साहित्यकार-२महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | ||||||
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महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के महिषादल रियासत में 21 फरवरी, 1899 को हुआ था। मूलतः वे उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बांसवाड़ा जनपद के गढाकोला गांव के रहने वाले थे। निराला की आरंभिक शिक्षा महिषादल में ही हुई थी। निराला का बंगाल से जितना गहरा संबंध था, उतना ही अंतरंग संबंध बांसवाड़ा से भी था। इन दोनों संबंधों को जो नहीं समझेगा वह निराला की मूल संवेदना को नहीं समझ सकता। इन दो पृष्ठभूमियों की अलग-अलग प्रकार के सांस्कृतिक परिवेश का उनके व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ा जिसका स्पष्ट प्रभाव हम उनकी रचनाओं में भी पाते हैं, जब वे बादल को एक ही पंक्ति में कोमल गर्जन करने हेतु कहते हैं, साथ ही घनघोर गरज का भी निवेदन करते हैं। “झूम-झूम मृद गरज-गरज घन घोर! राग अमर! अम्बर में भर निज रोज !” निराला ने बंगाल की भाषिक संस्कृति को आत्मसात किया था। उन्होंने संस्कृत तथा अंग्रेजी घर पर सीखी। बंगाल में रहने के कारण उनका बंगला पर असाधारण अधिकार था। उन्होंने हिंदी भाषा ‘सरस्वती’ और ‘मर्यादा’ पत्रिकाओं से सीखी। रवीन्द्र नाथ ठाकुर, नजरूल इस्लाम, स्वामी विवेकानंद, चंडीदास और तुलसी दास के तत्वों के मेल से जो व्यक्तित्व बनता है, वह निराला है। चौदह वर्ष की आयु में उनका विवाह संपन्न हो गया। उनका वैवाहिक जीवन सुखी नहीं रहा। युवावस्था में ही उनकी पत्नी की अकाल मृत्यु हो गई। उन्होंने जीवन में मृत्यु बड़ी निकटता से देखी। पत्नी की मृत्यु के पश्चात् पिता, चाचा और चचेरे भाई, एक-के-बाद-एक उनका साथ छोड़ चल बसे। काल के क्रूर पंजो की हद तो तब हुई जब उनकी पुत्री सरोज भी काल के गाल में समा गई। उनका कवि हृदय गहन वेदना से टूक-टूक हो गया। निराला ने नीलकंठ की तरह विष पीकर अमृत का सृजन किया। जीवन पर्यन्त स्नेह के संघर्ष में जूझते-जूझते 15 अक्तूबर 1961 में उनका देहावसान हो गया। निराला जी छायावाद के आधार-स्तम्भों में से एक हैं। गहन ज्ञान प्रतिभा से उन्होंने हिंदी को उपर बढ़ाया। वे किसी वैचारिक खूंटे से नहीं बंधे। वे स्वतंत्र विचारों वाले कवि हैं। विद्रोह के पुराने मुहावरे को उन्होंने तोड़ा वे आधुनिक काव्य आंदोलन के शीर्ष व्यक्ति थे। सौंदर्य के साथ ही विद्रूपताओं को भी उन्होंने स्थान दिया। निराला की कविताओं में आशा व विश्वास के साथ अभाव व विद्रोह का परस्पर विरोधी स्वर देखने को मिलता है। उन्होंने प्रारंभ में प्रेम, प्रकृति-चित्रण तथा रहस्यवाद से संबधित कविताएं लिखी। बाद में वे प्रगतिवाद की ओर मुड़ गए। आधुनिक प्रणयानुभूति की बारीकियां निराला की इन पंक्तियों से झलकती हैं नयनों का-नयनों से गोपन-प्रिय संभाषण, पलकों का नव पलकों पर प्रथमोत्थान-पतन। पर विद्रोही स्वभाव वाले निराला ने अपनी रचनाओं में प्रेम के रास्ते में बाधा उत्पन्न