गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

कथासरित्सागर : शिव- पारवती प्रसंग

कथासरित्सागर: शिव- पार्वती  प्रसंग
164323_156157637769910_100001270242605_331280_1205394_nअनामिका
आदरणीय पाठक वृन्द को अनामिका का सादर प्रणाम !  महादेवीजी के जीवन वृत्तांत के समाप्त होने के बाद आज मैं एक बार फिर से हाज़िर हूँ आपके सामने एक नए विषय और नई सामग्री के साथ. आप सब ने कथासरित्सागर  के बारे में तो सुना होगा. वास्तव में कथासरित्सागर विश्व कथा साहित्य को भारत की अनूठी देन है. कथासरित्सागर को गुणाढय की बृहत्कथा भी कहा जाता है.  यह  सबसे पहले प्राकृत भाषा में लिखी गयी थी. बृहत्कथा संस्कृत साहित्य की परंपरा को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला ग्रन्थ है.  गुणाढय को वाल्मीकि और व्यास के समान ही आदरणीय भी माना है.
बृहत्कथा  भारतीय कथा परंपरा का महाकोश है. मिथक और इतिहास, यथार्थ और फंतासी, सचाई और इंद्रजाल का अनूठा संगम इसमें हुआ है. कथासरित्सागर की कहानियों में अनेक अद्भुत नारी चारित्र भी हैं और इतिहास प्रसिद्द नायकों की कथाएं भी हैं. भारतीय समाज जितनी विविधता और बहुरंगी छटा में यहाँ प्रस्तुत है, उतना अन्य किसी प्राचीन कथाग्रंथ में नहीं मिलता. कथासरित्सागर कथाओं की ऐसी मंजूषा प्रस्तुत करता है, जिसमें एक बड़ी मंजूषा के भीतर दूसरी, दूसरी को खोलने पर तीसरी निकल आती है. मूल  कथा में अनेक कथाओं को समेट लेने की यह पद्धति रोचक भी है और जटिल भी. मुझे विश्वास है कि जटिलता और विस्तार के इस कथासरित्सागर की कहानियां जो मैं यहाँ हर वृहष्पतिवार आपके समक्ष लाने का प्रयास करुँगी, ये  आप सब के लिए हमारी भारतीय परंपरा को नए सिरे से समझने में सहायक होंगी. 
साथियो, ऐसा भी हो सकता है प्रस्तुत की जाने वाली कथाओं में से कुछ कथाएं आप सब गुणी जनों  की नज़रों से हो कर निकली हों, फिर भी मैं एक नयी शुरुआत करने की कोशिश कर रही हूँ अगर आपको पसंद आये तो इसे आगे भी श्रृंखलाबद्ध करती रहूंगी...वर्ना इसे बंद कर दिया जायेगा.   तो चलिए आज श्री गणेश करती हूँ शिव- पारवती जी के प्रसंग से....
- पार्वती ने देखा कि आज शिव प्रसन्न हैं. बहुत हंस-हंस कर बोल रहे हैं. तो उन्होंने फिर वही अनुरोध दोहरा दिया - हमें कोई सुंदर सी कथा सुनाइये न भगवन ! ऐसी कथा जो किसी ने ना सुनी हो. किसी को न आती हो. कितने दिनों से कह रही हूँ आप से. आप बस टाल देते हैं.
शिव मुस्कुराये ! फिर ध्यानमग्न हो गए.  बात तो सच थी. उमा कितने ही वर्षों से कहती आ रही हैं. कथा ऐसी हो कि मन लगा रहे. बड़ी भी हो. इतनी बड़ी कि सुनते-कहते गणनातीत समय निकल जाए. फिर कथा ऐसी भी हो कि किसी न किसी से आज तक न कही हो, न किसी ने किसी से सुनी हो.
शिव समाधि में डूबे और विद्याधरों की कथाएं एक एक कर उनके चित्त में प्रकाशित होने लगीं.
- यह क्या ? अब तो आप सुन भी नहीं रहे हैं. - उन्हें मौन देखकर पार्वती ने तुनक कर कहा.
- शिव की समाधि भंग हुई. वे हँसे. फिर बोले - चलो आज कथा सुना ही देते हैं.
- आप जब तब कथा जैसी कथा सुना देते हैं, वैसी नहीं. हमें आपसे बड़ी कथा सुननी है.
- हाँ, हाँ. बृहत्कथा सुनायेंगे. अब तो प्रसन्न हो.
- और जो किसी को न आती हो - शिव ने फिर हंस कर दोहराया.
- किसी को नहीं सुनने दूंगी. अकेली मैं ही सुनूंगी. पार्वती ने हठ किया.
पार्वती के हठ के आगे भला भगवान शिव की चल सकती थी ? पार्वती को साथ लेकर वे कैलाश पर्वत की अपनी गुफा में बैठे तो बैठे ही रह गए. वे कथा सुनाते गए, सुनाते गए. पार्वती सुनती रहीं.  दोनों को ध्यान ही नहीं रहा कि कितना समय बीत गया. दिन पर दिन, महीने पर महीने, बरस पर बरस. कथा ऐसी कि समाप्त होने को ना आये.  गुफा के द्वार पर नंदी पहरा देते रहे. किसी को भीतर आने की अनुमति नहीं.
इस तरह पार्वती ने शिव से बृहत्कथा सुनी. सुन कर वे तृप्त हुई, मुदित हुई.
एक बार पार्वती जया, विजया आदि के बीच बैठी थीं. उनके जी में आया कि शंकर के मुख से सुनी कथा इन लोगों को भी सुना दें. वे बोलीं - चलो, मैं तुम लोगों को ऐसी कथा सुनाती हूँ, जो आज तक मेरे अतिरिक्त किसी ने नहीं सुनी है. - और वे बृहत्कथा सुनाने लगीं.
जया ने बीच में टोक कर कहा - देवी, यह कथा तो मेरी सुनी हुई है. और वह पार्वती को आगे की कथा बताने लगी.
पार्वती पहले तो स्तब्ध रह गयी. फिर विस्फारित नेत्रों से जया को ताकने लगीं. - तुझे यह कथा आती है ? - डूबते स्वर में उन्होंने जया से पूछा.
हाँ ! यह कथा मैंने अपने पति पुष्पदंत से सुनी है.
पार्वती की आँखें क्रोध से लाल हो उठीं. ओठ कांपने लगे. ऐसा क्यों किया भगवान शिव ने ? उन्होंने यही कथा पुष्पदंत को क्यों सुना दी ?
वे उठीं और आंधी की तरह भगवान शिव के सामने जा पहुंची. क्रोध और अपमान से रुंआसे स्वर में उन्होंने भगवान् से कहा - यह आपने क्या किया ? आपने वह कथा अपने गणों को भी सुनाई है. ऐसा आपने क्यों किया ?
मैंने ? मैंने तो वह कथा तुम्हारे अतिरिक्त कभी किसी को नहीं सुनाई.
वह कथा तो सबको विदित है. पुष्पदंत ने जया को वही कथा सुनाई.
इर्ष्या से उमा की भौहें टेढ़ी हो गयी थीं. शिव मुग्ध हो कर उस ओर ताकते रह गए.
फिर हंस कर बोले - हमने अपने किसी गण को कभी भी बृहत्कथा नहीं सुनाई. नंदी से कहो सारे गणों को हमारे समक्ष उपस्थित करें.
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भय से थर थर कांपते पुष्पदंत ने सारे गणों की उपस्थिति में भगवान के आगे अपना अपराध स्वीकार कर लिया. जब भगवान देवी को कथा सुनाने का उपक्रम कर रहे थे, तभी वह उनके दर्शन के लिए पहुंचा था. नंदी ने गुफा में जाने का निषेध किया था. तब वह अद्भुत कथा सुनने के लोभ से योगशक्ति से अदृश्य हो कर गुफा में जा छिपा और उसने पूरी कथा सुन ली. और फिर जया को उसने वही कथा सुनाई.
- नीच तेरा यह साहस ! - पार्वती के नेत्रों से चिंगारियां छूटने लगीं.
पुष्पदंत की घिग्घी बंध गयी. उसके मित्र माल्यवान ने साहस किया और आगे बढ़ कर उमा भगवती के चरणों पर माथा रख दिया फिर कहा - इस मूर्ख ने कौतुहलवश यह घृष्टता कर डाली है माँ ! इसका पहला अपराध क्षमा करें.
- अच्छा, तो तू इसका पक्ष ले रहा है. मैं तुम दोनों को शाप देती हूँ - तुम दोनों मनुष्य योनी में जा गिरो. जाओ !
शिव चुपचाप बैठे मुस्कुराते रहे. पार्वती और अपने गणों के बीच वे कुछ नहीं बोले.
पति को शाप मिलने की बात सुन जया दौड़ी हुई आई और रो-रो कर पार्वती से दया की भीख मांगने लगी. दोनों शापग्रस्त गणों ने भी माता के चरणों पर माथा टेक दिया.
आखिर पार्वती  द्रवित हुई. शापमुक्ति का उपाय बताते हुए उन्होंने कहा - सुप्रतीक नामक एक यक्ष शापग्रस्त हो कर कानभूति के नाम से विन्ध्य  के वन में पिशाच बन कर रहता है. सुनो पुष्पदंत, जब मनुष्य योनी में तुम उसे यही कथा सुना दोगे, तो तुम्हारी शापमुक्ति हो जाएगी. यह  माल्यवान उस काणभूति से यह कथा सुनकर मनुष्योनी में इसका प्रचार करेगा, तब इसकी भी मुक्ति होगी.
पुष्पदंत और माल्यवान उसी क्षण मनुष्य योनी में जा गिरे.
बहुत समय बीत गया. पार्वती  के मन में कचोट होती रहती थी कि नाहक तनिक सी बात पर उन्होंने अपने पति के प्रिय सेवकों को मृत्यु लोक में निर्वासित कर दिया. एक दिन उन्होंने भगवान् शिव से पूछ ही लिया - उन दोनों गणों का क्या हुआ भगवन - पुष्पदंत और माल्यवान का ? वे लौट कर कैलाश कब आयेंगे ?
शिव फिर मुस्कुराये . कहा - पहले तो शाप दे दिया, अब करुणा से द्रवित हो रही हो. पर हमें अच्छा लगा. धरती पर जा कर हमारा पुष्पदंत तो बहुत बड़ा व्यक्ति बन गया.
अच्छा ! चकित होकर पार्वती ने विस्फारित नयनों से उन्हें निहारते हुए कहा - क्या बन गया वह ?
वह देखो - शिव ने धरती की ओर बहुत नीचे दिखाते हुए कहा - उस व्यक्ति को देख रही हो ?
वहां ? विन्ध्य के वन में ? कौन है वह ?
वह पुष्पदंत है. वह पाटलिपुत्र के राजा नन्द का मंत्री वररूचि  बन गया है. और वह उस शापग्रस्त यक्ष के पास तुम्हारी प्रिय कथाएं सुनाने जा रहा है. यह वररूचि कात्यायन के नाम से भी जाना जाता है. यह व्याकरण का पंडित बन गया है.
साथियो ! यह कथा यहीं समाप्त होती है. अगली श्रृंखला में वररूचि  की कथा को क्रमबद्ध किया जायेगा.
नमस्कार.

