धूमिल
जन्म : वाराणसी जनपद के एक साधारण से गांव खेवली में 9 नवम्बर, 1936 को।
मृत्यु : 10 फरवरी, 1975, लखनऊ।
गाँव
मूत और गोबर की सारी गंध उठाए
हवा बैल के सूजे कंधे से टकराए
खाल उतारी हुई भेड़-सी
पसरी छाया नीम पेड़ की।
डॉय-डॉय करते डॉगर के सींगों में
आकाश फँसा है।
दरवाज़े पर बँधी बुढ़िया
ताला जैसी लटक रही है।
(कोई था जो चला गया है)
किसी बाज पंजों से छूटा ज़मीन पर
पड़ा झोपड़ा जैसे सहमा हुआ कबूतर
दीवारों पर आएँ-जाएँ
चमड़ा जलने की नीली, निर्जल छायाएँ।
चीखों के दायरे समेटे
ये अकाल के चिह्न अकेले
मनहूसी के साथ खड़े हैं
खेतों में चाकू के ढेले।
अब क्या हो, जैसी लाचारी
अंदर ही अंदर घुन कर दे वह बीमारी।
इस उदास गुमशुदा जगह में
जो सफ़ेद है, मृत्युग्रस्त है
जो छाया है, सिर्फ़ रात है
जीवित है वह - जो बूढ़ा है या अधेड़ है
और हरा है - हरा यहाँ पर सिर्फ़ पेड़ है
चेहरा-चेहरा डर लगता है
घर बाहर अवसाद है
लगता है यह गाँव नरक का
भोजपुरी अनुवाद है।
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंलगता है यह गाँव नरक का
जवाब देंहटाएंभोजपुरी अनुवाद है!
..अब एहसे जहर के कही हो! तौने पर नाहीं जलेन ससुर के नाती। खींस काढ़ी हंसत जात हैं, संसद मा।
चेहरा-चेहरा डर लगता है
जवाब देंहटाएंघर बाहर अवसाद है
लगता है यह गाँव नरक का
भोजपुरी अनुवाद है।
सुदामा प्रसाद पाण्डेय धूमिल ने साठोत्तरी कविता के जनक के रूप में प्रसिद्धि पाया है। उनकी हर कविता की भाषिक मिजाज और शब्द का समायोजन उसे भाव-प्रवण वना देता है । उनकी यह कविता बेहद अच्छी लगी। इस पोस्ट को और अधिक रूचिकर बनाने के उद्देश्य से प्रस्तुत है, उनकी एक छोटी कविता 'बीस साल बाद'। आशा करता हू कि इस कविता के साथ उनकी यह कविता भी आप सबको पसंद आएगी।
बीस साल बाद
सुनसान गलियों से
चोरों की तरह गुजरते हुए
अपने आप से सबाल करता हूँ
क्या आज़ादी तीन थके हुए रंगों का नाम है?
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है ?
धन्यवाद।
वाह क्या रचना है साधुवाद
जवाब देंहटाएंमूत और गोबर की सारी गंध उठाए
जवाब देंहटाएंहवा बैल के सूजे कंधे से टकराए
खाल उतारी हुई भेड़-सी
पसरी छाया नीम पेड़ की।
डॉय-डॉय करते डॉगर के सींगों में
आकाश फँसा है। उपकृत हुए आपने कवि धूमिल को सुनवाया -संसद से सड़क तक के रचनाकार से रु -बा -रु करवाया जिन्होनें तब कहा था -
गणतंत्री चूहे प्रजा तंत्र को कुतुर कुतुर (कुतर कुतर )के खा रहें हैं .........शुक्रिया ...
वाह !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
कविता के माध्यम से गाँव का क्या जबरदस्त चित्र उकेरा है यही इस रचना की सबसे बड़ी विशेषता है धूमिल जी की लेखनी को नमन और पोस्ट को सांझा करने के लिए मनोज जी को आभार
जवाब देंहटाएंबढ़िया चित्रा उकेरा है आपने अपनी रचना के माध्यम से |
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट:-
♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