मंगलवार, 28 अगस्त 2012

चरन कमल बंदौ हरि राइ

विनय के पद

मंगलाचरण

चरन कमल बंदौ हरि राइ


(आराध्य की कृपा की आकांक्षा)

चरन कमल बंदौ हरि राइ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे अंधे कौ सब कछु दरसाई॥
बहिरौ सुनै गूँग पुनि बोलै रंक चलै सिर छत्र धराइ।
सूरदास स्वामी करूनामय बार बार बंदौँ तिहिँ पाइ॥
                                                     -- सूरदास

5 टिप्‍पणियां:

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें