पुण्य की पोटली छू अधोगामी हुए
श्यामनारायण मिश्र
यहां, ऊंचे स्वार्थ के पर्वत
और सूखी झील है संवेदना की,
बहुत हुआ तीर्थ, चल वापस लौट चल।
जो बोकर आए थे पीछे सब सूख गया।
हाथ पर साधा नहीं, ओठों पर चूक गया।
श्रद्धा से सूंघ मत,
मीरा का शाल नहीं,
कंचुकि है पूतना की,
बहुत हुआ तीर्थ, चल वापस लौट चल।
पाप की ही सही निष्ठा से ढोने का अपना सुख था।
अपने ही हाथ, अपना ही दर्पण, अपना ही मुख था।
पुण्य की,
यह पोटली छू अधोगामी हुए,
और अपनी ही सतत् अवमानना की,
बहुत हुआ तीर्थ, चल वापस लौट चल।
किस पर है कितना, वयौहर पर छोड़ गुणा-भाग।
ठंडा मत होने दे प्राणों का अलाव, सांसों की आग।
किस-किसके लिए किए आत्महंत अनुष्ठान
आहुतियां दे डाली भावना की,
बहुत हुआ तीर्थ, चल वापस लौट चल।
किस पर है कितना, वयौहर पर छोड़ गुणा-भाग।
जवाब देंहटाएंठंडा मत होने दे प्राणों का अलाव, सांसों की आग।
किस-किसके लिए किए आत्महंत अनुष्ठान
आहुतियां दे डाली भावना की,
बहुत हुआ तीर्थ, चल वापस लौट चल।
बहुत सुन्दर संवेदनाओं को उजागर करती रचना !
पाप की ही सही निष्ठा से ढोने का अपना सुख था।
जवाब देंहटाएंअपने ही हाथ, अपना ही दर्पण, अपना ही मुख था।
जीवन में व्यक्ति अपने कर्मों का सही आकलन नहीं कर पाता, अहंकार वश उसे लगता है कि वो जो कुछ कर रहा है वो सही है ...इस कविता की इन पंक्तियों में इस भाव की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है .....आपका आभार
किस पर है कितना, वयौहर पर छोड़ गुणा-भाग।
जवाब देंहटाएंठंडा मत होने दे प्राणों का अलाव, सांसों की आग।
किस-किसके लिए किए आत्महंत अनुष्ठान
आहुतियां दे डाली भावना की,
बहुत हुआ तीर्थ, चल वापस लौट चल
गहरी संवेदनाएं दिल कि तह तक जाती हैं और अपना असर छोडती हैं..
मिश्र जी का यह गीत आह्वान कर रहा है .... सुन्दर गीत...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहूँ ?????
एक एक पंक्ति, गहरी सम्वेदना से सराबोर है.. मिश्र जी को सादर नमन!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग में कम्प्यूटर पर नेट वायरस होने की चेतावनी दे रहा है!
कृपया ब्लॉग व्यवस्थापक देख लें कि
ऐसा क्यों हो रहा है?
मन को छू लेने वाली रचना ...
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' -दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
जवाब देंहटाएंप्रिय हिंदी ब्लॉगर बंधुओं ,
आप को सूचित करते हुवे हर्ष हो रहा है क़ि आगामी शैक्षणिक वर्ष २०११-२०१२ के जनवरी माह में २०-२१ जनवरी (शुक्रवार -शनिवार ) को ''हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं '' इस विषय पर दो दिवशीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है. विश्विद्यालय अनुदान आयोग द्वारा इस संगोष्ठी को संपोषित किया जा सके इस सन्दर्भ में औपचारिकतायें पूरी की जा रही हैं. के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजन की जिम्मेदारी ली गयी है. महाविद्यालय के प्रबन्धन समिति ने संभावित संगोष्ठी के पूरे खर्च को उठाने की जिम्मेदारी ली है. यदि किसी कारणवश कतिपय संस्थानों से आर्थिक मदद नहीं मिल पाई तो भी यह आयोजन महाविद्यालय अपने खर्च पर करेगा.
संगोष्ठी की तारीख भी निश्चित हो गई है (२०-२१ जनवरी २०१२ ) संगोष्ठी में अभी पूरे साल भर का समय है ,लेकिन आप लोगों को अभी से सूचित करने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है क़ि मैं संगोष्ठी के लिए आप लोगों से कुछ आलेख मंगा सकूं.
दरअसल संगोष्ठी के दिन उदघाटन समारोह में हिंदी ब्लागगिंग पर एक पुस्तक के लोकार्पण क़ी योजना भी है. आप लोगों द्वारा भेजे गए आलेखों को ही पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया जायेगा . आप सभी से अनुरोध है क़ि आप अपने आलेख जल्द से जल्द भेजने क़ी कृपा करें .
आप सभी के सहयोग क़ी आवश्यकता है . अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
के.एम्. अग्रवाल महाविद्यालय
गांधारी विलेज , पडघा रोड
कल्याण -पश्चिम
pin.421301
महाराष्ट्र
mo-09324790726
manishmuntazir@gmail.com
http://www.onlinehindijournal.blogspot.com/ http://kmagrawalcollege.org/
मिश्रजी का यह गीत उनके मुखारविन्द से सुना था। आज पुनः ब्लाग पर पढ़ कर पुरानी स्मृति ताजी हो गयी। सोच के दायरे हमें संकीर्णताओं में किस प्रकार बाँध लेते हैं, इस गीत में अच्छी करह से व्यक्त किया गया है।
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