मंगलवार, 9 नवंबर 2010

बीसवी शताब्दी में डोगरी में महिला लेखन

बीसवी शताब्दी में डोगरी में महिला लेखन

 

उत्तर भारत की आधुनिक भाषाओं के बीच डोगरी का अपना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भाषाई संरचना और लोक जीवन में इसकी पहुँच को देखते हुए इसे आधुनिक भाषा का दर्जा मिला है. लोकगीत, लोक कथाओं, लोक नाटक , मुहावरों आदि की प्रचुरता के बीच डोगरी साहित्य जन मानस के रचा बसा है. बीसवी शताब्दी में डोगरी साहित्य में महिलाओं का वर्चस्व रहा है. श्री अरुण चन्द्र रॉय की एक संक्षिप्त वार्ता

उत्तर भारत की आधुनिक भाषाओं के बीच डोगरी का अपना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भाषाई संरचना और लोक जीवन में इसकी पहुँच को देखते हुए इसे आधुनिक भाषा का दर्जा मिला है. लोकगीत, लोक कथाओं, लोक नाटक , मुहावरों आदि की प्रचुरता के बीच डोगरी साहित्य जन मानस के रचा बसा है.

हिंदी में जिस तरह कबीर की सखिया है, डोगरी में "बाबा जित्तो दी कारक" लोगों के जबान के माध्यम से आज भी जीवित है. डोगरी भाषा के लिखित साहित्य का प्रमाण १५- १६वी शताब्दी से ही मिलने लगता है और उप्लाब्द्ग साहित्य के आधार पर कवि दत्तु (देवी दत्तु) को डोगरी का पहला कवि माना गया है. इसके अतिरिक्त मानक चंद और गंभीर राय की छिटफुट कवितायें भी  हमे प्राप्त होती हैं लेकिन साहित्य सृजन की यह परम्परा बीसवी शताब्दी में अपने चरम पर पहुँच जाती है. डोगरी साहित्य का देश के स्वाधीनता संग्राम के दौरान जन चेतना को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका है. फिछले छः दशकों में डोगरी भाषा में सभी विधों में साहित्य रचा गया है और इसमें महिलाओं का योगदान सक्रिय रहा है.

जहाँ तक बीसवी शताब्दी में डोगरी साहित्य सृजन में महिलओं के योगदान का सम्बन्ध है, महिलओं ने ना केवल कविता, कहानियों, नाटक में सक्रियता से योगदान किया है बल्कि डोगरी भाषा, साहित्य, संस्कृति आदि के क्षेत्र में महवपूर्ण लेखन और शोध किये हैं.

काव्य सृजन

डोगरी कविता के क्षेत्र में  कवियत्रियों ने ख़ास मुकाम हासिल किया है और राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है. पद्मश्री पद्मा सचदेव किसी परिचय की मोहताज नहीं है और इन्होने डोगरी कविता को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी है. इनकी कविताओं का ना केवल भृत्य भाषाओँ में बल्कि अंग्रेजी, रुसी भाषाओँ में भी अनुवाद हुआ है और डोगरी लोक चेतना , संस्कृति से अपनी कविताओं के माध्यम से विश्व को अवगत कराया है. इनकी प्रमुख कविता संग्रहों में "मेरी कविता मेरे गीत" , "तवी ते चन्हा" , "न्हेरियाँ गालिया" "पोटा पोटा निम्बल" , "उत्तरबैहिनी" उल्लेखनीय हैं. पद्मा सचदेव की कविताओं में सहजता, सरलता, सरसता, मिठास और अपनी धरती की सोंधी महक के साथ साथ तवी नदी की निर्मल धार भी है.

श्री मती  संतोष खजुरिया ने भी डोगरी कविता में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इनकी काव्य संग्रहों में "त्रिलोची" और "भोले भाव" महत्वपूर्ण हैं. इके अतिरिक्त प्रोफेस्सर चंपा शर्मा, शक्ति शर्मा, कृष्ण मगोत्रा, शकुन्त दीपमाला, उमा व्यास, शकुंतला शर्मा वीर्पुरी, अनु सिंह, उषा किरण'किरण', मधु शर्मा, ललिता तपस्वी आदि ने डोगरी कविता को भारतीय मुख्यधारा कविता में स्थान दिलाया है. 

कहानी लेखन

ललिता मेहता के कहानी संग्रह 'सुई धागा' (१९५७) को डोगरी साहित्य में किसी महिला रचनाकार का पहला कहानी संग्रह माना जाता है और उसके पश्चात् डोगरी कहानी का सफ़र लगातार जारी है. 'सुई धागा' कहानी संग्रह में कुल सात कहानिया थी जिसमे 'टस्सरी कुरता', चाचू, हंडोला और सुई धागा महवपूर्ण कहानिया थी जो आज भी पढी जाती हैं. डोगरी कहानियों में लोक जिन्वन, लोक कथाओं, पहाड़ों की कठिन जीवन पद्धति, नारी जीवन आदि का सजीव चित्रण हुआ है.

डोगरी कथा साहित्य में जिन महिला रचनाकारों ने सक्रियता से योगदान किया है उनमे ललिता मेहता (तस्सरी कुरता, बूट), पद्मा सचदेव(बू तू राजी), चंपा शर्मा (संदोख), शकुन्त दीपमाला (चाचू नेई आया), उषा व्यास (पानी आया पानी आया), कृष्ण शर्मा (दिर थुआधी), सुदेश राज (स्पर्श, कण कण फिसल्दी रेत  ), संतोष सांगरा (मानसी), शशि पठानिया (ओह कुन ही ), अर्चना केसर (बक्खरे बक्खरे चेहरे ) और निर्मल विक्रम(एक होर अनुभव ) महत्वपूर्ण हैं.

इसके अलावा डोगरी भाषा-साहित्य, लोकवार्ता, संस्कृति, अनुवाद, शोध आदि के क्षेत्र में डॉ. सुषमा शर्मा, डॉ. अनीता बलौरिया, डॉ. नीरजा शर्मा, डॉ. शशि बजाज डॉ. नीरू शर्मा आदि उल्लेखनीय रूप से योगदान कर रही हैं.

11 टिप्‍पणियां:

  1. डोगरी भाषा , में महिलाओं का योगदान ..इस विषय पर जानकर जानकारियों में इजाफा हुआ ,सारगर्भित लेख के माध्यम से आपने जानकारियों को हम तक पहुँचाने का सार्थक प्रयास किया है ..धन्यवाद

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  2. ज्ञानवर्धक आलेख. बहुत-बहुत आभार.

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  3. ज्ञानवर्धक आलेख के लिये धन्यवाद।

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  4. ज्ञानवर्धक आलेख. बहुत-बहुत आभार!

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  5. डोगरी भाषा के साहित्य की जानकारी अच्छी लगी ....आभार

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  6. हिंदी साहित्य इतना सम्रद्ध है कि उसकी कोख में बहुत से अनछुए रत्न मौजूद हैं . अरुणजी बहुत शिद्दत से उन्हें खोज लाये हैं . रोचक और ज्ञानवर्धक लेख. शुभकामना.

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  7. काफ़ी बढिया और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है……………आभार्।

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  8. Dongari bhasha ke sambandh mein mhatvapurn jankari mili.Bahut hi suchnaparak post.Dhanyavad

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  9. अच्छी लगी ये जानकारी सब कुछ नया सा लगा

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  10. बहुत ही जानकारीपूर्ण आलेख....

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