तक सही ही है, लेकिन जिन्दगी की गाड़ी कभी समान और कभी समान रास्तों और पहियों के साथ इसी लिए चलती रहती है क्योंकि जिन्दगी में जीवित अहसास और भावनाएं है , वे झुकाना , मुड़ना और खुद को समायोजित करना भी जानती हैं . तभी सफल है और रेल को सब कुछ बना बनाया मिलता है .

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  11. बात तो ठीक ही है.रेल को दौड़ने के लिए पटरियां ,पहिये ,इंजन चालक आदि चाहिए होते हैं. और जिंदगी की गाड़ी भी कई साधनों और माध्यमों पर टिकी होती है.
    बहुत सुन्दर रचना.

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  12. बेहतरीन अभिव्यक्ति. जीवन जीने की प्रेरणा देती

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  13. सार्थक अभिव्यक्ति ! लेकिन कभी कभी इस गंतव्य तक पहुँचने के लिये सारा जीवन छोटा क्यों लगने लगता है ! बहुत ही सुन्दर रचना !

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  14. जिंदगी असमांतर रेखाओं की वजह से ही रुचिकर बनी हुई है!...सीधी सपाट रेल गाडी की तरह भागने वाली जिंदगी शायद बोरियत ही पैदा करती!..आपने बहुत सुंदर विषय चुना है..सुंदर कविता, धन्यवाद!

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  15. ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में यही चिन्ता सर्वोपरि रहती है कि किसी तरह ज़िन्दगी की गाड़ी पटरी पर रहे।

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  16. रेल की पटरी और जिंदगी, सर्पीले मोड़ो से सावधानी से गुजर जाए तो अच्छा .

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  17. शानदार प्रस्तुति - हार्दिक बधाई

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  18. और दौड जाती है
    बिना पटरियों के भी .
    ज़िंदगी भी तो
    अपना गंतव्य
    पा ही जाती है ......haan ekdam theek kaha.

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