रविवार, 31 जुलाई 2011

शून्य मंदिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी


महादेवी वर्मा की की कविताएं-1

शून्य मंदिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी

शून्य मंदिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी॥

      अर्चना हों शूल भाले,
      क्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले,
            आज करुणा-स्नात उजला,
            दुःख हो मेरा पुजारी।

      नुपूरों का मूक छूना,
      सरव करदे विश्व सूना,
            यह अगम आकाश उतरे,
            कम्पनों का ही भिखारी।

लोल तार कभी अचंचल,
      चल न मेरा एक कुन्तल,
            अचल रोमों में समाई,
            मुग्ध हो गति आज सारी।

राग मद की दूर लाली,
      साथ भी इसमें न पाली,
            शून्य चितवन में बसेगी,
            मूक हो गाथा तुम्हारी।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आज करुणा-स्नात उजला,
    दुःख हो मेरा पुजारी।

    बहुत खूबसूरत रचना महादेवी जी की ..आभार

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  2. नमन! महादेवी वर्माजी को, भावभीनी श्रद्धांजलि!!
    निश्चित ही कालातीत रूप में, मौन रूप में,
    निस्श्ब्दाता की आरती से ही पूजित हो सकता है
    वह जो अनंत भी है शून्य भी, और इन दोनों के परे भी . बहुत ही सारगर्भित रहस्य गीत.



    जब भी,
    कोई चिन्तक - समीक्षक ,
    विचारक, साधक या कवि,
    निहारता है उस असीम को,
    सरूप में छिपे - 'अरूप' को,
    जदत्व में छिपे -'चैतन्य' को,
    सगुण में-'नर्गुण-निराकार' को,
    उस गूढ़ रहस्य को, आवरण में.
    फिर हो जाता-'निःशब्द','मौन'.
    एकदम से - 'मौन','महामौन'.

    अंतर्जगत की,
    थकाऊ, उबाऊ और दुर्गम,
    इस यात्रा मे, जा पहुचता है,
    वह अनंत से -"शून्य' तक.
    यह नि:शब्दता ही, सत्य है,
    और मौन? मौन,इस सत्य की,
    सर्वाधिक सबल अभिव्याक्ति है.

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  3. mahadevi ji ki kavitayen jab bhi padhi hai apni si lagi hain. aabhar ise ham tak pahuchane ke liye.

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  4. shunya chitwan main basegi mook ho gatha tumari-bahut hi sundar nice

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