शुक्रवार, 25 मई 2012

दोहावली .... भाग --13 / संत कबीर

जन्म  --- 1398

निधन ---  1518



एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गार
है जैसा तैसा हो रहे, रहें कबीर विचार 121


जो तु चाहे मुक्त को, छोड़े दे सब आस
मुक्त ही जैसा हो रहे, बस कुछ तेरे पास 122


साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय 123


अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान 124


खेत ना छोड़े सूरमा, जूझे दो दल मोह
आशा जीवन मरण की, मन में राखें नोह 125


लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत
लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत 126


सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह
लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह 127


भूखा-भूखा क्या करे, क्या सुनावे लोग
भांडा घड़ निज मुख दिया, सोई पूर्ण जोग 128


गर्भ योगेश्वर गुरु बिना, लागा हर का सेव
कहे कबीर बैकुण्ठ से, फेर दिया शुक्देव 129


प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बनाय
चाहे घर में वास कर, चाहे बन को जाय 130





6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक .....

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  2. साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय ।
    चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय ॥ 123 ॥
    कबीर वाणी के तो क्या कहने………आभार

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  3. हिंदी के प्रमुख कवि मंगलेश डबराल जी के साथ कुछ समय बिताने का मौका मिला.. उन्होंने कहा था कि कविता जब रचनाकार के नाम से विलग हो अपना मुकाम बनाती है.. वही कविता अधिक समय तक प्रासंगिक होती है... कबीर के दोहे आज कबीर के नाम के बिना भी जीवित हैं.. लोक गीतों के रचनाकारों के नाम नहीं होते.... कबीर की यह श्रंखला बहुत बढ़िया जा रही है..

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  4. लीक पुरानी को तजें, कायर कुटिल कपूत ।
    लीख पुरानी पर रहें, शातिर सिंह सपूत
    वाह गज़ब के दोहे .कबीर का जबाब नहीं.

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  5. कबिरन बानी सब फली, महका हरसिंगार।
    छाँव ज्ञान का पायगा, जब तक है संसार।


    सादर आभार।

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  6. सन्त पुरुष की आरसी, सन्तों की ही देह ।
    लखा जो चहे अलख को, उन्हीं में लख लेह ॥ 127 ॥

    संतों की शरण में जाने पर ही संतों की वाणी में भेद खुलते हैं...

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