करने वाले जाति भेद को भी तोड़ने का प्रयास किया है। “पंचवटी प्रसंग” में निराला के आत्म प्रसार की आकांक्षा उभर कर सामने आई है। छोटे-से घर की लघु सीमा में बंधे हैं क्षुद्र भाव यह सच है प्रिये प्रेम का पयोनिधि तो उमड़ता है सदा ही निःसीम भू पर प्रगतिवादी साहित्य के अंतर्गत उन्होंने शोषकों के विरूद्ध क्रांति का बिगुल बजा दिया। “जागो फिर एक बार”, “महाराज शिवाजी का पत्र”, “झींगुर डटकर बोला”, “महँगू महँगा रहा” आदि कविताओं में शोषण के विरूद्ध जोरदार आवाज सुनाई देती है। “विधवा” “भिक्षुक” और “वह तोड़ती पत्थर” आदि कविताओं में उन्होंने शोषितों के प्रति करूणा प्रकट की है। निराला के काव्य का विषय जहां एक तरफ श्री राम है वहीं दूसरी तरफ दरिद्रनारायण भी। वह आता- दो टूक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता। ...... चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए, और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए। जहां एक ओर जागो फिर एक बार कविता के द्वारा निराला ने आत्म गौरव का भाव जगाया है वहीं दूसरी ओर निराला ने विधवा को इष्टदेव के मंदिर की पूजा-सी पवित्र कहा है। जैसे गांधीजी में कहीं बेसुरापन नहीं मिलता वैसे ही साहित्य के क्षेत्र में निराला में भी कहीं बेसुरापन नहीं था। जिन्हें भारतीय धर्म, दर्शन व साहित्य का पता है वह निराला को समझ सकते हैं। मनुष्य को नष्ट तो किया जा सकता है किन्तु पराजित नहीं किया जा सकता। निराला के साहित्य में हमें यही संदेश मिलता है। वे बड़े साहित्यकार अवश्य थे, किंतु उससे भी बड़े मनुष्य थे। उनकी प्रकृति संबंधी कविताएं अत्यंत सुंदर और प्रभावशाली हैं। निराला की सांध्य सुंदरी जब मेघमय आसमान से धीरे-धीरे उतरती है तो प्रकृति की शांति, नीरवता और शिथिलता का अनुभव होता है। वहीं उनकी “बादल राग” कविता में क्रांति का स्वर गूंजा है। “अरे वर्ष के हर्ष ! बरस तू बरस-बरस रसधार! पार ले चल तू मुझको, बहा, दिखा मुझको भी निज गर्जन-गौरव संसार! उथल-पुथल कर हृदय- मचा हलचल- चल रे चल-” निराला ने भाव के अनुसार शिल्प में भी क्रांति की। उन्होंने परंपरागत छंदो को तोड़ा तथा छंदमुक्त कविताओं की रचना की। पहले उनका बहुत विरोध हुआ। परंतु बाद में हिंदी साहित्य मानों उनकी पथागामिनी हुई। भाषा के कुशल प्रयोग से ध्वनियों के बिंब उठा देने में वे कुशल हैं। “धँसता दलदल हँसता है नद खल् खल् बहता कहता कुलकुल कलकल कलकल ” उनका भाषा प्रवाह दर्शनीय है। उनकी अनेक कविताओं के पद्यांश शास्त्रीय संगीत और तबले पर पड़ने वाली थाप जैसा संगीतमय हैं। भाषा अवश्य संस्कृतनिष्ठ तथा समय-प्रधान होती है। पर कविता का स्वर ओजस्वी होता है। निराला के साहित्य में कहीं भी बेसुरा राग नहीं है। