गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

बालिका से वधू

अनामिकासुधी जनों  को अनामिका का सादर नमन!

अब तक हमने  रामधारी सिंह दिनकर जी के जीवन दर्पण के प्रथम अंक में उनके जन्म और उनके व्यक्तित्व के बारे में जाना और दुसरे अंक (नाचो हे, नाचो, नटवर) में उनके स्वाभाव और जीवनोपार्जन संबन्धित उतर-चढ़ाव को पढ़ा....अब दिनकर जी के जीवन सफ़र के कुछ और पहलू प्रस्तुत हैं .....

दिनकरजी में क्रोध और भावुकता दोनों का मिश्रण था.

जब वे सब-रजिस्ट्रार थे, तो एक बार उन्होंने अफसरी की शान में एक गरीब आदमी पर छड़ी चला दी. लेकिन अपने इस दुष्कृत्य पर वे रात-भर रोते रहे. जब भोर हुआ, उन्होंने उस गरीब को बुला कर उससे माफ़ी मांगी, उसे रुपये दिए और जब तक वो उस गाँव में रहे, बराबर उसकी सहायता करते रहे.

एक बार मद्रास में, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में दिनकर जी का  भाषण हो रहा था. जब भाषण समाप्त हुआ, छात्र उनसे कुछ सवाल करने लगे. एक छात्र ने पूछा - क्या आप जीवन में भी उतने ही क्रोधी हैं जितने काव्य में दिखाई देते है ?

दिनकरजी ने जरा रूककर जवाब दिया - हाँ, लेकिन अब क्रोध नहीं करूँगा, क्यूंकि अक्सर क्रोध करने के बाद मुझे रोना आ जाता है.

वे गुस्से में आकर अक्सर रो पड़ते थे.

दिनकरजी पक्के शहरी लगते थे - विदग्ध और शालीन अर्थ में, और वे थे भी.

दिनकरजी का पहनावा - ओढावा और रहने का ढंग स्वच्छ था. वे देश के बड़े लोगों की गोष्ठियों में ठीक प्रथम कोटि के नागरिक का सा व्यवहार करते थे. नारियों की गोष्ठी में उन्हें झेंप नहीं आती थी. सच तो यह है कि नारियां उनसे प्रसन्न रहती थीं.क्यूंकि वे कविता पढ़ते, चुटकले सुनाते और जिस समाज में बैठते उसका समयानुकूल बौद्धिक मनोरंजन करते रहते थे. यदि दूसरा कोई व्यक्ति बोलने की धुन में हो तो दिनकरजी देर तक उसकी बात सुन सकते थे. दिल्ली के सांस्कृतिक जीवन से उनके गहरी दिलचस्पी थी. नाटक, रामलीला, नृत्य, बैले और संगीत-समारोहों में उनका दूर से दिखाई देने वाला सुपरिचित भव्य चेहरा अक्सर देखा जा सकता था. कई बार उनकी बुलंद आवाज़ के कारण मालूम हो जाता कि इस गोष्टी में वे हैं.  प्रायः प्रतिवर्ष वे फिल्मों की  राष्ट्रीय पुरस्कार समिति के सदस्य होते थे. वैसे वे संगीत, नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और आकाशवाणी की राष्ट्रीय  सलाहकार समिति के भी कर्मठ सदस्य रहे. संस्कृति के क्षेत्र में दिनकर जी के सुसंस्कृत विचार और उनकी शिष्ट रूचि का आदर होता था.

लेकिन उनमे अक्खड़ देहाती के संस्कार भी प्रबल थे.

शादी-ब्याह और यज्ञ प्रयोजन में वे देहाती परंपरा के कायल थे और इन मौकों पर क्रन्तिकारी कदम उठाना उनके लिए बिलकुल दुश्वार था. परिवार और गृहस्थी के लिए उनमे अत्यंत मोह था, जिसे ग्रामीण किसान का ही गुण कहा जा सकता है. देहाती संस्कार उनमे कुछ और भी थे. उनका विश्वास केवल तीर्थ-व्रत और पूजा पाठ में ही नहीं, बल्कि भूत-प्रेत, ओझा-गुनी और साधू-संत में भी था. जवानी के दिनों में उन्होंने बहुत से साधुओं का कम्बल ढोया था और ऐसे कई  व्यक्तियों की संगति की थी जो योगी और चमत्कारी समझे जाते थे. अरविन्द-भक्ति उनके लिए आकस्मिक नहीं थी. अरविन्द अध्यात्म के अतिरिक्त बौद्धिकता की कसौटी पर काफी खरे उतरते थे. खैरियत है की उनकी कविता इनसे अछूती रही.

निपट किसानो के समान ही वे खैनी भी बड़े शौक से खाते थे. बचपन में उन्होंने गाय-भैंस भी चराई थी और पशु-पालन में  उनका अनुराग था.

क्रमशः

दिनकर जी अपनी सृजनशीलता पर कहते हैं कि ......बेशक सुयश मुझे "हुंकार" से ही मिला, किन्‍तु आत्‍मा अब भी ‘रसवन्‍ती' में बसती है। तो लीजिये इसीलिए आपके लिए रसवंती से ली गयी उनकी एक उत्तम रचना पेश है -

बालिका से वधू

माथे  में  सेंदूर  पर  छोटी  दो  बिंदी  चम्-चम् से

पपनी  पर  आंसू  की  बूँदें  मोती  सी शबनम सी

लदी  हुई  कलियों से मादक टहनी एक नरम सी,

यौवन की विनती सी भोली, गुमसुम खड़ी शरम सी.

 

पीला चीर, कोर  में  जिसकी चमचम गोता जाली,

चली  पिया  के  गाँव  उमर  के सोलह फूलों वाली

पी  चुपके  आनंद,  उदासी भरे सजल चितवन में,

आंसू  में  भीगी  माया  चुपचाप  खड़ी  आँगन में.

 

आँखों  में  दे आँख  हेरती है, उसको  जब सखियाँ,

मुस्की आ जाती मुख पर, हंस देतीं रोती अँखियाँ .

पर, समेट  लेती  शरमाकर  बिखरी  सी  मुस्कान,

मिट्टी   उकसाने  लगती  है  अपराधिनी  समान.

 

भीग  रहा मीठी  उमंग  से  दिल  का कोना कोना,

भीतर-भीतर   हंसी  देख   लो   बाहर-बाहर  रोना.

तू वह, जो झुरमुट पर आई हंसती कनक कली सी,

तू  वह,  जो  फूटी शराब  की निर्झरिणी पतली सी.

 

तू वह, रच कर जिसे प्रकृति ने अपना किया सिंगर.

तू बह,  जो  धूसर  में  आई  सबुज  रंग  की धार !

मान की ढीठ दुलार !  पिता की ओ लजवंती भोली,

ले  जाएगी हिय  की मणि को अभी पिया की डोली.

 

कहो कौन होगी इस घर की तब शीतल उजियारी ?

किसे  देख हंस-हंस कर फूलेगी सरसों की क्यारी ?

वृक्ष रीझ  कर  किसे करेंगे पहला फल अर्पण सा ?

झुकते  किसको देख  पोखरा  चमकेगा दर्पण सा ?

 

किसके बाल ओज भर  देंगे  खुलकर मंद पवन में ?

पड़ जाएगी जान देखकर किसकी चन्द्र किरण में ?

महँ-महँ  कर मंज़री गले से मिल किसको चूमेगी ?

कौन  खेत  में  खड़ी  फसल  की देवी सी झूलेगी ?

 

बनी फिरेगी कौन  बोलती  प्रतिमा हरियाली की

कौन  रूह होगी इस धरती फल-फूलोंवाली की ?

हंसकर ह्रदय पहन लेता, जब कठिन प्रेम जंजीर,

खुलकर  तब बजते न सुहागिन पांवो के मंजीर !

 

घडी गिनी जाती तब निशिदिन उँगली की पोरों पर,

प्रिय  की  याद  झूलती  है  सांसो  के  हिंडोरों  पर !

पलती  है  दिल  का  रस  पीकर  सबसे प्यारी पीर,

बनती  और  बिगडती  रहती  पुतली  में  तस्वीर !

 

पड़ जाता चस्का जब मोहक प्रेम सुधा पीने का,

सारा  स्वाद बदल जाता है दुनिया में जीने का !

मंगलमय  हो  पंथ  सुहागिन, यह  मेरा वरदान,

हरसिंगार  की  टहनी   से  फूलें  तेरे  अरमान !

 

जागे   हृदय   को  शीतल   करनेवाली  मीठी  पीर,

निज  को डुबो सके निज में, मन को इतना गंभीर !

छाया  करती  रहे  सदा  तुझको  सुहाग  की  छाँह,

सुख  दुख  में  ग्रीवा  के नीचे हो प्रियतम की बांह !

 

पल पल मंगल लग्न, जिन्दगी के दिन-दिन त्यौहार,

उर  का  प्रेम  फूटकर  हो  आँचल  में  उजली  धार !!

(रसवंती )

15 टिप्‍पणियां:

  1. दिनकर जी के बारे में और उनकी रचना के बारे में जानकर अच्छा लगा।

    दूध पीते बच्चों के विवाह करना भी ठीक नहीं है और कॅरिअर बनाने के चक्कर में 35-40 साल का हो जाना भी ग़लत है।
    पहले लड़के लड़कियां अलग अलग पलते पढ़ते बढ़ते थे और शादियां जल्दी हो जाती थीं।
    आजकल सब कुछ साथ हो रहा है, टी. वी. सिनेमा भी साथ ही देख रहे हैं। जज़्बात भड़क रहे हैं लेकिन दोनों को साथ रखकर मिलन से रोक दिया गया है।
    प्रकृति जब दोनों को बालिग़ कर देती है। क़ानून उससे भी 6-8 साल आगे खींच ले जाता है।
    इधर वैज्ञानिकों के शोध यह कह रहे हैं कि कम उम्र की शादियां ही बेहतर हैं।
    देखिए यह लेख -
    कम आयु में विवाह करना ही है बेहतर विकल्प !!

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  2. दिनकर जी की यह कविता मैं कब से ढूँढ रही थी ,धन्यवाद अनामिका जी !

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  3. bahut accha laga padhkar pahle nhi pdha tha kabhi thanks nd aabhar manoj jee...

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  4. दिनकर जी के बारे में इतनी सार्थक प्रस्तुति पढ़ कर अच्छा लगा ! आपका प्रयास सराहनीय है ! आभार !

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  5. दिनकर जी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं से रू-ब-रू होने का सौभाग्य मिल रहा है।
    कविता भी बहुत अच्छी दी है आपने।

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  6. दिनकर जी के जीवन से परिचय कराने के लिये बहुत बहुत आभार...कविता भी बहुत सुंदर है.

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  7. दिनकर जी के बारे में इतनी सार्थक प्रस्तुति पढ़ कर अच्छा लगा.... अनामिका जी, धन्यवाद

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  8. दिनकर जियो की ओज़स्वी कवितायें हमेशा ही प्रभावित करती रही हैं ... उनके बारे में आज जानना सुखद अनुभूति की तरह है ..

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