रविवार, 15 जनवरी 2012

प्रेरक प्रसंग-19 : मल परीक्षा – बापू का आश्चर्यजनक प्रयोग

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प्रस्तुत कर्ता : मनोज कुमार

DSCN1514साबरमती आश्रम में ब्रिटेन से आई मेडलिन स्लेड यानी मीरा बहन वहां रहते-रहते बापू की नाक भी बन गईं। उनकी गरुड़-सी नाक उनके चौड़े चेहरे पर बेडौल-सी लगती थी लेकिन उनकी घ्राण-शक्ति बहुत तेज़ थी। बापू गंध के मामले में कच्चे थे। उनकी नाक केवल सांस लेने और चश्मे के टिकाने के काम आती थी। घ्राण अनुभूति के मामले में वे मीरा बहन पर निर्भर हो गए। इस मामले में एक बड़ा ही अद्भुत और रोचक किस्सा है।

एक दिन मीरा बहन हड़बड़ी में नहाकर अपने खुले बालों पर साड़ी का पल्लू ठीक करते निकलीं। अपने साथी सहायक सुमंगल को कहा, “बापू से पहले हम लोगों को वहां पहुंच जाना चाहिए। आप जानते हैं, वे वक़्त के कितने पाबंद हैं।”

आश्रम के बगीचे में पुरुषों के शौचालय के सामने श्याम इंतज़ार करता हुआ खड़ा था। वह एक दलित युवक था। बापू ने दस साल की एक दलित बच्ची को गोद लिया था। श्याम आश्रम में दलित वर्ग का दूसरा सदस्य था। वह पच्चीस साल का था। उसका काला चेहरा चेचक से भरा था। अपनी उम्र से बड़ा दिखता था। उसे अनेक बीमारियां घेरे रहती थीं। कारण का पता ही नहीं चलता। उसकी इन रहस्मय बीमारियों पर से परदा उठाने का जिम्मा बापू ने खुद लिया। वे एक ऐसे डॉक्टर की भूमिका निभाते जो उपचार की प्रचलित विधियों से हट कर अपने प्रयोग करता था। वे कहा करते थे उन्हें ये प्रयोग स्वतंत्रता संघर्ष जितने ही प्रिय थे। इनमें उन्हें वही आनंद मिलता जो स्वतंत्रता संघर्ष में मिलता। किसी बीमार आश्रमवासी की जांच करने और उसका उपचार करने में बापू को जितनी ख़ुशी मिलती ही उतनी शायद ही किसी और काम में मिलती होगी।

बापू अपने पत्राचार का काम खत्म करके टहल रहे थे। टहलते-टहलते वे सहसा रुक गए। अपने साथ टहलने वाले अन्य व्यक्ति से उन्होंने कहा, “मुझे थोड़ी देर की छुट्टी लेनी होगी। एक लड़के के मल की परीक्षा करनी है। … आप लोग चलें, मैं काम पूरा होने के बाद फिर लौटूंगा।”

DSCN1378वे मगनवाड़ी के बाग की तरफ़ मुड़ गए जहां मीरा, सुमंगल और श्याम इंतज़ार कर रहे थे। बापू, श्याम जिसे भाऊ भी कहा जाता था, की बीमारी के कारण का पता लगाने के लिए उसके मल की जांच करने की आश्चर्यजनक क्रिया करने वाले थे। भाऊ पर बापू का प्रयोग चल रहा था। भाऊ को अपच और पेचिश की शिकायत रहती थी। बापू के द्वारा बदल-बदल कर भिन्न-भिन्न खूराक पर उसे रखा जा रहा था। कोई विशेष लाभ न देख उसके मल की परीक्षा यह देखने के लिए की जाने वाली थी कि भोजन का कौन पदार्थ बिना पचा बाहर निकल गया है।

भाऊ का मल ज़मीन पर मलमल के एक कपड़े पर रखा था। उसके मल की जांच शुरू हुई। इस जांच में श्याम सहायक की भूमिका निभा रहा था। बापू पास खड़ी मीरा से कह रहे थे, “ज़रा सोचो मीरा, हमारे कितने ग़रीब देशवासी श्याम की तरह अपच और पेचिश के शिकार होते हैं। साफ़-सफ़ाई और स्वास्थ्य संबंधी शिक्षण ही इसका एक समाधान है। दूसरा समाधान है सस्ती और आसानी से उपलब्ध साग-सब्जी का आहार, जिसे ग़रीब लोग ख़रीद सकते हैं।

भाऊ उस बारीक साफ़ कपड़े को ताने हुए था। बापू एक टहनी से मलमल के कपड़े पर बिखरे श्याम के पीले मल को कुरेद कर जांच कर रहे थे। झुके रहने के कारण उनका गोलाकार, कमानी वाला चश्मा उनकी नाक की नोंक कर फिसल आया। चश्मे को नाक पर ऊपर चढ़ाते हुए उन्होंने कहा, “इसकी और सफ़ाई की ज़रूरत है।” उन्होंने चश्मा उतारकर उसके शीशों को अपनी धोती के छोर से साफ़ किया।

मीरा बहन ने सुमंगल की ओर देख कर सिर हिलाया और शौचालय के दरवाज़े पर रखे पानी के घड़े की ओर इशारा किया। घड़े के किनारे से लंबी मूठ लगा टिन का डिब्बा लटक रहा था। सुमंगल ने उस कपड़े पर पानी गिराना शुरू किया, तो मीरा बेन ने एक चम्मच से मल को मथना और धीरे-धीरे धोना शुरू किया। छन-छन कर गंदा पीला पानी मलमल के कपड़े से नीचे गिरने लगा और कपड़े पर मल का वह भाग रह गया जो अब पानी में घुल कर छन नहीं सकता था। यह सब इसलिए किया जा रहा था ताकि पता चले किए कौन-से खाद्य उसमें हैं जो पच नहीं पाए और इसलिए उन्हें भोजन से काटा जाना चाहिए।

बापू ने फिर से उस कपड़े में रह गए मल के अवशेष को कुरेद-कुरेद कर देखना शुरु किया। मीरा बहन इस क्रिया की एक प्रमुख पात्र थीं। जहां बापू की घ्राणेन्द्रिय प्रायः एकदम निश्चेष्ट थीं, वहां मीरा बहन की घ्राण-शक्ति अत्यंत प्रखर समझी जाती थी। जब कोई खाद्य तत्व पहचान में नहीं आता, कहीं कोई संदेह होता, तो आंखों से निरीक्षण कर रहे बापू मीरा बेन की घ्राण विशेषता का सहारा लेते। बापू मल के उस अवशेष में से कोई रेशा या कोई छोटा टुकड़ा उस सींक पर उठाते और मीरा बहन झुक कर उसे ज़ोरों से सूंघती। बापू जिस टुकड़े या रेशे को पहचान नहीं सकते थे उसे सूंघ कर मीरा बहन बताती थीं कि वह किस मूल खाद्य पदार्थ का विकृत रूप या अवशेष है।

मीरा बहन की घ्राण विशेषता उनका नैसर्गिक गुण तो था ही, पर उन्होंने बचपन से इसपर शान भी चढ़ाया। बचपन से उनकी आदत थी कि सड़े गले फूल पत्ते को सूंघ-सूंघ कर वे उन्हें पहचाना करतीं। अलग-अलग जगह, अलग-अलग पशु-पक्षियों और वनस्पत्तियों की गंध भी अलग-अलग होते हैं। मीरा बहन कई गंधों के मिश्रण में से किसी खास गंध की पहचान कर सकती थीं।

सूरज चमक रहा था। पक्षी कलरव कर रहे थे। श्याम के मल की दुर्गंध चारों ओर फैल रही थी। धूप की गरमी से बदबू तेज होती जा रही थी। बापू और मीरा बहन इन सब से बेखबर अपने काम में मग्न थे।

काफ़ी देर बाद भी सभी खाद्य तत्वों का पता नहीं लगा सका और कुछ के बारे में संदेह रह गया, क्योंकि मल और उसके जल की दुर्गंध इतनी प्रबल थी कि मीरा बहन की घ्राणेन्द्रिय भी उस दुर्गंध के आवरण में छिपी खाद्य-गंधों का अन्वेषण नहीं कर पा रही थी। तब बापू ने निर्देश दिया, “इसे कुछ देर धूप में सूखने दो ताकि मल की गंध उड़ जाए। मीरा की नाक अलग-अलग खाद्य पदार्थों की गंध पहचान सकती है।” बापू का ख्याल था कि सब अवशिष्ट टुकड़ों और रेशों के धूप में सुखा लिए जाने पर मल की दुर्गंध लुप्त हो जागी और विभिन्न खाद्य पदार्थ की गन्ध बनी रह जाएगी जिसके कारण उनकी पहचान की जा सकेगी।

श्याम के कंधे को थपथपाते हुए बापू बोले, “यहीं बैठना और देखना कि कौवे न आएं।” इतना करने के बाद बापू, मीरा बहन और सुमंगल लौट आए। भाऊ के उस मलावशेष के सूख जाने पर वे पुनः वहां गए और सभी खाद्य पदार्थों की गंध पहचानी जा सकी। अब यह स्पष्ट हो चुका था कि भाऊ की पाचन-शक्ति किन खाद्य पदार्थों को पचा सकती है और किन को नहीं। उसे किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, इसकी सलाह बापू ने दी। भाऊ का रोग धीरे-धीरे दूर हुआ।

***

12 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 15-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  2. रोचक प्रसंग तो है ही ..लेकिन यह भी दर्शाता है कि अगर सेवा का भाव मन में हो तो आप किसी भी तरह से सेवा कर सकते हो .....!

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    1. Aur koyee bhee is tarah mal pareeksha nahee karta, siwa Bapu ke! Waqayee prerak prasng!

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    2. इस सार्थक प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

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  3. रोचक प्रसंग प्रस्तुति के लिए बधाई.

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  4. hume to padhte hue hi ajeeb lag raha hai aur baapu aur meera ji is parikshan ko karte the really mahaan the vo log.ek jaankari deti hui post hai.aabhar.

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  5. सेवा भाव ही ने तो बापू को महान बनाया बहुत रोचक प्रस्तुति,....
    new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-

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  6. बहुत ही रोचक प्रस्तुति सभी ने सही कहा यदि सच्चा सेवा भाव हो तो बहुत से लोगों के परेशानियों का हल निकाला जा सकता है जैसा बापू मे था...

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  7. बहुत रोचक जानकारी. मीरा की नाक बड़ी ही sensitive थी .

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