अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2मनोज कुमार |
अलाउद्दीन ने बाजारों की व्यवस्था की नीति के कार्यान्वयन के लिए दीवान-ए-रियासत नाम से एक विभाग खोला। दिल्ली में तीन अलग-अलग बाजारों की स्थापना की गई। पहला था गल्ला मंडी – खाद्यान्न के लिए बाजार, दूसरा था सराय-अदल (अर्थात न्याय का स्थान) - यह मुख्यतः वस्त्र बाजार था एवं तीसरा था घोड़े, दासों, पशुओं आदि का बाजार। गल्ला मंडी में क़ीमत की स्थिरता अलाउद्दीन की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। उसके जीवित रहते, इनके मूल्यों में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई। तीनों बाजारों की अपनी अलग-अलग समस्याएं थी। मंडी की समस्या थी कि कैसे उपयोगी वस्तुओं की सतत आपूर्ति बनाए रखी जाए एवं इसकी उपभोक्ताओं में वितरण की व्यवस्था कैसे की जाए ? इसके अलावा समुचित फसल उत्पादन न हो पाने या बाढ़ जैसी आकस्मिक स्थिति का सामना कैसे किया जाए? यह तय था कि दुकानदारों को यदि वस्तुएं पर्याप्त मात्रा और सही समय में नहीं मिलेंगी तो वे नियत दरों पर माल नहीं बेच सकेंगे। इसके अलावा चोर-बजारी भी करेंगे। अतः अलाउद्दीन का निर्देश था कि भू-राजस्व कैश में न लेकर उत्पाद का एक तिहाई भाग लिया जाए। इस राजस्व की अदायगी के बाद कृषक अपने पास उतना ही अनाज रखें जितने कि उनको अगले फसल उत्पादन तक के लिए अपनी आवश्यकताओं हेतु ज़रूरत थी बाकी का अतिरिक्त उत्पादन सरकारी अधिकारियों द्वारा खरीद लिया जाता था। मंडी में सिर्फ पंजीकृत व्यापारी ही कारोबार कर सकते थे। व्यापारी अपनी इच्छा से मूल्य में कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकते थे। उत्पादन मूल्य उत्पादकों की लागत से बहुत ज्यादा नही होता था। इससे उत्पादकों को उनकी लागत का उचित मूल्य भी मिलता था और व्यापारियों को अधिक मुनाफाखोरी का अवसर नहीं मिल पाता था। आपातकाल जैसी स्थिति के लिए बफर स्टॉक की व्यवस्था थी, ताकि फसल उत्पादन न हो सकने की स्थिति का सामना किया जा सके। सौदागर दिल्ली के चारों ओर सैकड़ों कोस की दूरी तक बसनेवाले किसानों से नियत दरों पर गल्ला खरीदकर राजधानी की गल्ला मंडी या सरकारी गोदामों में लाते थे। अनेक वस्तुओं को एक नगर से दूसरे नगर तक सरकारी परमिट के बिना लाने ले जाने की मनाही कर दी गई थी। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि अलाउद्दीन ने राशन व्यवस्था भी लागू की थी। अकाल या अनाज की कमी की स्थिति में निश्चित मात्रा से अधिक गेहूं किसी को नहीं दिया जाता था और वैसी परिस्थिति में राशनिंग भी कर दी जाती थी। मोहल्लों के दुकानदार सरकारी गादामों से अनाज ले आते थे और प्रत्येक परिवार को 6-7 सेर गेहूं प्रतिदिन के हिसाब से दिया जाता था। कई बार कपड़े और अन्य मूल्यवान वस्तुओं का राशन कर दिया जाता था। दूसरा बाजार सराय-ए-अदल (न्याय का स्थान) निर्मित वस्तुओं तथा बाहर के प्रदेशों से आनेवाले माल का बाजार था। मुख्य रूप से यह वस्त्र बाजार था। इसमें अलाउद्दीन स्थानीय निर्मित वस्त्रों का मूल्य नियंत्रण तो कर सकता था पर आयात किए गए वस्त्रों, जैसे रेशमी वस्त्र ईरान से आता था, का नियंत्रण कर पाना संभव नहीं था। कपड़े की कीमतों के निर्धारण से व्यापारी दिल्ली में माल बेचने के इच्छुक नहीं थे। व्यापारी दिल्ली के बाहर से कपड़ा खरीदते थे, उसे दिल्ली में लाने में धन खर्च करते थे और उन्हें दिल्ली में निर्धारित मूल्य पर बेचना पड़ता था। कपड़ा व्यापारियों को खाद्यान्नों के व्यापारियों की तुलना में अधिक सुविधाएं दी जाती थी। जैसे बाहर से माल लाकर दिल्ली में बेचने के लिए उन्हें अग्रिम धन दिया जाता था। तीसरी तरह के बाजार की प्रमुख समस्या दलाल थे। अलाउद्दीन ने दलालों को निकाल बाहर किया। उसने निरीक्षकों की नियुक्ति की। निरीक्षक घोड़ों एवं दासों का परीक्षण एवं उनकी श्रेणी का निर्धारण करते थे। एक बार श्रेणी का निर्धारण हो जाने के बाद उनका मूल्य निश्चित किया जाता था एवं व्यापारी उसी नियत मूल्य पर उनकी बिक्री करने के हकदार होते थे। अपनी व्यक्तिगत रूचि एवं कठोर दंड प्रावधानों से वह इन व्यवस्थाओं का दृढ़ता से पालन कर पाने में सफल हुआ। इस प्रकार की पद्धति से वह सामान के मूल्यों की देखभाल, बाट-बंटखरे की जांच करता था। कालाबाजारी, बेइमानी करनेवाले या अधिक मूल्य लेने पर व्यापारियों को सख्त सजा दी जाती थी। मूल्य निर्धारण, राशनिंग वस्तु विवरण आदि के बारे में अलाउद्दीन के नियम बड़े कठोर थे। अगर तौल कम किया तो उतने की वजन का मांस काट लिया जाता था। नियत दरों से अधिक भावों पर बेचने पर कोड़े लगवाये जाते थे। कड़ी निगरानी एवं कठोर दंड के प्रावधान ने इस योजना की सफलता सुनिश्चित की। इस योजना के प्रभाव के बारे में यह तय है कि अमीरों एवं सैनिकों को इस योजना से काफी फायदा हुआ। उनकी क्रय शक्ति काफी बढ़ गई। अकबर के समय में एक सामान्य नागरिक के लिए 3 से 4 टंका प्रति माह भरण-पोषण हेतु पर्याप्त राशि थी। अलाउद्दीन ने मनमाने ढंग से व्यापारियों के विरूद्ध काम नहीं किया। उसने व्यापारियों के मुनाफा कमाने की गुंजाइश को कम तो किया पर व्यापारियों को कभी घाटे का सामना नहीं करना पड़ा। अलाउद्दीन अनपढ़ व्यक्ति था। अकबर की तरह टोडरमल या अबुल फजल जैसे काबिल सलाहकार भी उसके पास नहीं थे। अतः अलाउद्दीन ने जो भी सफलता प्राप्त की वह उसे अपनी सामान्य जानकारी के बदौलत ही मिली। इस योजना को मदद पहुंचानेवाले किसी वृहत ढांचे, तकनीकी दक्षतायुक्त निरीक्षण, तकनीकी सलाह और संगठित प्रशासनिक कुशलता के बिना ही, सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उसने अल्पावधि में ही चिरस्थाई प्रभाव पैदा किए। किसी भी वस्तु का मूल्य उसकी उत्पादन दर से कम नियत नहीं किया गया। सामान्यतया मुनाफे की सीमा में कटौती के प्रयास का व्यापारियों द्वारा विरोध तो किया ही जाता था, कितु अलाउद्दीन की इस योजना में व्यक्तिगत रुचि एवं कठोर दंड प्रावधानों ने इसके कार्यान्वयन को सफल बनाया। यह सही है कि अलाउद्दीन ने कृषकों एवं शिल्पकारों को बाध्य किया कि वे अपनी वस्तुओं और अनाजों को इन बाजारों में नियत मूल्य पर ही बेचें। इसका उन्होंने निश्चित रूप से विरोध किया। किंतु अलाउद्दीन ने उनका नुकसान नहीं होने दिया। जहां एक ओर उन्हें नियत मूल्य के लिए बाध्य किया वहीं दूसरी ओर अन्य वस्तुओं के मूल्य भी कम किए गए। मुनाफा दर घटी ज़रूर पर कुल मिलाकर उनकी क्रय शक्ति कम नहीं हुई। यद्यपि कृषक अन्य जगहों पर अपना अनाज बेचने को स्वतंत्र थे पर भंडारण क्षमता के अभाव में वे अन्य व्यापारियों की सौदेबाजी पर ही आश्रित थे। इसके अलावा अतिरेक (सरप्लस) की कीड़ों एवं प्राकृतिक आपदाओं से नष्ट हो जाना आम बात थी। फलतः वे व्यापारियों की दया पर निर्भर होते थे। अतिरेक से रूपया आना उतना आसान भी नहीं था। इस व्यवस्था से उन्हें राशि आनी निश्चित तो थी, वे उसे दूसरी पैदावार में लगा भी सकते थे। अलाउद्दीन ने जो न्यूनतम मूल्य निर्धारित किये थे उसमें कुछ मुनाफे की भी गुंजाइश थी। इस तरह हम पाते हैं कि इस व्यवस्था में किसी भी वर्ग को हानि नहीं थी। अलाउद्दीन की यह सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। जब तक वह जीवित रहा बाजार में निश्चित कीमतों में तनिक भी वृद्धि नहीं हुई। जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि अलाउद्दीन अनपढ़ व्यक्ति था। अकबर की तरह टोडरमल या अबुल फजल जैसे काबिल सलाहकार भी उसके पास नहीं थे। अतः अलाउद्दीन ने जो भी सफलता प्राप्त की वह उसे अपनी सामान्य जानकारी के बदौलत ही मिली। इस योजना को मदद पहुंचानेवाले किसी वृहत ढांचे, तकनीकी दक्षतायुक्त निरीक्षण, तकनीकी सलाह और संगठित प्रशासनिक कुशलता के बिना ही, सिर्फ अपनी इच्छा शक्ति के बल पर उसने अल्पावधि में ही चिरस्थाई प्रभाव पैदा किए। इस खास उपलब्धि ने अलाउद्दीन को भारतीय इतिहास में चिरस्थाई ख्याति प्रदान की। अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद यह योजना अंततोगत्वा समाप्त हो गई। वैसे भी उसकी मृत्यु के बाद सैन्य गतिविधियां प्रायः समाप्त हो गई। एक वृहत सेना की आवश्यकता भी नहीं रह गई थी। अतः यह योजना उस दृष्टिकोण से अनावश्यक हो गई थी। फिर भी यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसी योजना उस काल के हिसाब से किसी आश्यर्च से कम नहीं थी। |
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2
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काफ़ी जानकारी मिलती है ऐसे पोस्ट पढकर. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंऔर अब सरकारें बस आश्वासन देती हैं कि अगले तीन महीने में महंगाई ठीक कर लेंगे,अगले छह माह में कर लेंगे वगैरह-वगैरह।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका ब्लॉग - राजभाषा ही क्यूँ - हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है !!
