प्रेरक प्रसंग-30
पुन्नीलाल नाई और गांधी जी
प्रस्तुत कर्ता : मनोज कुमार
आज के प्रेरक प्रसंग में एक दुर्लभ तस्वीर और रोचक प्रसंग पेश कर रहा हूं। यह वाकया गांधी जी का लोगों को प्रोत्साहित करने का एक अद्भुत उदाहरण है। बात 1939 की है। उस समय गांधी जी देश के ही नहीं सारे विश्व के शिखर के नेता थे। ऐसे में भी वे साधारण से साधारण लोगों को भी प्रोत्साहित करने का कोई मौक़ा वे नहीं चूकते थे। ऐसा भी नहीं कि वे यह सब दिखावे के लिए करते थे। यह सब उनकी जीवन शैली के अंग थे। तभी तो वे कहते थे कि “मेरा जीवन ही मेरा संदेश है”!
उन दिनों गांधी जी इलाहाबाद में थे। आनंद भवन में ठहरे थे। अवसर था, कमला नेहरू स्मारक औषधालय का शिलान्यास का। बात 23 नवम्बर 1939 की है। गांधी जी को दाढ़ी बनवाने के लिए एक नाई की ज़रूरत थी। जवाहरलाल नेहरू जी के निजी सचिव उपाध्याय जी ने एक नाई को बुलवाया। उस नाई का नाम पुन्नीलाल था। उपाध्याय जी ने उन्हें गांधी जी के पास जाने के पहले खादी के कपड़े पहनने के लिए दिया। जल्दबाजी में किए गए इस काम के कारण कपड़े पुन्नीलाल को फिट नहीं आ रहे थे, फिर भी उन्हें पहनकर पुन्नीलाल खाफ़ी ख़ुश था।
वह आनंद भवन की दूसरी मंजिल पर पहुंचा। वहां गांधी जी अखबार पढ़ रहे थे। नाई को देखकर बोले, “अरे, तुम आ गए! तुम अच्छा बाल-दाढ़ी बनाते हो न?”
नाई ने विनम्रता से मुस्कुराते हुए हां में सिर हिलाया। उसने पहले गांधी जी के बाल बनाए फिर दाढ़ी बनाने लगा। इस दौरान गांधी जी उसके साथ हंसी-मज़ाक़ करते रहे। बोले, “लगता है कि तुम हमेशा खादी पहनते हो।”
पुन्नीलाल मासूमियत से बोला, “नहीं। ये कपड़े तो मैंने आज ही पहने हैं।”
उसका सच बोलना गांधी जी को बहुत अच्छा लगा। इस बीच उपाध्याय जी भी वहां आ गए थे। उन्होंने गांधी जी की दाढ़ी बनाते हुए पुन्नीलाल का फोटो खींचा। दाढ़ी-बाल बन चुका था। गांधी जी को प्रणाम कर पुन्नीलाल जाने लगा। बापू ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “तुम अच्छा बाल बनाते हो।”
चुन्नीलाल ने भोलेपन से कहा, “तो मुझे सर्टीफिकेट दीजिए।”
बापू ने कहा, “जब तक तुम अच्छा काम करते रहोगे, तब तक सर्टीफिकेट की ज़रूरत ही क्या है?”
लकिन पुन्नीलाल तो फीछे ही पड़ गया। उसकी हठ के आगे गांधी जी राज़ी हो गए। उपाध्याय जी से काग़ज़ मंगवा कर गांधी जी ने लिखा,
आनंद भवन, इलाहाबाद
भाई पुन्नीलाल ने बड़े भाव से अच्छी तरह मेरी हजामत की है। उनका उस्तरा देहाती है और बग़ैर साबुन के हजामत करते हैं।
मो.क. गांधी
23.11.1939
पुन्नीलाल की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसे तो लगा कि दुनिया की सबसे क़ीमती चीज़ उसके हाथों में है। जवाहरलाल जी ने उसे दो रुपए दिए। उपाध्याय जी से फोटो तो मिला ही। एक भाई उसे सौ रुपए देने लगा। पुन्नीलाल ने लेने से मना कर दिया। बोला, “यह फोटो और यह प्रशस्तिपत्र मेरे लिए अनमोल हैं। और मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरा मेहनताना दो रुपए थे, वह तो नेहरू जी ने मुझे दे ही दिया है।”
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सच ||
जवाब देंहटाएंअविस्मरणीय पल हैं वे ।
पुन्नी लाल के जीवन के ।
वाह ... पुन्नी लाल ने दाढ़ी बनाने की खूब कीमत ली
जवाब देंहटाएंadhbhut prasang , dhanyavaad
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 02-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ
सच्चाई का सुंदर इनाम ... बढ़िया प्रसंग ....
जवाब देंहटाएंbade dilwale hi to mahan shabdon se vibhushit hote hain...
जवाब देंहटाएंयह घटना तो पहली बार पढ़ी .... आभार
जवाब देंहटाएंप्रसंग मजेदार लगा.....धन्यवाद....
जवाब देंहटाएंसचाई, निश्छलता और ईमानदारी.. और गांधी जी का कहना कि अच्छे काम के लिए सर्टिफिकेट की क्या आवश्यकता.. प्रेरक!!
जवाब देंहटाएंएक समय वह था कि नाई तक को पता थी गांधी की क़ीमत। एक समय आज का है कि पढ़े-लिखे युवा भी गांधी की जब-तब आलोचना करते दिखते हैं।
जवाब देंहटाएंएक दौर था जब कहा जाता था -सांच को आंच कहाँ .एक दौर यह है सच बोलने वाले को रामदेव बना दिया जाता है .तब नाइ भी ईमानदार था और अब रामलाल डबल बेद का गद्दा हजार के नोटों का बनाता है .
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रसंग और दुर्लभ चित्र सर....
जवाब देंहटाएंसादर।
प्रेरक प्रसंग. आभार.
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