22 टिप्‍पणियां:

  1. अति उत्तम ! मैने पहली बार ही सुनी(पढ़ी)!

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  2. शुक्रवारीय चर्चा-मंच पर है यह उत्तम रचना ||

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  3. बहुत सुंदर लगा । कभी -कभी ऐसा भी पोस्ट आना चाहिए । शिव- पार्वती प्रसंग अच्छा लगा । धन्यवाद । शिवजी आप पर आपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें ।

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  4. आज आनन्‍द आया। बहुत ही रोचक कथा है। अगली कड़ी का इन्‍तजार रहेगा। हम किसी को नहीं सुनाएंगे, नहीं तो हमें मृत्‍यु लोक से नरकलोक का अभिशाप मिल जाएगा।

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  5. मैं दिनेश पारीक आज पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हु और आज ही मुझे अफ़सोस करना पद रहा है की मैं पहले क्यूँ नहीं आया पर शायद ये तो इश्वर की लीला है उसने तो समय सीमा निधारित की होगी
    बात यहाँ मैं आपके ब्लॉग की कर रहा हु पर मेरे समझ से परे है की कहा तक इस का विमोचन कर सकू क्यूँ की इसके लिए तो मुझे बहुत दिनों तक लिखना पड़ेगा जो संभव नहीं है हा बार बार आपके ब्लॉग पे पतिकिर्या ही संभव है
    अति सूंदर और उतने सुन्दर से अपने लिखा और सजाया है बस आपसे गुजारिश है की आप मेरे ब्लॉग पे भी आये और मेरे ब्लॉग के सदशय बने और अपने विचारो से अवगत करवाए
    धन्यवाद
    दिनेश पारीक

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  6. अच्छी प्रस्तुति ...


    अगर आपको पसंद आये तो इसे आगे भी श्रृंखलाबद्ध करती रहूंगी...वर्ना इसे बंद कर दिया जायेगा.

    क्या यह धमकी है ? पसंद आया या नहीं यह कैसे पता चलेगा ? आप अपना काम कीजिये बाकी पसंद - नापसंद लोगों को करने दीजिए ..

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  7. वाह री देवी! कथा सुन लेने पर इतना क्रोध और कहलाने को देवी! मनुष्य योनी को देवताओं के लिए भी दुर्लभ कहा जाता है और शाप देकर मनुष्य भी बनाया जा रहा है। …पुष्पदन्त ने भक्ति सूत्र भी लिखा है एक…हाँ, शिवमहिम्नस्तोत्र…

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  8. Maine bhee pahli baar ye qissa suna! Bahut rochak....agalee kishton ka intezaar rahega!

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  9. कहानी को छोडो .तुम्हारी प्रोफाइल फोटो बड़ी सुन्दर लग रही है.बधाई हा हा हा

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  10. संगीता जी मेरा इरादा धमकी देने का बिलकुल भी नहीं है. अगर आप को मेरे शब्द विन्यास से ऐसा लगा है या ठेस पहुंची है तो एक बार फिर से अत्यंत ही विनम्रता पूर्वक आप सभी से प्रार्थना करना चाहूंगी कि अगर आपको ये श्रृंखला पसंद आती है तो इसे आगे भी श्रृंखलाबद्ध करती रहूंगी...अन्यथा इसे यहीं विश्राम दिया जाये. क्यूंकि साहित्य सृजन अन्ततोगत्वा रचनात्मक तो होना ही चाहिए ना.

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  11. आपने बिल्कुल नये विषय को लिया है।
    आगे की भी कड़ियों को क्रमबद्ध रूप से लगाइए ना!

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  12. ये कथा तो कभी नही सुनी …………बहुत ही रोचक श्रृंखला शुरु की है आगे का इंतज़ार रहेगा।

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  13. हमारे परिवार में जन्मदिन व अन्य अवसरों पर बच्चों को पुसत्कों का उपहार देने की परम्परा है... पिछले दिनों अपने पुत्र को मैंने "कथा सरित्सागर" उपहार स्वरुप दिया... यह बहुत ही अनमोल कथा सागर है... संगीता दी की बात को ही बढाते हुए मैं यह कहना चाहूँगा कि जो श्रृंखला आपने प्रारम्भ की है उसे चलने दीजिए..
    कार्डिनल न्युमैन ने एक बार काहा है कि वह व्यक्ति जीवन में कुछ भी नहीं कर सकता, जो इस प्रतीक्षा में हो कि ऐसा काम करे जिसमें कोई खोट न निकाला जा सके!!
    यह तो अद्भुत सागर है और धरोहर है हमारी साहित्य परम्परा का... मेरा भी आग्रह है कि इसे चलने दें, पसंद-नापसंद की चिंता ना करें.

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  14. अच्छी लगी कथा ....
    शुभकामनायें आपको !

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  15. अनामिका जी ,

    मुझे आपकी बात धमकी भरी नहीं लगी ..लेकिन आपके लिखे हुए से ऐसा ही लगा ...इसी लिए मैंने आपको पसंद - नापसंद की चिन्ता किये बिना ज़ारी रखने का आग्रह किया है ... आभार

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  16. शानदार श्रृंखला शुरु की है आपने। इन कथाओं की ब्लॉगजगत में उपस्थिति आवश्यक थी।

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  17. पूरे मनोयोग से पढ़ रही हूँ .मुझे तो ये कथायें बहुत अच्छी लगती है ,आपका सुनाने का ढंग भी रोचक है .बंद मत कीजियेगा .
    आभार!

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  18. अनामिका जी शिवजी की वृहत्कथा जैसी वृहत् क्षमा याचना के साथ देर से आ पाने के लिये स्वयं को कसूरवार मानती हूँ ! कथा बिलकुल नयी है जिसे मैंने पहले कभी नहीं सुना इसलिए बहुत आनंद आया पढ़ने में ! अब क्रमश: वररुचि की कथा पढ़ने जा रही हूँ ! आपका आभार इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिये !

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