जवाब देंहटाएंमेरे लिये ये पूरी जानकारी नयी है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की आपने। ब्लॉग जगत में इस तरह की ऐतिहासिक जानकारी की कमी है, इस दृष्टि से भी आपका कार्य सराहनीय है। आज नहीं तो कल इसे नोटिस लिया ही जाएगा।
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया ! यह जानकारी तो दुर्लभ है भाई जी ! आपका आभार !!
जवाब देंहटाएंcommonsense helps in achieving seemingly unattainable success.......
जवाब देंहटाएंremembering my history lessons!!!!
sundar jaankaari evam saargarbhit post!
subhkamnayen....
बहुत अच्छी जानकारी ...
जवाब देंहटाएंअपनी व्यक्तिगत रूचि एवं कठोर दंड प्रावधानों से वह इन व्यवस्थाओं का दृढ़ता से पालन कर पाने में सफल हुआ। इस प्रकार की पद्धति से वह सामान के मूल्यों की देखभाल, बाट-बंटखरे की जांच करता था। कालाबाजारी, बेइमानी करनेवाले या अधिक मूल्य लेने पर व्यापारियों को सख्त सजा दी जाती थी। मूल्य निर्धारण, राशनिंग वस्तु विवरण आदि के बारे में अलाउद्दीन के नियम बड़े कठोर थे
काश ऐसा कुछ आज भी हो पाता ..
puraatan kaal ki bahut achchhi jaankaari dee hai aapne....dhanyawaad!
जवाब देंहटाएंसूचनापरक,ज्ञानवर्धक एवं रोचक लेख ।
जवाब देंहटाएंbahut umda jankari...kam sansadhano ke hote hue bhi behtar vyavastha aluddin ki drudh ichchha shakti ko darshata hai.....
जवाब देंहटाएंसूचनापरक प्रस्तुति के लिए धन्यवाद-आशा है भविष्य में भी इसकी निरंतरता बनाए रखेंगे। पहली वर्षगांठ पर हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंमनोजजी
जवाब देंहटाएंसचमुच नई जानकारी है मेरे लिए
क्या जो किले की फोटो है वह खिलची के किले की है
अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था पर काफी अच्छा लेख प्रस्तुत किया है आपने । पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंखिल्जी के बारे मे काफ़ी खोजी जानकारी आपने दी हमे.. श्रेष्ठ प्रस्तुति.. साहित्य के साथ साथ इतिहास के पन्नो पर भी अच्छी पकड...
जवाब देंहटाएंएक अत्यंत ही शोधपरक और ज्ञानवर्धक आलेख। अशेष शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएं@ सोनी जी
जवाब देंहटाएंगूगल सर्च मारा था, यह क़िला आ गया लगा दिया
पता नहीं कहां का है?
दुर्लभ जानकारी है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
itni achchi post, ise padkar bahut si jaankari haasil hoti hai,
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhnyvad,
बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख ! इतनी विस्तृत जानकारी को देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसामान्य जानकारी का आधार लिए बिना तो बड़े-बड़े जानकारों के प्रॉजेक्ट फ़ेल हो जाते हैं .हमारे नीतिज्ञ भी सामान्य-ज्ञान और सामान्य-जन से जुड़ें रहें तो ऐसी छीछालेदर न हो .
जवाब देंहटाएंnai jankari hai hmare liye to .
जवाब देंहटाएंabhar
बिल्कुल सार्थक ब्लॉगिंग ..बढ़िया आलेख जिससे हम अपने इतिहास की बातें जान सकें...मनोज जी बहुत बहुत आभार ऐसे पोस्ट हमें बहुत अच्छे लगते है जो भारत के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपका यह ऐतिहासिक विश्लेषण मुझे शाहजहांपुर में १९६३ -६४ (६ -७ कक्षा )में प्राचार्य शर्मा जी द्वारा इतिहास पढ़ने की यादतजा कर गया.मुझे याद है अल्लौद्दीन ने बच्चों को नाप-तौल के लिए चेकिंग वास्ते इस्तेमाल किया था.
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