शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

मैंने तब ये गीत लिखे हैं

मैंने तब ये गीत लिखे हैं

श्यामनारायण मिश्र

images (20)आंधी रौंद रही थी पेड़ों की जब नई जवानी,

निगल रही थी रेत, नदी का बूंद-बूंद पानी,

             मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

 

जीभ जलाते बचपन देखे

हृदय जलाते यौवन,

हारे थके बुढापे देखे

अर्थी बिना कफ़न,

कटी-फटी दीवारे देखी टूटी-फूटी छानी,

मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

 

सांझ-सवेरे औरों के घर

चौका करती मां,

रातों को रो विरह पिता का

झेले खांस दमा,

औंधी-खाली मटकी देखी, छप्पर खुंसी मथानी

मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

 

गूंगी-बहरी बस्ती देखी

चुचुवाती सड़कें,

तोड़-तोड़ सन्नाटे रातों

को वर्दी कड़कें,

तानाशाही कोल्हू देखे सदाचार की घानी,

मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

 

शहर कबाड़ी के डिब्बों से

और उजड़ते गांव,

खेतों-खलिहानों पर पसरी

गोदामों की छांव,

औरों की आंखों में देखी अपनी कथा-कहानी,

मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

28 टिप्‍पणियां:

  1. जीभ जलाते बचपन देखे

    हृदय जलाते यौवन,

    हारे थके बुढापे देखे

    अर्थी बिना कफ़न,

    कटी-फटी दीवारे देखी टूटी-फूटी छानी,

    मैंने तब ये गीत लिखे हैं।
    जीवन के ये मौसम देख कर ही तो गीत लिखे जाते हैं हर एहसास की इन्तहा ही अच्छी रचनाओं को जन्म देती हैं। बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

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  2. श्यामनारायण मिश्र जी की और रचनायें पढ़वायें.

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  3. बहुत अच्छा प्रयास .......कविता कि सार्थकता इसका सशक्त भाव पक्ष है ....शुक्रिया आपका

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  4. इस अनुपम रचना के रस ने ह्रदय को ऐसे बहा दिया है कि अभी एक शब्द नहीं मेरे पास जो कह सकूँ...

    अद्वितीय ..अद्वितीय ....आह !!!!

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  5. सुन्दर भाव और सूफियाना अंदाज़े बाया करती रचना
    बधाई

    --

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  6. जीभ जलाते बचपन देखे

    हृदय जलाते यौवन,

    हारे थके बुढापे देखे

    अर्थी बिना कफ़न,

    कटी-फटी दीवारे देखी टूटी-फूटी छानी,

    मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

    ज़िन्दगी की अलग अलग सच्चाइयों को दर्शाती रचना कवि के दिल के दर्द को बयाँ कर रही है।

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  7. मनोज जी,
    इस कविता को कवि ने जब लिखा है तो आज के हालातों में वो ह्रदय कहाँ तक सहता? आपने इतनी सुंदर कविता से हमें रूबरू कराया इसके लिए आप को बहुत बहुत धन्यवाद.

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  8. जीभ जलाते बचपन देखे
    हृदय जलाते यौवन,
    हारे थके बुढापे देखे
    अर्थी बिना कफ़न,
    कटी-फटी दीवारे देखी टूटी-फूटी छानी,
    मैंने तब ये गीत लिखे हैं।

    बहुत ही भावपूर्ण ,सशक्त नव गीत !

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  9. इस गीत में समय, समाज और रचनाकार का दर्द समाया हुआ है तभी तो इतना प्रिय बन पड़ा है.

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  10. बहुत ही मार्मिक कविता...इतने संजिदेपन से शब्दों में बांधा है कविता को....कि एक-एक शब्द गहरे तक उतर गया...
    शुक्रिया इस कविता से रु-ब-रु करवाने का

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  11. औरों की आंखों में देखी अपनी कथा-कहानी,

    मैंने तब ये गीत लिखे हैं ।



    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... वाह ...आभार

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  12. सुन्दर अभिव्यक्ति........ खूबसूरत

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  13. मनोज जी! बहुत ही सुंदरऔर वास्तविकता से ओतप्रोत प्रस्तुति.. श्याम नारायण मिश्र जी ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्चे गीत विरह की कोख से ही जन्म लेते हैं!!

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  14. शहर कबाड़ी के डिब्बों से

    और उजड़ते गांव,

    खेतों-खलिहानों पर पसरी

    गोदामों की छांव,

    औरों की आंखों में देखी अपनी कथा-कहानी,

    मैंने तब ये गीत लिखे हैं।
    --
    बहुत ही सशक्त रचना प्रस्तुत की है आपने!

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  15. गीत लिखने के लिए जिनकी जरूरत थी, मिश्र जी ने उन सबको तलाशा, पाया और तब यह गीत लिखे।

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  16. mishra jee yah geet navgeet ka ek bahut anupam udaharan hai...behad acchi lagyi yah rachna

    saadar

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  17. इन पंक्तियों में मानो सम्पूर्ण जीवन अभिव्यक्त हो गया है।

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  18. इन पंक्तियों में मानो सम्पूर्ण जीवन अभिव्यक्त हो गया है।

    जवाब देंहटाएं
  19. परिस्थितयां ही तो कविता लेखन में खाद-पानी का काम करती हैं.
    बहुत सुन्दर और मनमोहक प्रस्तुति.

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  20. कवि का मन जिन बाह्य कारणों से प्रभावित होता है.वही भाव उसके अंतर्मन में रच-बस जाते हैं। फलस्वरूप,एक भावपूर्ण रचना का जन्म होता है।कटु सत्य का साक्षात्कार कराती रचना मन को मोहित कर गयी। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  21. बहुत ही मार्मिक कविता...इतने संजिदेपन से शब्दों में बांधा है कविता को....कि एक-एक शब्द गहरे तक उतर गया...
    शुक्रिया इस कविता से रु-ब-रु करवाने का

    जवाब देंहटाएं
  22. श्याम नारायण मिश्र जी की यह कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद !!! यह कविता बहुत कुछ कहती है ।

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  23. नमस्कार........आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है
    मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ, कृपया मेरा मार्गदर्शन करें......

    http://harish-joshi.blogspot.com/

    आभार.

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