बुधवार, 8 दिसंबर 2010

हिन्दी साहित्य की विधाएं - संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत

हिन्दी साहित्य की विधाएं - संस्मरण और यात्रा-वृत्तांत
मेरा फोटो

मनोज कुमार

हिन्दी साहित्य में गद्य के अंतर्गत निबंध, रेखचित्र, जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, साक्षात्कार, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत आदि शामिल हैं।
संस्मरण को हम सम्पूर्ण स्मृति कह सकते हैं। इस तरह की स्मृति जो हमारे आज को अधिक सार्थक, समृद्ध और संवेदनशील बना दे। हमारी स्मृति का एक सिरा हमारे वर्तमान से बंधा होता है, तो दूसरा अतीत से। संस्मरण अतीत और वर्तमान के समय सरिता के बीच एक पुल है, जो दोनों किनारों के बीच संवाद का माध्यम बनता है।
हमारे कई ऐसे बीते पल होते हैं जो अनुभव के रूप में हमारे वर्तमान में जीवित होते हैं। इनसे हमारा एक संबंध-सा बन जाता है। यह अतीत हमारे आज को मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करता है। इसकी सहायता से संस्मरणकार समय की धुंध में ओझल होती ज़िन्दगी को फिर से रचने का प्रयास करता है।
बीते कल के कुछ पात्र, कुछ स्थान, कुछ दृश्य, कुछ घटनाओं के साथ हमारी एक आत्मीयता हो जाती है। एक संबंध बन जाता है। हम उन स्मृतियों को संजोए रहते हैं। संबंधों की यही आत्मीयता और स्मृति की परस्परता ही संस्मरण की रचना प्रक्रिया का मूल आधार है।
इस तरह की रचना में महज सूचना नहीं होता। बल्कि एक जीवंत अस्तित्व होता है जो हमारी बीती ज़िन्दगी के अनेक आवर्तों में लिपटा होता है। जो संस्मरण लिख रहा होता है, वह उन आवर्तों की पहचान करता है। इस तरह से जब संस्मरण की रचना की जा रही होती है तो एक संस्मरणकार के समक्ष स्मृति यानी अतीतता होती है। दूसरे उसमें संबंध भाव होता है। फिर उसका अपना आत्मानुभव होता है। और अंत में स्वयं को खोजने-पहचानने की ईमानदार कोशिश होती है।
संस्मरण न तो हम सूचना के आधार पर लिख सकते हैं और न ही साक्षी भाव से। स्मृति तो अतीत की वर्तमानता की बोधक होती है। इसलिए एक साथ जीने और बीतने से मिला भाव संस्मरण लिखने के लिए आधार भूमि होती है। साथ ही साथ संस्मरण में रचनाकार ख़ुद को भी प्रकाशित करता चलता है। इसे कल्पना करके नहीं लिखा जा सकता। क्योंकि आत्मीयता, अनुभव की प्रत्यक्षता और घटना एवं परिवेश की सत्यता इसका आधार तैयार करते हैं। इसमें व्यक्ति का संबंध होता है। ऐसा संबंध, किसी भी स्तर पर रचनाकार की ज़िन्दगी को अर्थ देता है, उसमें भराव या खालीपन पैदा करता है, वह संस्मरणीय हो सकता है।
आज काफ़ी संस्मरण लिखे जा रहे हैं, ब्लॉग जगत में भी। शिखा वार्षणेय, रश्मि रवीजा के कई संस्मरण एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति हैं। जबकि एक पूरा ब्लॉग ही समर्पित है संस्मरण के लिए – और यह ब्लॉग है चला बिहारी ब्लॉगर बनने । संस्मरण को आज एक स्वतंत्र पहचान मिली है। शिखा जी एवं रश्मि जी के संस्मरण पढते वक़्त लगता है कि जीवन के लौकिक अनुभवों को संबंधों के प्रकाश में सहेजने की इनकी आकांक्षा ने इन रचनाओं को जन्म दिया है। सलिल जी के संस्मरण अपनी माटी से जुड़े होने का जहां एक ओर अहसास कराते हैं, वहीं दूसरी ओर इसकी जीवंतता और सरसता आकर्षित करती है। इनके कुछ पोस्ट के लिंक नीचे दिए हैं।
