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सोमवार, 22 अगस्त 2011

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है


दुष्यंत कुमार त्यागी - 4

इस  नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक   चिंगारी  कहीं  से ढूँढ  लाओ दोस्तों,
इस  दिए में तेल  से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी  की पीर  गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर  साँझ ने सारे   नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

निर्वचन  मैदान  में  लेटी हुई  है  जो  नदी,
पत्थरों से,  ओट में  जा-जाके बतियाती तो है।

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।