आज राजभाषा हिन्दी ब्लॉग के पाठकों के लिए मैं ले कर आई हूँ " मधुशाला "।
हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला लगभग 7 दशक से लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान है । सर्वप्रथम 1935 में यह प्रकाशित हुयी थी ।
तब से अब तक कई लाख प्रतियाँ पाठकों तक पहुँच चुकी हैं । महाकवि पंत के शब्दों में --- " मधुशाला की मादकता अक्षय है। "
जन्म -- 27 नवंबर 1907
निधन -- 18 जनवरी 2003
कुछ लोग शायद यह सोचते हैं कि मधुशाला में मय और मैखाने की ही बात होगी .... पर ऐसा नहीं है ....मधुशाला में हाला , प्याला , मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी , मर्मस्पर्शी , रागात्मक और रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी है । हम पाठकों को मधुशाला की मस्ती और मादकता में खो जाने के लिए आमंत्रित करते हैं ....
कवि ने सम्बोधन में लिखा है ---
मेरे मादक , .... ( अर्थात उनकी रचनाओं के पाठक ) तो पेश है ---------
मधुशाला -----
मृदु भावों के अंगूरों की
आज बना लाया हाला
प्रियतम , अपने ही हाथों से
आज पिलाऊंगा प्याला ;
पहले भोग लगा लूँ तेरा
फिर प्रसाद जग पाएगा ;
सबसे पहले तेरा स्वागत
करती मेरी मधुशाला ।
प्यास तुझे तो , विश्व तपा कर
पूर्ण निकालूँगा हाला
एक पाँव से साकी बन कर
नाचूंगा लेकर प्याला
जीवन की मधुता तो तेरे
ऊपर कब का वार चुका ,
आज निछावर कर दूंगा मैं
तुझ पर जग की मधुशाला ।
प्रियतम तू मेरी हाला है
मैं तेरा प्यासा प्याला
अपने को मुझमें भर कर तू
बनता है , पीने वाला ;
मैं तुझको छक छलका करता,
मस्त मुझे पी तू होता ;
एक दूसरे को हम दोनों
आज परस्पर मधुशाला ।
भावुकता अंगूर लता से
खींच कल्पना की हाला
कवि साकी बन कर आया है
भर कर कविता का प्याला ;
कभी न कण भर खाली होगा ,
लाख पिएं , दो लाख पिएं
पाठकगण हैं पीने वाले
पुस्तक मेरी मधुशाला ।
क्रमश:
मधुशाला मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तकों में से एक है ! इसका सुरूर तो मन आत्मा पर इस तरह तारी है कि उतरने का नाम ही नहीं लेता ! पितृपक्ष के आरम्भ में 'तराने सुहाने' पर मैंने कुछ अंश मधुशाला के भी पोस्ट किये थे ! यह ऐसी पुस्तक है इसे जितना पढ़ो नशा बढ़ता ही जाता है ! आपने आज मेरी सुबह खुशियों से भर दी ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंइस मधुशाला का रस और सुरूर कभी समाप्त होनवाला नहीं.इसमें जीवन-दर्शन का एक नया ही रूप उद्घाटित होता है जो पाठक को अभिभूत कर देता है - आभार संगीता जी !
जवाब देंहटाएंकभी न कण भर खाली होगा ,
जवाब देंहटाएंलाख पिएं , दो लाख पिएं
पाठकगण हैं पीने वाले
पुस्तक मेरी मधुशाला ।
.... अब इसके आगे कोई नशा नहीं
कलम बनी है साक़ी
शब्द शब्द से बनी है देखो मधुशाला
ek nayi shuruaat ke liye badhayi. isme chhipe goodh arthon ko samajhne ki koshish karungi.
जवाब देंहटाएंकभी न कण भर खाली होगा ,
जवाब देंहटाएंलाख पिएं , दो लाख पिएं
पाठकगण हैं पीने वाले
पुस्तक मेरी मधुशाला ।
ये तो बहुत बढिया शुरुआत की …………पूरी पढने की इच्छा थी जो अब पूरी हो जायेगी………आभार्।
बहुत सुन्दर दी....
जवाब देंहटाएंमुझे बहुत पसंद है...बचपन में पापा रिकोर्ड प्लेयर पर मन्ना डे जी की आवाज़ में सुनते थे,तब से अच्छा लगता था...तब जबकि इसमें छिपे गहन अर्थ समझ भी नहीं पाती थी....
अब फिर से पढ पाउंगी...क्रमानुसार..
आभार.
अनु
वाह संगीता जी इस बार बहुत अच्छी कृति से सबको रूबरू करवा रही हें. बहुत पहले पढ़ी थी और फिर २००४ में मुझे आई आई टी में हिंदी सप्ताह में काव्य पाठ में प्रथम पुरस्कार में दी गयी थी. मेरे लिए अनमोल कृति है. इसका एक एक शब्द गहन अर्थ लिए हुए है.
जवाब देंहटाएंअरे यह क्या कर दिया आपने...मधुशाला शायद इकलौती ऐसी पुस्तक है जिसे मैं जितनी बार भी पढू मन नहीं भरता.मेरी सबसे प्रिय पुस्तक.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका.
मधुशाला को के बार फिर पढूंगा आपके साथ... बधाई...
जवाब देंहटाएंसार्थक ,सुंदर प्रयास संगीता दी ....!!
जवाब देंहटाएंmy favourite...badhai...
जवाब देंहटाएंयह मेरी ‘वन ऑफ़ द फ़ेविरिट्स’ है। इसको पढ़ता और गुनता जाऊंगा।
जवाब देंहटाएंआभार इसे इस ब्लॉग पर प्रस्तुत करने के लिए।
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जवाब देंहटाएंजिसके अंतर में प्यास जगे,प्रसाद उसी को मिल पाता है। और जिसे यह प्रसाद मिल जाए,उसका आनन्द असीम होता है। वह एक पांव पर नाचते भी नहीं थकता क्योंकि अपनी मस्ती में होता है। मस्ती यह जानने की,कि आनन्द का स्रोत असीम है,वहां कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं। जितना चाहे तुम डूबो,जितना चाहूं मैं!
जवाब देंहटाएंकभी न कण भर खाली होगा ,
जवाब देंहटाएंलाख पिएं , दो लाख पिएं
आपका यह प्रयास सच में बेहद सराहनीय है .. इस उत्कृष्ट कृति को
आपके माध्यम से पढ़ना बेहद रूचिकर
सादर
अभी तक मधुशाला की कुछ ही पंक्तियाँ पढी हैं । यहाँ पूरी पढ सकूँगी । धन्यवाद संगीता जी ।
जवाब देंहटाएंBahut-bahut dhanyawaad didi :))
जवाब देंहटाएंbahut he acha likhte hai aap
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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