युद्ध  समाप्ति के पश्चात  पितामह भीष्म युधिष्ठिर से कह रहे हैं --
सब हो सकते तुष्ट एक सा 
सब सुख पा सकते हैं 
चाहें तो , पल में  धरती को 
स्वर्ग बना सकते हैं ।
छिपा दिये सब  तत्त्व आवरण 
के नीचे  ईश्वर  ने 
संघर्षों  से खोज निकाला 
उन्हें उद्यमी  नर ने । 
ब्रह्मा  से कुछ लिखा  भाग्य में 
मनुज नहीं लाया है , 
अपना सुख उसने अपने 
भुजबल से ही पाया है । 
प्रकृति नहीं  डर कर झुकती है 
कभी भाग्य  के बल से 
सदा  हारती वह मनुष्य के 
उद्यम से , श्रमजल से । 
ब्रह्मा  का अभिलेख  पढ़ा 
करते निरुद्यमी  प्राणी 
धोते वीर कु - अंक भाल का 
बहा भ्रुवों  से  पानी ।
भाग्यवाद  आवरण पाप का 
और शस्त्र  शोषण का ,
जिससे रखता  दबा  एक जन 
भाग दूसरे जन का । 
पुछो किसी भाग्यवादी से 
यदि विधि अंक प्रबल है 
पद  पर क्यों देती न स्वयं 
वसुधा निज रत्न उगल है ? 
उपजाता क्यों विभव प्रकृति को 
सींच -सींच वह जल से ? 
क्यों न उठा लेता निज  संचित 
कोष भाग्य  के बल से । 
और मरा  जब पूर्व जन्म में 
वह धन संचित  करके 
विदा हुआ था न्यास समर्जित
किसके घर में  धर  के । 
जन्मा  है वह जहां , आज 
जिस पर उसका शासन है 
क्या है यह  घर वही ? और 
यह उसी न्यास का धन है ? 
यह भी पूछो  , धन जोड़ा 
उसने जब प्रथम -प्रथम था 
उस संचय के पीछे तब 
किस भाग्यवाद  का क्रम था ? 
वही मनुज के श्रम का शोषण 
वही अनयमय  दोहन ,
वही मलिन  छल नर - समाज से 
वही ग्लानिमय  अर्जन । 
एक मनुज संचित करता है 
अर्थ पाप के बल से , 
और भोगता उसे दूसरा 
भाग्यवाद  के छल से । 
नर - समाज  का भाग्य  एक है 
वह श्रम , वह भुज - बल है , 
जिसके सम्मुख  झुकी हुई 
पृथिवी, विनीत  नभ - तल है । 
जिसने श्रम जल दिया , उसे 
पीछे मत रह जाने दो , 
विजित  प्रकृति  से सबसे पहले 
उसको सुख पाने दो । 
जो कुछ न्यस्त प्रकृति में  है , 
वह मनुज मात्र का धन है , 
धर्मराज , उसके कण -कण  का 
अधिकारी जन - जन है । 
क्रमश:
 
 
एक मनुज संचित करता है
जवाब देंहटाएंअर्थ पाप के बल से ,
और भोगता उसे दूसरा
भाग्यवाद के छल से ।
bahut acchi prastuti sangeeta jee....thanks ...mood fresh ho gaya....
ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में
जवाब देंहटाएंमनुज नहीं लाया है ,
अपना सुख उसने अपने
भुजबल से ही पाया है!...बहुत सुन्दर प्रस्तुति सगीता जी!...बधाई
अति उत्तम …………शानदार चल रहा है ।
जवाब देंहटाएंएक मनुज संचित करता है
जवाब देंहटाएंअर्थ पाप के बल से ,
और भोगता उसे दूसरा
भाग्यवाद के छल से
वाह ....
बहुत ही सुन्दर..
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया...
इस महाकाव्य का विचार अकसर हमें अकसर ऐसी प्रेरणा देता है जो आज के समाज और परिवेश के लिए शुभकर है।
जवाब देंहटाएंVery best
जवाब देंहटाएंधोते वीर कु - अंक भाल का
जवाब देंहटाएंबहा भ्रुवों से पानी ।
ध्रुवो शब्द है या भ्रुवो स्पष्ट कीजिए।
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