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व में कोई भी अंतरविरोध नहीं है। निराला जी एक-एक शब्द को सावधानी से गढते थे वे प्रत्येक शब्द के संगीत और व्यंजना का पूरा ध्यान रखते थे। बंगाल की काव्य परंपरा का उन पर प्रभाव है। निराला में संगीत के जो छंद हैं, वे किसी अन्य आधुनिक कवि में नहीं है। वे हमारे जीवन के निजी कवि हैं। हमारे दुःख-सुख में पग-पग पर साथ चलने वाले कवि हैं। वे अंतरसंघर्ष, अंतरवेदना, अतंरविरोध के कवि हैं। बादल निराला के व्यक्तित्व का प्रतीक है जो दूसरों के लिए बरसता है। आंचलिकता का सर्वाधिक पुट निराला की रचनाओं में मिलता है, जबकि इसके लिए विज्ञप्त हैं फणीश्वर नाथ रेणु। सर्वप्रथम आंचलिकता को कविता व कहानी में स्थान देने का श्रेय भी निराला को ही दिया जा सकता है। निराला की रचनाओं में बंगला के स्थानीय शब्दों के अलावा “बांसवाड़ा” के शब्द भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आंचलिकता के जरिए उन्होंने हिंदी की शब्द शक्ति बढ़ाई। निराला की मूल संवेदना राम की ही संवेदना हैं। डा. कृष्ण बिहारी मिश्र का कहना है कि “निराला के समग्र व्यक्तित्व को देखें तो निराला भारतीय आर्य परंपरा के आधुनिक प्रतिबिंब नजर आएंगे। ” आज जब संवेदना की खरीद-फरोख्त हो रही है, बाजार संस्कृति अपने पंजे बढ़ा रही है, ऐसे समय महाप्राण निराला की वही हुंकार चेतना का संचार कर सकती है। “आज सभ्यता के वैज्ञानिक जड़ विकास पर गर्वित विश्व नष्ट होने की ओर अग्रसर......... फूटे शत-शत उत्स सहज मानवता-जल के यहां-वहां पृथ्वी के सब देशों में छलके ” निराला के व्यक्तित्व में ईमानदारी व विलक्षण सजगता साफ झलकती थी। जो भी व्यक्ति ईमानदार होगा, उसकी नियति भी निराला जैसी ही होगी। उनमें वह दुर्लभ तेज था, जो उनके समकालीन किसी अन्य कवि में नहीं दिखता। निराला ने अपने जीवन को दीपक बनाया था, वे अंधकार के विरूद्ध आजीवन लाड़ने वाले व्यक्ति थे। निराला ने कभी सर नहीं झुकाया, वे सर ऊँचा करके कविता करते थे। तभी उनका कुकुरमत्ता गुलाब को फटकार लगाने की हैसियत रखता है। “सुन बे गुलाब ! पाई तूने खुशबू-ओ-आब ! चूस खून खाद का अशिष्ट डाल से तना हुआ है कैप्टलिस्ट ! वे अनलक्षितों के कवि थे । “ वह तोड़ती पत्थर इलाहाबाद के पथ पर ।” निराला की दृष्टि वहां गयी जहां उनके पहले किसी की दृष्टि नहीं पहुंची थी। सरोज स्मृति में जिस वात्सल्य भाव का चित्रण हुआ है वह कहीं और नहीं मिलता। निराला ने अपनी पुत्री सरोज की स्मृति में शोकगीत लिखा और उसमें निजी जीवन की अनेक बातें साफ-साफ कह डाली। मुक्त छंद की रचनाओं का लौटाया जाना, विरोधियों के शाब्दिक प्रहार, मातृहीन लड़की का ननिहाल में पालन-पोषण, दूसरे विवाह के लिए निरंतर आते हुए प्रस्ताव और उन्हें ठुकराना, सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए एक दम नए ढ़ंग से कन्या का विवाह करना, उचित दवा-दारू के अभाव में सरोज का देहावसान और उस पर कवि का शोकोद्गार। कविता क्या है पूरी आत्मकथा है। यहां केवल आत्मकथा नहीं है, बल्कि अपनी कहानी के माध्यम से एक-एक कर सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है। ये कान्यकुब्ज-कुल कुलांगार खाकर पत्तल में करें छेद इके कर कन्या, अर्थ खेद, यह निराला ही हैं, जो तमाम रूढ़ियों को चुनौती देते हुए अपनी सद्यः परिणीता कन्या के रूप का खुलकर वर्णन करते हैं और यह कहना नहीं भूलते कि ‘पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची!’