मंगलवार, 22 जनवरी 2013

प्रेरक प्रसंग-40 :: यह गाजा-बाजा किसलिए?

प्रेरक प्रसंग-40

यह गाजा-बाजा किसलिए?

1930 के अप्रैल के महीने की बात है। गांधी जी के नेतृत्व में दाण्डी कूच (नमक सत्याग्रह) पूरा हो चुका था और अब खजूर का पेड़ काटने का सत्याग्रह चल रहा था। कराडी नामक गांव में पड़ाव था। एक छोटी सी झोपड़ी में गांधी जी रहते थे। एक दिन सुबह-सुबह गांव वालों ने बड़ा जुलूस निकाला। जुलूस में महिलाएं भी थीं। बाजे बज रहे थे। पुरुषों के हाथ में फल, फूल, पैसे थे। गांधी जी ने सोचा ये कैसा जुलूस है? ये सारे लोग क्या सत्याग्रह करने जा रहे हैं? गांधी जी झोपड़ी से बाहर निकले। तभी उनकी जय-जयकार होने लगी। उन लोगों ने गांधी जी को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया और अपना उपहार गांधी जी के चरणों में समर्पित कर दिया।

गांधी जी ने पूछा, “कैसे आए? यह गाजा-बाजा किसलिए?”

जुलूस के नेता ने कहा, “महात्मा जी, हमारे गांव में हमेशा पानी का अकाल रहता है। गर्मी के दिन आते ही कुएं सूख जाते हैं। पानी की बड़ी किल्लत रहती है। लेकिन यह बड़े आश्चर्य की बात है कि हमारे गांव में आपके चरण पड़ते ही सारे कुओं में पानी भर आया है। यह देख आपके प्रति हमारे हृदय भक्ति भाव से भर आए हैं।”

गांधी जी ने कठोरता और नाराजगी से कहा, “तुम लोग पागल हो। मेरे आने का और इस पानी का क्या संबंध है? ईश्वर पर मेरा अधिकार थोड़े ही है? उसके पास आपकी वाणी का जो मूल्य है, उतना ही मेरी वाणी का है।”

कुछ क्षण रुककर गांधी जी ने कहा, “यह देखो, पेड़ पर कौआ बैठने और पेड़ टूटने का संयोग हो आए तो क्या यह कहोगे कि कौए ने पेड़ तोड़ दिया? और भी कई कारण होते हैं। तुम्हारे कुएं में पानी आया, पृथ्वी के गर्भ में कुछ भी उथल-पुथल हुई होगी और नया झरना फूटा होगा। व्यर्थ में बाल-कल्पना न करो। तुम सबके सब लोग पहले सूत कातने लगो। भारत मां को कपड़ा चाहिए न?”

सारे लोग प्रणाम करके चले गए। गांधी जी खजूर का पेड़ काटने के सत्याग्रह में लग गए।

सोमवार, 21 जनवरी 2013

मधुशाला .... भाग 16 / हरिवंश राय बच्चन

जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 

मधुशाला ..... भाग ---16

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।

यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं कवि  का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।१३२। 

कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।१३३।

विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४।

बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।

मधुशाला  के स्वर्ण जयंती वर्ष पर रचित नयी रुबाईयाँ --- रचनाकाल - 1985 
घिस जाता पड़ कालचक्र में, हर खाकी जामा वाला , 
पर अपवाद बनी बैठी है , मेरी यह साकीबाला , 
जितनी मेरी उम्र वृद्ध में उससे ज्यादा लगता हूँ 
अर्धशती की हो कर के भी षोडश वर्षी मधुशाला । 

गली - गली की खाक छानता, फिरा कभी यह मतवाला , 
लिए हाथ में टूटा - फूटा छूंछा मिट्टी का प्याला 
किसी कीमिया से मिट्टी से उसने वह मधुरस खींचा 
आज स्वर्ण की सीढ़ी पर चढ़ शीश उठाती मधुशाला । 

पाँच दशक पहले हिन्दी के गढ़ का तोड़ जटिल ताला 
मिट्टी के घट प्याले ले कर निकला था यह मतवाला ,
सुख दुख की रसरंजित मदिरा उसने ऐसी बरसाई 
मरुस्थली कविता थी तब की, अब कविता की मधुशाला । 

देश दुश्मनों ने जब हम में जहर फूट का था डाला 
भूल गए जो तब टूटी थी लाखों प्यालों की माला ? 
सीख सबक उस कटु अनुभव से अब हमने है क़स्द लिया - 
फिर न बंटेंगे पीने वाले फिर न बंटेगी मधुशाला । 
 
परिशिष्ट  से

स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,
स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,
पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,
स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।

मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,
मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,
मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।

बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,
बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,
पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही
और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।

पित्र पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी
तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।

समाप्त 




सोमवार, 14 जनवरी 2013

मधुशाला ... भाग - 15 / हरिवंश राय बच्चन

जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 

मधुशाला ..... भाग ---15


वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला, 

जिसमें मैं बिंबित - प्रतिबिम्बित  प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।



मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।



मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३।



कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ  गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।



अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला, 
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर  पाया -
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।



'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'
'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित  जी
'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।



कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।



जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रसिक , उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।



जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।



हर जिह्वा  पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।

क्रमश: 



सोमवार, 7 जनवरी 2013

मधुशाला ... भाग 14 / हरिवंश राय बच्चन

जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 

मधुशाला ..... भाग ---14 

जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।

कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।

बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।

छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।

यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।

कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।

कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७।

दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ , घूम रही है मधुशाला।।११८।

मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित  करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।

किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।

क्रमश: