मंगलवार, 22 नवंबर 2011

आज मुझसे दूर दुनिया


आज मुझसे दूर दुनिया

हरिवंशराय बच्चन


आज मुझसे दूर दुनिया !

भावनाओं से विनिर्मित,
कल्पनाओं से सुसज्जित,
कर चुकी मेरे हृदय का स्वप्न चकनाचूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !

बात पिछली भूल जाओ,
दूसरी नगरी बसाओ’ --
प्रेमियों के प्रति रही है, हाय, कितनी क्रूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !

वह समझ मुझको न पाती,
और  मेरा  दिल  जलाती,
है चिता की राख कर में मांगती सिन्दूर दुनिया !
आज मुझसे दूर दुनिया !

19 टिप्‍पणियां:

  1. आभार ...इसे पढ़वाने के लिए ....

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  2. बच्चन जी की कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद! उनको मेरा शत शत नमन!

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  3. एक बढ़िया कविता पढवाने के लिए आभार... सुन्दर प्रेम गीत है यह...

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  4. बच्चन जी की एक बढ़िया कविता पढवाने का आभार.

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  5. बेमिसाल कविता....अच्छी प्रस्तुति....आभार...

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  6. श्री हरिवंशराय बच्चन जी मेरे पसंदीदा कवियों में से एक हैं उनकी यह बढ़िया रचना यहाँ पढ़वाने के लिए आपका आभार ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html

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  7. बच्चन जी की कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद्।

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  8. ये बेहतरीन रचना पढवाने के लिए आभार आपका

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  9. Sir,
    Hindi language is not appearing in my computer for the last three days due to formating, Hence, I am not in a position to post comment in Hindi.

    Your post "AAJ MUJHSE DUR DUNIYA" really moved me. I appreciate your selection. Thanks.

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  10. दुनियावी कहर तो ऐसे ही रहे हैं हर युग में और शाश्वत :(

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  11. आपने यहा काफ़ी कुछ कहा है और उन्मे काफ़ी बाते आपकी सही भी है

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  12. कविताओं को सुलभ बनाने के लिए आभार

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