सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

मधुशाला ---- भाग -2 / हरिवंश राय बच्चन




जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 


मधुशाला  ..... भाग -2 


मधुर  भावनाओं  की सुमधुर 
नित्य    बनाता    हूँ     हाला 
भरता  हूँ इस मधु  से अपने 
अंतर   का  प्यासा   प्याला ;
            उठा कल्पना के हाथों से 
            स्वयं   इसे   पी जाता हूँ 
अपने    ही में   हूँ      साकी , 
पीने    वाला ,     मधुशाला । 

मदिरालय    जाने  को  घर से 
चलता      है    पीने      वाला , 
किस पथ से जाऊँ? असमंजस 
में     है     वो       भोलाभाला ;
      अलग अलग पथ बतलाते सब 
      पर    मैं    यह   बतलाता   हूँ - 
राह   पकड़ तू एक चलाचल 
पा      जाएगा     मधुशाला । 

चलने ही चलने में कितना 
जीवन , हाय बिता डाला ! 
दूर अभी है , पर कहता है 
हर    पथ   बतलाने वाला 
       हिम्मत है न बढ़ूँ आगे को , 
       साहस    है न   फिरूँ पीछे ;
किंकर्तव्य विमूढ़  मुझे कर 
दूर  खड़ी    है    मधुशाला । 

मुख से तू अविरत  कहता   जा 
मधु , मदिरा ,    मादक   हाला 
हाथों में   अनुभव   करता  जा 
एक ललित    कल्पित  प्याला 
           ध्यान किए जा मन में सुमधुर , 
           सुखकर   सुंदर     साकी   का ;
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको 
 दूर          लगेगी      मधुशाला । 

मदिरा पीने की अभिलाषा 
ही   बन  जाये  जब हाला ,
अधरों की  आतुरता में ही 
जब आभासित हो प्याला ; 
              बने ध्यान ही करते करते 
              जब  साकी साकार , सखे 
रहे न हाला , प्याला , साकी 
तुझे   मिलेगी    मधुशाला । 

सुन कलकल , छल छल   मधु - 
घट से गिरती  प्यालों  में हाला , 
सुन ,   रुनझुन  रुनझुन   चल 
वितरण करती मधु साकीबाला ; 
            बस आ पहुंचे , दूर नहीं कुछ , 
            चार   कदम   अब  चलना है ;
चहक रहे , सुन , पीनेवाले , 
महक रही, ले , मधुशाला । 




5 टिप्‍पणियां:

  1. ध्यान किए जा मन में सुमधुर ,
    सुखकर सुंदर साकी का ;
    और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको
    दूर लगेगी मधुशाला ।

    आनन्द आ गया पढकर …………आप बहुत नेक कार्य कर रही हैं।

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  2. चलने ही चलने में कितना
    जीवन , हाय बिता डाला !
    दूर अभी है , पर कहता है
    हर पथ बतलाने वाला
    हिम्मत है न बढ़ूँ आगे को ,
    साहस है न फिरूँ पीछे ;
    किंकर्तव्य विमूढ़ मुझे कर
    दूर खड़ी है मधुशाला ।

    कितना गहन सन्देश छिपा है जीवन का इन पंक्तियों में .बहुत सुन्दर .

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  3. मदिरालय जाने को घर से
    चलता है पीने वाला ,
    किस पथ से जाऊँ? असमंजस
    में है वो भोलाभाला ;
    अलग अलग पथ बतलाते सब
    पर मैं यह बतलाता हूँ -
    राह पकड़ तू एक चलाचल
    पा जाएगा मधुशाला ।

    वाह जितना ही पढ़ते हैं इसको, प्यास बढ़ाती मधुशाला।

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  4. आपको पिछले अंक में भी कहा था, कि यह मेरी सर्वप्रिय रचना है। पढ़ता जाता हूं। और ये मेरे जीवन की सबसे प्रेरक पंक्तियां हैं जिन्हें मैं अपनाता हूं
    राह पकड़ तू एक चलाचल
    पा जाएगा मधुशाला ।

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