सोमवार, 6 सितंबर 2010

वेदना सृजन की





अंतस की गहराई से


जब आह निकलती है


विलपत हो शब्दों में


तब वो रचना बनती है .



शब्दों को यूँ बाँध - बाँध कर


मन को बांधा करते हैं


अश्कों के सागर पर भी


यूँ बाँध बनाया करते हैं.



बंध जाता है बाँध जब


सागर में गोता खाते हैं


डूब - डूब कर एहसासों के


मोती लाया करते हैं .



मुट्ठी भर - भर कर जब मोती


आ जाते सागर के बाहर


उनकी माला पिरो - पिरो कर


खुद को बहलाया करते हैं .



बहला कर खुद के मन को


फिर नयी चेतना जगती है


स्वयं से ऊपर उठ कर फिर


नयी कल्पना सजती है .



नयी कल्पना फिर से मुझको


ले जाती है गहराई में


और गहराई तक जा कर


फिर से आह निकलने लगती है.



इन आहों के आने - जाने से


मन में पीडा होती है


हर नए सृजन के लिए शायद


वेदना भी ज़रूरी होती है.




संगीता स्वरुप 





22 टिप्‍पणियां:

  1. हर नए सृजन के लिए शायद
    वेदना भी ज़रूरी होती है. सही कहा आपने सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. बहुत सुन्दर| रचनाधर्मिता एक तपस्या से कम ना है|
    ब्रह्माण्ड

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  3. बंध जाता है बाँध जब


    सागर में गोता खाते हैं


    डूब - डूब कर एहसासों के


    मोती लाया करते हैं .


    बेहतरीन काव्य !

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  4. "इन आहों के आने - जाने से


    मन में पीडा होती है


    हर नए सृजन के लिए शायद


    वेदना भी ज़रूरी होती है."

    bahut sunder rachna.. puri srijan prakriya ko sahaj sahbdon me vyakt kar diya..

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  5. कला साधना कुंद छुरी से दिल को बढ़े जाना
    अटल आंसों के सागर में सपने खेते जाना
    सृजन की पीड़ा प्रसव पीड़ा से कमतर नहीं ...
    कहा था रवीन्द्र नाथ टैगोर ने

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  6. बिल्कुल सही, सृजन के लिए वेदना और उस वेदना कि अनुभूति भी बहुत जरूरी है. इसी लिए भोगा हुआ यथार्थ एक विशाल परिभाषा को अपने में समां कर चलता है कि जिन्हें वेदना का अहसास है वे अपनी हो या दूसरे कि वेदना ही समझ कर उसे ढाल लेते हैं और वही कलम सबसे अच्छी अभिव्यक्तिदेती है.

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  7. हर नए सृजन के लिए शायद


    वेदना भी ज़रूरी होती है.

    बिल्कुल सही कहा…………………हर सृजन तभी होता है जब वेदना का अन्तिम स्तर आ जाता है देखो ना एक बच्चे का जन्म भी तो तभी होता है उसी प्रकार नव सृजन होता है।

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  8. शब्दों को यूँ बाँध - बाँध कर


    मन को बांधा करते हैं


    अश्कों के सागर पर भी


    यूँ बाँध बनाया करते हैं.
    waah........ bahut hi shaandaar abhivyakti

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  9. इन आहों के आने - जाने से


    मन में पीडा होती है


    हर नए सृजन के लिए शायद


    वेदना भी ज़रूरी होती है.
    वाह क्या बात कही है .इतना गहरा...बहुत बहुत बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है..

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  10. सच कहा , कोई मर कर यूँ भी जी जाता है ।

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  11. शब्दों को यूँ बाँध - बाँध कर


    मन को बांधा करते हैं


    अश्कों के सागर पर भी


    यूँ बाँध बनाया करते हैं.
    क्या बात कह डाली..बहतु सुन्दर

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  12. हर नए सृजन के लिए शायद
    वेदना भी ज़रूरी होती है
    वाह क्या बात कही है सुंदर बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  13. हर नए सृजन के लिए शायद
    वेदना भी ज़रूरी होती है.

    bilkul sahi aapka vichar hai

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  14. दिल की गहराई से लिखी गई रचना वास्तव में एक सुंदर कृति बन जाती है । आपकी कविता में भी कुछ ऐसी ही बात है । संगीता जी आपकी कविता दिल को छू गई ।

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  15. विरह-वेदना से सुसज्जित आपकी कृति अनायास ही दिल को छू गई । आपके कविता से मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हूँ । उम्मीद है कि ऐसी रचना हमें आगे भी मिलती रहेगी । खूबसूरत कविता के लि बधाई ।

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  16. आज का विचार बहुत पसंद आया ।

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  17. इन आहों के आने - जाने से
    मन में पीडा होती है
    हर नए सृजन के लिए शायद
    वेदना भी ज़रूरी होती है.
    यह कविता एक संवेदनशील मन की निश्‍छल अभिव्‍यक्तियों से भरी-पूरी है ।

    गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना!

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  18. बंध जाता है बाँध जब
    सागर में गोता खाते हैं
    डूब - डूब कर एहसासों के
    मोती लाया करते हैं .

    -अति सुन्दर!!

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  19. बहुत ही खूबसूरती से आपने सृजन प्रक्रिया के पूरे चक्र को कलात्मक अभिव्यक्ति दी है ! जितना गहरा वेदना का स्तर होता है रचना उतनी ही बेहतरीन एवम् प्रभावशाली होती है !
    हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
    हम दर्द के सुर में गाते हैं !
    जब हँस के बहल जाती है खुशी
    आँसू ही छलकते आते हैं !
    बहुत सुन्दर रचना है संगीता जी ! आपको बहुत बहुत बधाई !

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