सोमवार, 18 जुलाई 2011

बदला / लघु कथा




हे प्रभु ! तुम बहुत दयालु हो ...कृपालु हो ... मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लो ...मेरी बहू को बेटा ही हो ..यह वरदान दे दो ...
मैं तुमसे कभी कुछ नहीं मांगूंगी ... बस इतनी कृपा दृष्टि मुझ पर कर दो ...संध्या बार बार यही प्रार्थना दोहरा रही थी  | यह सुन कर मंदिर में खड़ी स्त्री ने  पूछ लिया -
क्या आपको बेटियाँ पसंद नहीं ? या आप अपनी बहू से इतना प्यार करती हैं कि उसके बेटा हो  इसके लिए प्रार्थना कर रही हैं ? यदि बेटी हो गयी तो ? 
यह सुन संध्या बोली --- बेटी हो गयी तो  बहू की अच्छी किस्मत , बेटा तो मैं बदला लेने के लिए मांग रही हूँ ..
आखिर  बेटा बहू को भी तो पता चले कि  शादी के बाद बेटे  कैसे बदल जाते हैं |



संगीता स्वरुप

19 टिप्‍पणियां:

  1. बेटा तो मैं बदला लेने के लिए मांग रही हूँ ..

    मनोवैज्ञनिकता को अच्छी तरह से सामने लाया इस लघुकथा के माध्यम से ...!

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  2. दीदी,
    सटीक बदला!! बेटा जब मुंह फेर लेता है तो कैसा महसुस होता है। अहसास पास-ऑन!!

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  3. जन मानस की मनोदशा का मार्मिक चित्रण………अब शनै: शनै: बेटा व बेटी में फ़र्क करने वालों की संख्या घट रही है जो कि अच्छा संकेत है……।

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  4. संगीता जी कितने कम शब्दों में आपने इतने खूबसूरत भावों को सामने रखा है ...अद्भुत है आपकी लघुकथा ...!!
    बधाई.
    a very intelligent piece of work ...!!

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  5. ईश्वर से प्रार्थना है कि मनोकामना पूर्ण हो.बहू को बेटा ही हो.

    लघुकथा के नाम पर घर-घर की कथा लिखने का चातुर्य सशक्त कलम में ही सम्भव है. मुबारक हो.

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  6. अरे बाबा बदले के लिये भी बेचारा भगवान फ़ंस गया…………गज़ब की है लघुकथा।

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  7. :) गज़ब का बदला है ..क्या याद करेगी बहु भी और भगवन भी..

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  8. बहुत ही असरदार लघु कथा है संगीता जी ! कोई शक नहीं आजकल बेटे बेटियों में कोई अंतर नहीं रह गया है और बेटे की माँ भी अक्सर बेटा बहू नाती पोते सब होने के बाद भी स्वयं को प्राय: छला हुआ अनुभव करती हैं क्योंकि कदाचित संबंधों तथा उनसे अपेक्षित गर्माहट में क्रमश: कमी आती जा रही है !

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  9. अरे बाबा बदले के लिये भी बेचारा भगवान फ़ंस गया…………गज़ब की है लघुकथा।

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  10. vaah वाह क्या खूब व्यथा भी है और व्यंग्य भी शानदार लिखा है आपने कम शब्दो मे बहुत कुछ

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  11. देख तेरे इन्सान की हालत क्या हो गयी भगवान . एकदम उचित और प्रयोगधर्मी लघुकथा .

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  12. यह लघु कथा तो कथ्य, संवेदना और आहत मन के स्वस्थ प्रस्फुटन का एक महा उपन्यास है. गागर में सागर समाहित है, नहीं यह तो ब्लैक होल जैसा सघन और जीवन के भोगे हुए यथार्थ को सघनता से समाहित किये हुए है.. फूटने को बेताब एक घायल माँ के मन की पीड़ा को सार्थक स्वर, पराभव शैली सन्देश शिष्ट लेकिन अचूक......मनको गहराई तक छो गयी. मर्मस्पर्शी जो पाषण ह्रदय और भटके हुए, संस्कार छोड़ चुके लोगों को शिक्षा देती है. यह शिखा अत्यंत आवश्यक भी है, यह दर्द सर्व समाज का है, पुरानी पीढ़ी के हर उस माँ का है जो जाने - अनजाने उपेक्षित कर दी गयी है अपने ही बहू-बेटों द्वारा.....लेखनी को सलाम ....

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  13. शायद आज हर मां की यही आरजू होगी ताकि बहू भी मां की पीड़ा जान सके...
    सार्थक लघु कथा...

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  14. बहुत ही प्रभावशाली और सार्थक लघुकथा ...घर घर की कहानी

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  15. सच में 'बेटा हो' यह अभिलाषा रखने के पीछे सबके अपने-अपने कारण होते है. यह कारण मगर सही ही लगा.....

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