। है किसी में इतना साहस और संयम। चुनौती देना और स्वीकार करना निराला की विशेषता थी। विराट के उपासक निराला की रचनाओं में असीम-प्रेम के रहस्यवाद की भावना विराट प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त होती है। निराला के साहित्य में गहरी आध्यात्म चेतना, वेदांत, शाक्त, वैष्णवधारा का पूर्ण समावेश है । जीवन की समस्त जिज्ञासाओं को निराला ने एक व्यावहारिक परिणति दी। एक द्रष्टा कवि की हैसियत से निराला ने मंत्र काव्य की रचना की है। विराट के उपासक निराला की रचनाओं में असीम-प्रेम के रहस्यवाद की भावना विराट प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त होती है। निराला ने जीवन में अपने व्यक्तिगत दुःख तो सहे ही, उन्होंने दूसरों के दुःखों को भी सहा। वे दूसरों की पीड़ाओं से स्वयं दुःखी हुए। इसलिए संसार-भर की व्यथाओं ने उन्हें तोड़ डाला। वे अपनी पीड़ाओं से अधिक दूसरों की पीड़ाओं से व्यथित थे। वे केवल महान साहित्यकार ही नहीं थे, वे उससे भी बड़े मनुष्य थे। उनकी मानवता कला से ऊपर थी। वे कला और साहित्य का चाहे सम्मान न करें , किंतु मानवता का अवश्य सम्मान करते थे। उनकी महानता इस बात में थी कि वे छोटों का खूब सम्मान करते थे। उनका कहना था कि गुलाम भारत में सब शुद्र हैं। कोई ब्राह्मण नहीं है। सब समान हैं। यहां ऊंच नीच का भेद करना बेकार है। हमें जाति के आधार पर ऊँचा कहलाने की आदत छोड़ देनी चाहिए। उनके इन्ही विचारों के कारण भारत के परंपरावादी, जातीवादी, ब्राह्मणवादी लोग उनसे चिढ़ते थे। वे निराला को धर्म-भ्रष्टक मानते थे। परंतु दूसरी ओर, गरीब किसान और अछूत माने जाने वाले लोग उन्हें बहुत चाहते थे। उनकी सरलता के कारण जहां पुराणपंथी उनसे कटते थे, वहीं गरीब किसान और अछूत उन पर जान देते थे। वे चतुरी चमार के लड़के को घर पर पढ़ाते थे। इसी प्रकार वे फुटपाथ के पास बैठी पगली भिखारिन से बहुत सहानुभूति रखते थे। जैसे गांधीजी में कहीं बेसुरापन नहीं मिलता वैसे ही साहित्य के क्षेत्र में निराला में भी कहीं बेसुरापन नहीं था। जिन्हें भारतीय धर्म, दर्शन व साहित्य का पता है वह निराला को समझ सकते हैं। मनुष्य को नष्ट तो किया जा सकता है किन्तु पराजित नहीं किया जा सकता। निराला के साहित्य में हमें यही संदेश मिलता है। वे हिंदी साहित्य प्रेमियों के हृदय सम्राट हैं। वे बड़े साहित्यकार अवश्य थे, किंतु उससे भी बड़े मनुष्य थे। |
शनिवार, 18 सितंबर 2010
साहित्यकार-२ महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
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महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी पर बढ़िया सरगार्वित पोस्ट...... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्गर्भित पोस्ट.आभार..
जवाब देंहटाएंनिराला जी को नमन .यह पो्स्ट प्रस्तुत करने के लिये आपको हार्दिक धनयवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंनिरालाजी के बारे में यह लेख पढकर बहुत अच्छा लगा। बधाई!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमहाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की रचनाओं को प्रस्तुत करने लिए आभार।
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शिव की तरह हलाहल पीकर भी जिसने अमृत छंदों की रचना की वैसे नीलकण्ठ निराला का परिचय व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए एक निधि है, अमूल्य निधि. इनकी मुक्त छंद की रचनाओं का प्रवाह विस्मित करता है. ऐसे फ़कीराना कवि के चरणों में हमारे श्रद्धा सुमन! आपको इस रचना के लिए धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं@ महेन्द्र मिश्र जी, बूझो तो जानो, शमीम जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ कोरल जी,दिव्या जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ अनूप जी,
जवाब देंहटाएंशायद आप पहली बार इस ब्लॉग पर आए। आभार। स्नेह बनाए रखेंगे।
धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ संवेदना के स्वर,
जवाब देंहटाएंआपकी बातें सही है। सारगर्भित और प्रेरक टिप्पणी के लिए धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
निराला जी पर बहुत सुन्दर लेख लिखा है ...उनके लिखे विषयों से भी अच्छा परिचय मिला ..आभार
जवाब देंहटाएं@ संगीता जी,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेरक बातों से मनोबल बढता है। धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
निराला जी की जीवनी पर यह लेख बहुत ही रुचिकर है और ज्ञानवर्धक है .. .
जवाब देंहटाएंनिराला जी पर बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. .... आभार। इस अवसर पर हम आप से कुछ शेयर करना चाहते है ।हमारे पास निराला जी के एक पाण्डुलिपी की फोटो है जो सन् 09-12-53 है जो हमने इलाहाबाद म्यूजियम में गार्ड की नजरों से बचकर निकाली थी जो इस लिंक पर है... http://www.orkut.co.in/Main#AlbumZoom?gwt=1&uid=11733698565820094814&aid=1269666388&pid=1269691589630
जवाब देंहटाएं@ नूतन जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ उपेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंआपने दुर्लभ सामग्री उपलब्ध करा दी है।
इसके लिए आभार शब्द भी छोटा पड़ जाएगा।
निराला जी की पांडुलिपी
अतीत को सभालकर सभी को बराबर देना अच्छा लगा
जवाब देंहटाएं@ प्रेम नारायण जी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा आपका कथन।
आभार।
मनोज जी ,
जवाब देंहटाएंनिराला जी पर जो प्रस्तुति डी है वह बहुत दिनों बाद देखने को मिली है और ब्लॉग पर तो मैं पहली बार पढ़ रही हूँ. उनकी 'भिक्षुक' मुझे बहुत पसंद है.
इस कार्य के लिए आप बधाई के पात्र है.
महा कवि निरालाजी!..साहित्यजगत की एक अमर हस्ति!...बहुत सार्थक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंनिराला जी के बारे में
जवाब देंहटाएंजानकारी अच्छी लगी
इसके लिए आपको
आभार
निराला जी पर बड़ी ही सारगर्भित निराली पोस्ट !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं....
निराला जी को श्रद्धांजलि स्वरूप एक रचना थी मेरी..उसी के कुछ अंश
जवाब देंहटाएंहम भी तो कुछ भी कर न सके
धिक् जीवन को, अभिलाषा को
कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली हमने
बस कहकर 'महाप्राण' उनको
'धन्ये, मैं पिता निरर्थक था़
कुछ भी तेरे हित कर न सका'
ये शब्द लगे सार्थक उनके
'सरोज स्मृति' को जो भुला न सका
nice
जवाब देंहटाएं... aabhaar !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति! महाकवि निराला जी तो छात्र जीवन से मेरे प्रेरणा स्रोत्र रहें हैं.
जवाब देंहटाएंव्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक
सूर्यकांत त्रिपाठीजी सही अर्थों में निराला थे।
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत त्रिपाठीजी सही अर्थों में निराला थे।
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी पर बढ़िया सरगार्वित आलेख. आभार.
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक.
जवाब देंहटाएंनिराला जी का चरित्र चित्रण मन को छू गया ।
जवाब देंहटाएंनिराला जी वास्तव में निराले थे | उनकी उपमा किसी से नहीं दी जा सकती | निराला जी के बारे में इतना रोचक व सारगर्भित लेख के लिए हार्दिक धन्यवाद |
जवाब देंहटाएं