शनिवार, 4 दिसंबर 2010

चोर चोर मौसेरे भाई !

                चोर कहाँ से घुसा ये समझ नहीं आया, क्योंकि बाहर तो कड़ा पहरा है और फिर नामी गिरामी हस्ती शहर के. चोर तो आखिर उतर कर आ  ही गया.सारे कमरे बंद - चोर को कुछ समझ नहीं आया तो उसने आँगन में लगे ए सी को ही खोलने की सोची. अन्दर मालिक को नींद नहीं आ रही थी, उनके कई साथी घोटाले में पकड़ चुके थे और उनको डर था कि कहीं वे भी न नप जाएँ. बाहर आहट सुनी तो कमरे से निकल कर बाहर आये. चोर को देखा तो पकड़ लिया --
" काय बे हमावई  घर मिलो तो चोरी करन कों."
"और कितें  जाएँ? तुमऊँ तो हमाएइ बिरादरी के हो."
"का बकत हो? उतारें जूता."
"काय भैया जूता काय उतारत हो , हम और तुम एकई काम नईं करत हैं."
"काय बे हम चोरी करत हैं?"
"देखो, हमऊं रात में जगत हैं और तुमऊँ  जगत हौ. हम बाल बच्चन के पेट पालवे कों घर घर झाँकत है और कूद परत हैं. तुमऊँ  रात भर जगत हौ काय के तुमने इत्तो चुरा के धरौ है कि बाकी रखवारी करने है."
"का बकत हौ? पुलिस को फ़ोन करें का?"
"कर देव, हम तो चार दिनन में  छूट जैहें अपनी सोच लेव."
"अपनी का सोचें, कौन सो डाको  डारो है."
"हमे को बताउत हो, अरे हम तो चोर हैं, पेट पालन के लानें जा धंधा करत है और तुम तुमाव पेट भरतइ  नैंयाँ . खैहो तुमऊँ पेटई  में लेकिन कहाँ से कितनों मार लें जाकी चिंता में मारे जात हौ और जब मार लाओ तो जा चिंता खाय जात है कि कहूं कबहूं भंडा फूट गओ तो का हौहे. हमाए मौ में कालिख न पुतहै  अगर तुम पकर गए तो धोती कौ नकाब बनेहौ."
"एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी."
"काय की सीना जोरी, हमें अपनौ काम करन देव और तुम अपनौ करो. हम तुम्हें न पकरहै और न तुम हमें पकरो." 
"अच्छा तो हम तुमें अपनौ सामान ले जान दें."
"काय नईं , हम करें तो चोरी और दूसरौ चुराय दिन दहाड़े और नाम बाको सुविधा शुल्क, घोटाला, काला बाजारी - का जा चोरी नईंयां  . सबई तो चोरी है, बस नाम बदल गए और हम रात में करत है बाकी सब दिन दहाड़े करत हैं."
"भगत हौ की बुलाएं चौकीदार कौं. "
"काय बुलात हो? एक दिन वेई चौकीदार तुमाई चोरी पे हँसहैं सो हम तो जात हैं अपनी सोच लेव."
               कहते हुए चोर जिस रास्ते से आया था वही वापस छत  पर चढ़ गया और मालिक उसकी बात का मर्म समझते रह गए.

9 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान हालातों पर व्यंग बहुत प्यारा है. भाषा भी बढ़ी लज्ज़तदार इस्तेमाल की गई है इस लेख में. पढ़कर मज़ा आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  2. सटीक व्यंग्य। आभार इस प्रस्तुति के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी और तीखी व्यंग्य रचना . काश ! असली चोर इससे कुछ सबक लें . बहरहाल इस धारदार व्यंग्य के लिए बधाई . कृपया यहाँ भी पधारें --
    'दिल्ली के दलालों से दहलने लगा देश '
    swaraj-karun. blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सटीक व्यंग्य ...आज के हालात उभरकर सामने आये हैं ...शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  5. इसको कहते हैं बिना लाग लपेट के रिश्तेदारी फरियाना!!
    रेखा जी! जबर्दस्त है यह व्यंग्य!!

    जवाब देंहटाएं
  6. बड़े सटीक और संक्षिप्त ढंग से आज की हकीकत बता दी आपने.....

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी लेखनी हमेशा सार्थकता के तरफ डोलती है
    आभार

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें