शनिवार, 5 मई 2012

पुस्तक परिचय-28 : कब पानी में डूबा सूरज


पुस्तक परिचय-28

कब पानी में डूबा सूरज

मनोज कुमार
गीत बने बैसाखी अपनी
जब भी घोर निराश हुआ मन
पिला गये कुछ अमृत जैसा
भूल गया सब विपदायें तन।
इन पंक्तियों के रचनाकार श्री बी.एल. गौड़ के काव्य-संग्रह “कब पानी में डूबा सूरज” से आज हम आपका परिचय कराने जा रहे हैं। इस संग्रह से पहले इनके तीन काव्य-संग्रह ‘थोड़ी सी रोशनी’, ‘काव्याकृति’ और ‘आखिर कब तक’ और मीडिया पर एक पुस्तक ‘लोकतंत्र में खोया लोकतंत्र’ प्रकाशित हो चुके हैं। इस संकलन में इनके अधिकांश गीत आत्मानुभूति व्यंजक हैं। उनके गीत प्रेमानुभूतिपरक तो हैं, पर इनमें प्रेम है तो सिर्फ़ घटना बनकर नहीं है, मांसल और शारीरिक अतृप्ति की चीख-पुकार बनकर नहीं। परिवर्तन की बात है तो वह सिर्फ़ रस्मी जोश तक नहीं है। ये सब कुछ इनकी रचनाओं में बुनियादी सवालों से टकराते हुए है। गौड़ की लेखनी से जो निकला है वह दिल और दिमाग के बीच खींचतान पैदा करता है।
पाँखुरी की देह पर
कुछ ओस के कण देखकर
एक पल को यों लगा
ज्यों किसी ने थाम कर आँसू किसी के
ला बिखेरे फूल पर।

संग्रह में कुल 71 रचनाएं हैं। अधिकांश रचनाएं गीत और छन्दोबद्ध हैं साथ ही कुछ रचनाएं मुक्तछन्द में लिखी गई हैं। संग्रह की शुरुआत ‘सरस्वती वन्दना’ से हुई है, जिसे पढ़कर बरबस ‘निराला’ के ‘वर दे ..’ की याद आ जाती है।
असमय जहां पुष्प मुरझायें
मेरे पांव वहीं रुक जायें
किसी नयन से अश्रु ढलें तो
मेरी आंखें भी भर आयें
अपने सब साधक-भक्तों की
वाणी को कल्याणी कर दे।
हे मां! तू कुछ ऐसा वर दे
कण्ठ-कण्ठ में नवरस भर दे।

राग-संवेदना का इस संग्रह की कविताओं में ऐसा सहकार है जो बड़े-बड़े कवियों में दिखता है। कवि वही बड़ा होता है जो सामान्य भाषा की शक्ति-सामर्थ्य को कई गुना बढ़ा सकता है, जहां उसकी भाषा ही काव्य हो जाती है। उसका गद्यात्मक संगठन भी कवितापन से सिक्त हो जाता है। इनकिइ कविताओं में मार्मिक स्पर्श उसकी बुनावट में चार-चांद लगा देते हैं।
काश! मैंने
तुम्हारी हथेली पर बना
एक अनजान द्वीप का नक्शा
पढ़ लिया होता
तो इतिहास कुछ और होता
न तुम पीर सहते
न मैं दर्द ढोता।

इस संग्रह को  पढ़कर ऐसा लगा मानों कवि की अनुभूति, सोच,  स्मृति और स्‍वप्‍न सब मिलकर काव्‍य का रूप धारण कर लिया हो। विचार कहीं ऊपर से चिपकाए नहीं लगते  इसलिए कविताओं में कई पैबंद या झोल नहीं है।
रेत पर कुछ स्वप्न मैं रचता रहा हूं
तर्जनी से गीत इक लिखता रहा हूं
पर अचानक  लहर क्रोधित हो गई क्यों
मैं अभी तो पंक्ति अंतिम लिख रहा हूं
सिर्फ़ जल के अब बचा कुछ भी नहीं है
फिर स्वयं से पूछता हूं मैं कहां हूं।

बी.एल. गौड़ के लेखन में अभिव्यक्ति की सहजता, भाषा की सादगी, प्रसंगानुकूल शब्‍दों का खूबसूरत चयन, जिनमें ग्राम व लोक जीवन के व्‍यंजन शब्दो का प्राचुर्य है। ये कवि की भाषिक अभिव्‍यक्ति में गुणात्‍मक वृद्धि करते हैं। कविता में लोकजीवन के खूबसूरत बिंब कवि के काव्‍य-शिल्‍प को अधिक भाव व्‍यंजक बनाते हैं। 
गाँव छूटे, खेत छूटे,
बालपन के मीत छूटे
सावनी मल्हार छूटी
शुभ लगन के गीत छूटे।
कौन सी मजबूरियां थी
खींच लायीं जो शहर को
क्या कभी हम भूल पाये
नीम छनती दोपहर को
अब हिरन-सा हो गया मन
दूर तक भरता कुंलाचें
किंतु मिलते ताल झूठे

उनकी काव्य संवेदना जहां एक तरफ़ गांव की मिट्टी में रची-बसी है वहीं दूसरी तरफ़ अभिजात शहरी सम्भ्यता को भी दर्शाती है। सहृदय कवि मन से जब आवाज़ फूटती है तो सामाजिक गरिमा का दर्द प्रस्फुटित होता है। उस पर से भाषा का माधुर्य छन्द-लय के सहज प्रवाह के साथ एक नए तेवर के साथ हमारे सामने आता है।
यहां की भीड़ करती प्रश्न
कौन हो तुम नाम क्या है
अजनबी से लग रहे तुम
इस शहर में काम क्या है
इससे पहले कि मैं
इस भीड़ का हिस्सा बनूं
सुन मेरे पारद सरीखे मन
लौट चल तू फिर उसी परिवेश में
तीर नदिया के जहां पर
नृत्य करते मोर
स्वर्ण की चादर लपेटे
धीरे बहुत धीरे सरकती भोर
और सारस ताल में डुबकी लगाकर
आ किनारे फड़फड़ाते पर।

इस संग्रह से गुज़रते हुए ऐसा लगता है कि कविताएं अतिशय भावुकता से लवरेज़ हैं जिसके कारण शब्द विगलित हो जा रहे हैं। अधिकांश कविताओं में भावुकता के साथ-साथ चिंतन का परिमाण जिस अनुपात में होना चाहिए उसमें संतुलन की मुझे कमी नज़र आती है। ऐसा लगता है कि श्री गौड़ जब कविता लिखते हैं तो अपनी ही रौ में बहे चले जाते हैं, लेकिन अभी की स्थिति में ऐसा संभव नहीं है। फिर भी एक बात तो निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि गौड़ जी की कविताओं में छायावाद का उच्छ्वास और प्रगतिवाद की ललक का सम्मिश्रण दिखता है और इस आधार पर हम कह सकते हैं कि गौड़ जी की कविता का सूरज कभी पानी में नहीं डूबने पायेगा।
***  ***  ***

  
पुस्तक का नाम
कब पानी में डूबा सूरज
रचनाकार
बी.एल. गौड़
प्रकाशक
ज्योतिपर्व प्रकाशन, नई दिल्ली
संस्करण
प्रथम संस्करण : 2012
मूल्य
99 clip_image002
पेज
127


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1. व्योमकेश दरवेश, 2. मित्रो मरजानी, 3. धरती धन न अपना, 4. सोने का पिंजर अमेरिका और मैं, 5. अकथ कहानी प्रेम की, 6. संसद से सड़क तक, 7.मुक्तिबोध की कविताएं, 8. जूठन, 9. सूफ़ीमत और सूफ़ी-काव्य, 10. एक कहानी यह भी, 11. आधुनिक भारतीय नाट्य विमर्श, 12. स्मृतियों में रूस13. अन्या से अनन्या 14. सोनामाटी 15. मैला आंचल 16. मछली मरी हुई 17. परीक्षा-गुरू 18.गुडिया भीतर गुड़िया 19.स्मृतियों में रूस 20. अक्षरों के साये 21. कलामे रूमीपुस्तक परिचय-22 : हिन्द स्वराज : नव सभ्यता-विमर्श पुस्तक परिचय-23 : बच्चन के लोकप्रिय गीत पुस्तक परिचय-24 : विवेकानन्द 25. वह जो शेष है 26. ज़िन्दगीनामा 27. मेरे बाद

7 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा पुस्तक परिचय |
    कुछ टिप्स भी अनायास प्राप्त हुवे ||
    आभार ||

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  2. पुस्तक की समीक्षा स्तरीय बनी है. संतुलित शब्दों में कविता की विशेषता और दोषों को कहा गया है. मैं तो इसे उच्चस्तरीय समीक्षा कहूँगा...

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  3. बहुत सार्थक पुस्तक परिचय ...... गौड़ जी की कुछ रचनाएँ उनके ब्लॉग पर भी पढ़ी हैं .... आभार

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  4. पुस्तक परिचय के क्रम में इस पुस्तक का परिचय भी अच्छा लगा । धन्यवाद ।

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  5. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से शुभकामनाएँ।

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  6. bahut aabhari hun is apke prayas se ham tak pahunchte is pustak parichay ki, is tarah ki pustak parichay ham tak n pahunche to ham n jane kitni hi aisi anmol pustakon ko janne se vanchit rah jaye. aapne itna acchha parichay diya ki utsukta badh gayi hai ise padhne ki.

    sach kaha aapne is kavi ki rachnao ke in chhote chhote tukdon ko padh kar hi anumaan lagaya ja sakta hai ki iski saamany bhaasha me bahut shakti saamarthy hai. bhaasha ka itna suder kalewar, maadhury aur sahaz prawaah bahut kam hi dekhne ko milta hai jo kavi ki abhivyakti me jaan daal raha hai aur paathak ko baande rakhne me safal.

    aapne puri pustak padhi hai isliye aap beshak kah sakte hain ki कविताएं अतिशय भावुकता से लवरेज़ हैं जिसके कारण शब्द विगलित हो जा रहे हैं। अधिकांश कविताओं में भावुकता के साथ-साथ चिंतन का परिमाण जिस अनुपात में होना चाहिए उसमें संतुलन की मुझे कमी नज़र आती है। lekin jahan bhawna ki pradhanta aa jati hai vahan kala to gaud rah hi jati hai. aur waise bhi bhaawna hi to kala ka shringar aur pran hai. jahan itni bhaawnao ki prachurta ho to baaki cheeze mithya rah jati hain.

    aabhar is pustak paichay k liye.

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