मंगलवार, 19 जून 2012

बादल को घिरते देखा है

बादल को घिरते देखा है

नागार्जुन


अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।

छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादलों को घिरते देखा है



तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।

16 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर जीवन चक्र बादलों का ...वाह कहाँ से कहाँ घिर घिर कर पहुंच जाते हैं बादल ....!!
    सुंदर कविता ...
    आभार .

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  2. नागार्जुन जी की बेहतरीन रचना पढवाने के लिये,,,,मनोज जी आभार,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  3. सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार .....

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  4. bahut hi barik varnan prakriti ka yahi to kavi ki kalpna hai ...jivant kalpna thanks manoj jee....

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  5. मानव मन की अपनी ही एक व्यथा-कथा है । उसका मन जिससे जुड़ जाता है,वहीं पर वह भी स्थिर हो जाता है।
    इसी संबंध में बाबा नागार्जुन से मेरा साहित्यिक जुड़ाव वंचित नही रहा। आज बहुत दिनों बाद उनकी एक अच्छी कविता पढ़ने को मिली । बहुत ही अच्छा लगा । धन्यवाद ।

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  6. शुभकामनाएं |
    सुन्दर प्रस्तुति ||

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  7. नागार्जुन जी की सुन्दर रचना पढवाने के लिए आभार....

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  8. यह रचना तो हमने बाबा के मुख से उनकी टिप्पणी के साथ सुनी है।
    बहुत सुन्दर रचना!
    इसको साझा करने के लिए आभार!

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  9. .पावस की ऊमस से आकुल
    तिक्त-मधुर बिसतंतु खोजते
    हंसों को तिरते देखा है।
    बादल को घिरते देखा है।
    शुक्रिया इस बाबा नागार्जुन की रचना के लिए कृपया उमस कर लें 'ऊमस'. .कृपया यहाँ भी पधारें -


    ram ram bhai
    बुधवार, 20 जून 2012
    ये है मेरा इंडिया
    ये है मेरा इंडिया

    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  10. नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना कई बार पढ़ी है पर हर बार पढ़ने पर बांध लेती है..

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