फ़ेसबुक की दीवार से अंतरिक्ष दर्शन
जाके बैरी सम्मुख ठाड़े, वाके जीवन को धिक्कार
टॉल्सटॉय,गोर्की और यह नन्हा दिमाग
http://shikhakriti.blogspot.com/
कुछ मस्ती कुछ तफरी
http://shikhakriti.blogspot.com/2010/11/blog-post_11.html
वो कौन थी ?
http://shikhakriti.blogspot.com/2010/06/blog-post.html
छोटी सी ये दुनिया...पहचाने रास्ते हैं...
पेंटिंग की बदौलत मिले कुछ यादगार पल..
हालाकि संस्मरण एक मिश्रित विधा है जिसमें कहानी, निबंध, जीवनी, आत्मकथा और रेखाचित्र की कई विशेषताएं संशलिष्ट हैं, परन्तु इसकी एक अलग पहचान भी है। निबंध के रूप में संस्मरण लिखना अपेक्षाकृत नई विधा है। संस्मरण का आधार स्मृति है, जबकि निबंध का विचार। संस्मरण में घटना एवं संबंध सत्य पर आधारित होते हैं, जबकि निबंध में कल्पनाशीलता होती है।
कहानी और संस्मरण का ढांचा मिलता-जुलता है। कई बार अच्छे ढंग से लिखे गए संस्मरण और कहानी में अंतर नहीं दिखता। महादेवी वर्मा के ‘अतीत के चलचित्र’ की रचनाएं संस्मरण होते हुए कहानी का-सा प्रभाव पैदा करती है। जबकि शिवपूजन सहाय की ‘कहानी का प्लाट’ संस्मरण का आभास देती है। लेकिन कहानी और संस्मरण अलग-अलग विधाएं हैं। कहानी में कल्पना होती है, यह अलग बात है कि कल्पना एवं कला का संस्पर्श पाकर अवास्तविक भी वास्तविक लगने लगती है। ‘मनोज’ ब्लॉग पर ‘मेरे छाता की यात्रा कथा’ के अंतर्गत प्रस्तुत कहानियों को कई पाठकों ने संस्मरण मान लिया। तो जहां कहानियों में सत्य आभासित होता है, वहीं संस्मरण में सृजित होता है। कल्पना का प्रयोग यहां भी होता है, लेकिन इसकी भूमिका संयोजन, अन्वय (सम्बंध स्थापित करना) एवं रचनात्मक प्रभाव पैदा करने की होती है। ‘मनोज’ ब्लॉग पर हमने ‘बूटपॉलिश’ संस्मरण में बूटपॉलिश की कल्पना रचनात्मक प्रभाव पैदा करने के लिए ही की थी।
संस्मरण में रचनाकार शुरु से लेकर अंत तक एक आलंबन (सहारा) के साथ गहरी आत्मीयता से जुड़ा होता है। कहानी में यह बात नहीं है। जीवनी और आत्मकथा संस्मरण की तरह अतीत के सत्य पर आधारित होती हैं। जीवनी एक व्यक्ति का इतिहास है, इसलिए इसमें रचनाकार का दृष्टा-भाव होता है, भोक्ता भाव नहीं। जबकि आत्मकथा में आत्मपरकता होती है। आत्मकथा लेखक अनुभव एवं स्मृति के प्रकाश में अपने जीवन का पुनरावलोकन करता है। संस्मरण में जीवनी और आत्मकथा के कुछ तत्त्व हो सकते हैं, लेकिन ये तीनों ही स्वतंत्र विधाएं हैं।
जीवनी में जीवनीकार का अपना जीवन नहीं होता। जबकि संस्मरण में रचनाकार स्वयं का अनुभूत सत्य लिख रहा होता है। इसी तरह आत्मकथा में रचनाकार का अपना जीवन केन्द्र में होता है जबकि संस्मरण में स्मरणीय व्यक्ति या घटना। आत्मकथा में संस्मरण के टुकड़े हो सकते हैं। किन्तु संस्मरण का विस्तार, जीवनी या आत्मकथा की तुलना में छोटा होता है।
एक विशिष्ट विधा के रूप में यात्रा वृत्तांतों का लेखन एक नई शुरुआत है। गद्य की अनेक नई विधाओं की तरह इसका श्रेय भी पश्चिमी साहित्य को जाता है। पर हिंदी साहित्य में यात्रा वृत्तांत पश्चिमी साहित्य से अलग और मौलिक इस रूप में है कि इसमें अपनी परंपरा, देश, समाज और शिल्प की निजी विशेषताएं समाहित हैं।
हिंदी साहित्य में यात्रा-वृत्तांत का विपुल भंडार नहीं है। इसका प्रमुख कारण तो यह है कि इसके लिए लेखक का वास्तविक यात्रा पर निकलना ज़रूरी है। यह यात्रा सिर्फ़ पर्यटक की भांति नहीं होनी चाहिए। इसमें यात्रा हर स्थल, मानव संपर्क, रास्ते, देश-काल, भिन्नता और विविधता में गहरे प्रवेश करने वाली दृष्टि के साथ होनी चाहिए। साथ ही अपने समस्त अनुभव-ज्ञान से रचना को संपुष्ट करने की क्षमता भी रचनाकार में होनी चाहिए। साथ ही जब तक पाठक को पूरी तरह शामिल करने की क्षमता उस वृत्तांत में नहीं होगी, तब तक वह गूंगे का गुड़ ही बनी रहेगी। इसलिए यात्रा-वृत्तांत में अनुभव और रोमांच के साथ-साथ शैलीगत विशेषताओं की योग्यता भी रचनाकार को सफलता प्रदान करती है। इस विधा को साधना एक कठिन कार्य है। .. और ब्लॉग जगत में इस साधना सिद्धहस्त शिखा वार्षणेय के कई यात्रा-वृत्तांत काफ़ी रोचक और पठनीय है। जैसे
दो दिन, स्कॉटस और बैग पाइप
-http://shikhakriti.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
वेनिस की एक शाम
http://shikhakriti.blogspot.com/2010/01/blog-post_18.html
ये कहाँ आ गए हम ...." मेरी स्विस यात्रा
-http://shikhakriti.blogspot.com/2010/07/blog-post_07.html
मानव जीवन में यात्रा के सर्वोपरि महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए उर्दू का यह शे’र बहुत खास है,
सैर कर दुनिया की गाफिल ज़िन्दगानी फिर कहां।
ज़िन्दगानी-गर रही तो नौजवानी फिर कहां।
यात्रा-वृत्त एवं संस्मरण कुछेक रूप में एक दूसरे से जुड़े हैं। बल्कि यह कह सकते हैं कि संस्मरण का ही विशिष्ट रूप है। यात्रा-वृत्त यायावर के अनुभव, सौन्दर्य बोध और प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति है। शिखा जी अपने यात्रा-संस्मरण से हमें यदा-कदा परिचय कराती रहती हैं। हमने भी ‘गंगा सागर’ और ‘मसूरी’ के यात्रा-संस्मरण ‘मनोज’ ब्लॉग पर लिखे हैं। यात्रा-संस्मरण का मूल तत्त्व भौगोलिक विस्तार, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं महत्त्वपूर्ण घटनाए शामिल होती हैं। यात्रा-संस्मरण में समाज, इतिहास, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, राजनीतिक चहल-पहल, पर्यावरण चिंता आदि समाहित हो सकते हैं। अज्ञेय द्वारा रचित ‘एक बूंद सहसा उछली’ और निर्मल वर्मा की ‘चीड़ों पर चांदनी’ उत्कृष्ट कोटि का यात्रा-संस्मरण हैं।
जो संस्मरण के सबसे नज़दीक है – वह है रेखाचित्र। कई बार तो इनको पढते वक़्त एक ही विधा का भास होता है। सैद्धांतिक स्तर पर हम इसके अंतर को स्पष्ट कर भी दें, पर रचनात्मक स्तर पर ये एक-दूसरे से गुंथे हैं। महादेवी वर्मा की ‘स्मृति की रेखाएं’ रेखाचित्र है, पर संस्मरण भी। गहराई से देखने पर अंतर भी है। रेखाचित्र में रूपाकृति पर बल दिया जाता है। इसमें अतीत, घटनाओं से नहीं, रूप की स्मृति से उकेरा जाता है। जबकि संस्मरण के केन्द्र में घटनाओं और मनोभावों से बना हुआ अतीत होता है। दूसरा अंतर यह है कि रेखाचित्र का अतीत वस्तुगत होता है, जबकि संस्मरण का अतीत आत्मगत। तीसरी प्रमुख बात है कि रेखाचित्र में रचनाकार विषय को उसकी स्थिरता में पकड़ता है, जबकि संस्मरण में अनुभव की गत्यात्मकता में। चौथी बात यह कि रेखाचित्र में रचनाकार स्मृति को चित्रात्मक धरातल पर उपलब्ध कराता है, जबकि संस्मरण में संबंधों की परतदार एवं गतिशील स्मृतियां होती हैं। पांचवें रेखाचित्र में लेखक का व्यक्तित्व अनुपस्थित हो सकता है, जबकि संस्मरण में लेखक के जीवन का उद्घाटन भी साथ-साथ चलता रहता है। और अंत में रेखाचित्र पर्यवेक्षण प्रधान होता है, संस्मरण संवेदन प्रधान। संवेदनशीलता संस्मरण का प्रधान गुण है।
बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक तक संस्मरण एक विधा के रूप में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया था। हालाकि संस्मरण लेखन का सिलसिला बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से शुरु हो चुका था, पर एक विधा के रूप में इसकी पहचान पांचवें दशक में ही बन पाई। पहला महत्त्वपूर्ण नाम इस विधा में आता है पद्मसिंह शर्मा का। १९२९ में उनके संस्मरण ‘पद्म पराग’ का प्रकाशन हुआ। इसमें महा कवि अकबर, सत्यनारायण कविरत्न, भीमसेन शर्मा आदि पर मार्मिक संस्मरण हैं। इसमें भावुकता के साथ-साथ हास्य-विनोद भी है।
बनारसी दास चतुर्वेदी का ‘संस्मरण’ नाम से १९५२ में पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें श्रीधर पाठक, द्विजेन्द्र नाथ ठाकुर, गणेश शंकर विद्यार्थी, आदि पर प्रभावशाली ढंग से लिखा गया है। छोटी-छोटी घटनाओं और पत्र के सहारे संस्मरण की रचना प्रक्रिया की गई है।
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ ने १९५६ में ‘दीप जले शंख बजे’ शीर्षक पुस्तक लिखी थी। इनके संस्मरण में साधारण के प्रति आकर्षण एवं स्वस्थ एवं नैतिक जीवन पर बल दिया गया है।
महादेवी वर्मा द्वारा १९५६ में रचित ‘पथ के साथी’ में रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, प्रसाद, निराला, पंत पर अद्भुत संस्मृति की रचनाएं हैं।
अज्ञेय द्वारा रचित ‘वसंत का अग्रदूत’, रामवृक्ष बेनीपुरी का ‘माटी की मूरतें’, पांडेय बेचन शर्मा उग्र का ‘व्यक्तिगत’, उपेन्द्र्नाथ अश्क का ‘मंटो – मेरा दुश्मन’, जैनेन्द्र कुमार का ‘ये और वे’, माखनलाल चतुर्वेदी का ‘समय के पांव’, जगदीशचन्द्र माथुर का ‘दस तस्वीरें’, रामधारी सिंग दिनकर का ‘लेक देव क=ने हम कुछ’, बहुत ही उत्कृष्ट कोटि के संस्मरण हैं।
संस्मरण स्मृति से साक्षात्कार है। वह समय में लौटना नहीं है, बल्कि गुज़रे समय को जीवन की वर्तमानता से जोड़ने का माध्यम है। इस रूप में वह इकहरे वर्तमान की रिक्तता को भरने वाला सशक्त रचना माध्यम है। संस्मरण रचना का मूल लक्ष्य मूल्यवान स्मृति को सुरक्षित रखना होता है। संस्मरण रचना वर्तमान को एक दिशा, पहचान और संस्कार देती है। हमारा वर्तमान तात्कालिकता वाला होता है, एक आयामी होता है, इसमें सूचनाओं की प्रधानता होती है! हम यदि अतीत की प्रतिमा पर पड़ी धूल को झाड़कर उन्हें बार-बार पहचानने योग्य बना दें – तो एक सार्थक संस्मरण तैयार हो सकता है।
.... तो, देरी किस बात की। टटोलिए अपने अतीत को, और रच डालिए एक संस्मरण। हां, अपने संस्मरण के लिंक राजभाषा हिन्दी ब्लॉग को controler.rajbhasha.blog@gmail.com पर मेल करना न भूलें। हो सकता है ब्लॉग जगत और संस्मरणात्मक रचनाएं विषय पर एक शोध पत्र तैयार हो जाए।

31 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय मनोज जी
    नमस्कार
    हिंदी साहित्य की गद्य विधाओं के बारे में जानकारी देकर आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है, ...आपके लेख की खास बात यह है कि आपने इन विधाओं को परिभाषित करने का प्रयास किया है ., आपने कुछ लिंक्स भी दिए हैं , प्रयास करूँगा इन तक पहुँचने का ... और अंत में एक सम्भावना भी जताई है ...शोध पत्र की...हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह , आज तो एक अन छुआ विषय चुना है ..गद्य की विभिन्न विधाओं से परिचय अच्छा लगा ..विशेष रूप से संस्मरण और यात्रा वृतांत ....

    आपका लेखन इतना जीवंत है की लेख मन पर असर कर गया ...आभार इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्कार सर!
    हिंदी गद्य परंपरा के विविध रूपों से परिचय करने हेतु आभार. आप बहुत अधिक श्रम करते हैं..., मै जब भी नेट पर बैठता हूँ आपकी बत्ती ग्रीन दिखाई पड़ती है. बात करने की अभिलाषा तो बहुत होती है लेकिन आपको साहित्य सृजन में बाधा न पहुचे इस भय से शांत हो जाता हूँ. आप से प्रत्येक व्यक्ति को सोच, चिंतन और कर्मशीलता की प्रेरणा लेनी चाहिए. आपकी जजिविशा बनी रहे, नए सन्देश, नयी विधा से परिचि करते रहे और हमलोग अनुशरण करते रहे यही कामना है. बहुत ही रोचक जानकारी ...आभार..

    जवाब देंहटाएं
  4. केवल राम जी, कुछ लोगों को शिकायत रहती है कि ब्लॉग पर स्तरीय और गंभीर आलेख नहीं आ रहे हैं। हमने तो अपनी तरफ़ से प्रयास ज़ारी रखा है। और यह भी देखा है कि कई ऐसे ब्लॉग हैं जहां अच्छी साहित्यिक रचनाएं आ रही हैं। आज तो सिर्फ़ कुछ लिंक्स उदाहरण के तौर पर दिया है। पर संस्मरण और यात्रा वृतांत ही लें तो कई ब्लोगर हैं जो इस विषय पर उच्च कोटि की रचनाएं दे चुके हैं।
    मैं तो अन्य पाठकों से भी निवेदन करूंगा कि उनकी नज़र में यदि ऐसे लिंक हों तो दें ताकि इस संकलन को और आगे बढाया जाए।

    जवाब देंहटाएं
  5. संगीता जी हम यही प्रयास करते हैं कि इस ब्लॉग पर साहित्य, खासकर हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं से परिचित कराऊं। यदि तनिक भी अपने प्रयास में सफल हुआ हूं तो यह हमारा प्रयास सफल होने जैसा होगा।
    प्रोत्साहन के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. डॉक्टर साहब, आपकी बातों ने दिल को स्पर्श किया। आभार प्रकट करने के लिए शब्द नहीं हैं। हम यही चाहते हैं कि राजभाषा हिन्दी के विभिन्न आयमों से ब्लॉग जगत का परिचय हो। प्रोत्साहन के लिए आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है। आपका ये प्रयास सभी के लिये उपयोगी है। क्या हाईकु विधा के बारे मे भी कुछ बतायेंगे। बिना नियम जाने लिख तो रही हूँ लेकिन सही गलत पर अभी अश्वस्त नही हूँ। इसके लिये धन्यवादी हूँगी। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  8. आपने संस्मरण लिखने की विधा पर बढ़िया प्रकाश डाला...हम तो बस यूँ ही , लिख जाते हैं.

    मेरा उल्लेख करने का आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं से बढ़िया परिचय हो रहा है आपके ब्लॉग के माध्यम से.. बढ़िया आलेख है.. यह अच्छा है कि आप उदहारण अपने बीच से देते हैं.. इस से विधा को जान्ने परखने में आसानी होती है...

    जवाब देंहटाएं
  10. मनोज जी! आज तो आपने दिमाग पर पड़े सारे ताले खोल दिए ..कैसे आपका आभार करूँ समझ में नहीं आ रहा. बहुत समय से कोशिश थी कि गद्य की इन विधाओं को ठीक तरह से समझ पाऊं आज आपकी कुशल लेखनी से यह बहुत ही सहज तरीके से संभव हो गया.इस पोस्ट को सहेज लिया है भविष्य में बहुत काम आएगी मेरे.
    बहुत बहुत धन्यवाद आपका..

    जवाब देंहटाएं
  11. आभार इस नवीन और जीवंत आलेख के लिए . हिंदी साहित्य की बिभिन्न विधाओ में संस्मरण और यात्रा वृतांत को अभी अपना मुकाम नहीं मिल पाया है . आपके इस प्रयास से इस दिशा में उचित कदम बढाया गया है . मै शिखा जी का पाठक हूँ और उनके लिखे संस्मरण और यात्रा वृतांत एकदम सजीव एवं जीवन्त होते है . इस सुन्दर एवं सार्थक प्रयास के लिए साधुवाद .

    जवाब देंहटाएं
  12. ... sahee likhaa aapane ... sansmaran lekhan par ek atyant prabhaavashaalee lekh ... badhaai !!!

    जवाब देंहटाएं
  13. "राजभाषा हिंदी " एक बहुत ही प्रतिष्ठित ब्लॉग बन चूका है. इस पर विविध प्रकार की जानकारियां समेकित करके दी जाती हैं जो पाठकों को आपके ब्लॉग की तरफ आकर्षित करती हैं. अवसर के अनुसार लेख देखकर आपकी निष्ठा का पता चलता है. इस ब्लॉग और आपकी और अधिक प्रतिष्ठा के लिए शुभकामना .

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध करवायी……………हर बार एक नयी विधा से परिचित करा देते हैं ……………आपका ह्रदय से आभार्।

    जवाब देंहटाएं
  15. हिंदी साहित्य की जिन विधाऔं का आपने उल्लेख किया है-प्रशंसनीय है। अभिव्यक्ति के लिए यह परम
    आवश्यक है कि हम अपने प्रकाश स्तम्भों के संबंध में अच्छी तरह से परिचित हों। इसी क्रम में मैने संस्मरण विधा को चुना है। अब तक मेरे दो संस्मरण-1. थोड़ी सी जगह 2. एक पल का पागलपन मेरे व्लाग पर आ चुके हैं। य़ह क्रम जारी रहेगा। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  16. यात्रा-वृत्तांत अब स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम का हिस्सा होते हैं मगर हमने मैट्रिकुलेशन में ही यात्र-वृत्तांत नामक पुस्तक पढ़ी थी जो हिंदी का एक वैकल्पिक पत्र होता था। जब मैंने इसका जिक्र किया,तो हिंदी साहित्य के मौजूदा छात्रों को इस पर विश्वास ही नहीं हुआ। कुछेक ब्लॉगरों के यात्रा-वृत्तांत भी बहुत रोचक रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  17. हिंदी की गद्य-विधाओं का आपने बड़ा ही सम्यक परिचय दिया है. समकालीन उदाहरण इसे और भी सुग्राह्य बनाते हैं. ये सभी हिंदी की आधिकारिक विधाएं हैं मगर व्यावसायिकता की अंधी में उड़े वक़्त की धूल जो इन पर जम गयी है इससे कतिपय समर्थ रचनाकारों को भी दुविधा अथवा संशय हो जाता है.... ! आपका सरल विश्लेषण ब्लॉग जगत के लिए वरदान है. धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  18. यात्रा वृत्तांत और संस्मरण दोनों ही मेरे पसंद की विधाएँ रही हैं। शुक्रिया संस्मरण और रेखाचित्र जैसी विधाओं की चर्चा करने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  19. हिंदी साहित्य की एक और विधा से परिचय हुआ और कई महान साहित्यकारों के संस्मरण से भी.. ब्लॉग जगत के शीर्षस्थ संस्मरण लेखिकाओं से भी मिले. संस्मरण तो मैं भी लिखता हूँ, हाँ यात्रा वृत्तांत कभी नहीं लिख पाया. कोशिश यही रहती है कि अपने अनुभव के माध्यम से दूसरोंकी पुरानी यादों को पुनर्जीवित कर सकूँ.

    जवाब देंहटाएं
  20. आज तो मुझे आपका ढेर सारा शुक्रिया अदा करना पड़ेगा...बहुत अच्छी जानकारी दी आज आपने संस्मरण,कहानी,आत्मकथा, जीवनी और यात्रा वृतांत पर. पूरा स्पष्टीकरण हो गया और दिमाग में बैठ गया है आज का ये ये पाठ. :) और ये सब आपके सशक्त लेखन की वजह से ही संभव हुआ है. मुझे तो आज इस प्रस्तुति को नोट्स की तरह बुकमार्क करके रख लेना चाहिए.

    बहुत बहुत आभारी हूँ.

    जवाब देंहटाएं
  21. वाक़ई शिखा जी और रश्मि रवीजा जी के संस्मरण और यात्रा वृतांत बहुत अच्छे होते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  22. आदरणीय मनोज जी
    नमस्कार
    हिंदी साहित्य की जानकारी देकर आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है आपका ये प्रयास सभी के लिये उपयोगी है।
    "माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  23. नवीनता लिए है यह पोस्ट ! क्लासिक - बुनावट को लेकर जागरूक हैं आप , यह मेरी अतिरिक्त खुशी का कारण है !
    शिखा जी के संस्मरण आधारित लेखन की तारीफ़ करता रहा हूँ ! इनमें चित्रात्मक प्रधानता रहती है !
    रश्मि जी के लेखन में भाषा कथा के सूत्र को ऐसे पकड़े रहती है की पाठक उस भाषा में रमता हुआ भी कथा के सूत्र से जुड़ा रहता है ! यह कुशलता भी महत्वपूर्ण है !

    अच्छी पोस्ट ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  24. मेरा पसंदीदा विषय, पर हाय रे समय की मार...............
    खैर कोई बात नहीं.......... जब समय मिलेगा, ये उपलब्ध तो हैं|

    जवाब देंहटाएं
  25. संस्मरण विधा की विस्तृत जानकारी प्राप्त कर अच्छा लगा।

    ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत ज्ञानवर्धक आलेख है। गद्य की कई सारी विधाओं से परिचय अच्छा लगा...

    जवाब देंहटाएं
  27. कभी इस ब्लॉग पर दस्तक दें.. मेरे मुताबिक़ मात्र संस्मरणों पर आधारित सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग में से एक है यह..
    http://daalaan.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  28. abe mote tere ko saf sidhi baat karni nahi ati kya...????

    जवाब देंहटाएं
  29. प्रेमचन्द्र29 जून 2020 को 11:58 am बजे

    सर आपका बहुत बहुत आभार आपने गद्य की चारों विधाओं को समेकित रुप में रखकर परिचय कराया ।यह बहुत ही ज्ञान वर्धक है आपका एक बार पुन आभार।

    जवाब देंहटाएं
  30. सर,आपका बहुत बहुत साभार।बहुत सारी अनछुए पहलुओं के बीच की बारीक जानकारी अपने उपलब्ध कराई।आत्म कथा-जीवनी-संस्मरण-रेखाचित्र के बीच का महीन अंतर और परस्पर संबंध को चित्रित करने का अनुपम कार्य।बहुत कुछ हमने भी सीखा।बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें