प्रबुद्ध पाठकों को अनामिका का सादर नमन । जैसे एक ही उद्गम से निकलकर एक ही नदी अनेक रूप धारण कर लेती है वैसे ही हिंदी साहित्य का इतिहास भी प्रारंभिक अवस्था से लेकर अनेक धाराओं के रूप में प्रवाहित होता हुआ आधुनिक काल रूप में भी परिवर्तित होता है, तो आइये आधुनिक काल के प्रसिद्ध कवियों और लेखकों के जीवन-वृत्त, व्यक्तित्व, साहित्यिक महत्त्व, काव्य सौन्दर्य और उनकी भाषा शैली पर प्रकाश डालते हुए आज चर्चा करते हैं श्री श्याम सुन्दर दास जी की ..... अनामिका
बाबू श्यामसुन्दर दास
जन्म संवत 1932 (सन 1875 ), मृत्यु सन 1945 ई.
बाबू श्यामसुंदर दास जी हिंदी के मूर्धन्य गद्यकारों में से हैं। बाबू जी का बहुमुखी व्यक्तित्व महान था। इन्होने हिंदी को समर्थ बनाने में जो कार्य किया उसे लक्ष्य कर मैथिलीशरण गुप्त जी ने ठीक ही लिखा है :-
"मातृभाषा के हुए जो विगत वर्ष पचास
नाम उनका एक ही है श्यामसुंदर दास।
"महावीर प्रसाद द्विवेदी ने भी लिखा खाई -
मातृभाषा के प्रचारक विमल बी ए पास
सौन्दर्य शील विधान बाबू श्याम सुन्दर दास।
बाबू श्यामसुंदर दास जी का जन्म काशी के एक पंजाबी खत्री खन्ना परिवार में आषाढ़ शुक्ल 11, मंगलवार, संवत 1932 (सन 1875) को हुआ था। इनके पिता का नाम देविदास और माता का नाम देवकी था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बनारस में नीची बाग़ में बेसलियन मिशन स्कूल में हुई और कुछ समय तक वहां पढने के बाद यह बनारस में ब्रह्मनाल के हनुमान सेमिनरी में भर्ती किये गये। वहां से सन 1890 ई. में इन्होने एंग्लो वर्नाक्युलर मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की और इसके पश्चात क्वींस कालिजयेट स्कूल में पढने लगे सन 1893 ई. में इन्होने इंट्रेस और सन 1894 ई. में इंटरमीडियेट परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद काशी में पढने का कोई साधन न होने से यह प्रयाग विश्वविद्यालय में पढने लगे पर सन 1896 ई. में अकस्मात् बीमार पड़ जाने के कारण यह बी. ए. की पढाई परीक्षा में सफल न हो सके। इसी वर्ष काशी क्वींस कालेज में बी. ए. की पढाई का श्रीगणेश हुआ और यह प्रयाग से बनारस लौट आये तथा सन 1897 ई. में बी. ए. पास किया। आर्थिक सुविधाओं का अभाव होने से इन्होने आगे पढना छोड़ दिया और काशी के तत्कालीन चंद्रप्रभा प्रेस में चालीस रूपए प्रति माह पर नौकरी कर ली। इस कार्य में इनका जी न लगा और कुछ महीने वहां काम करने के पश्चात यह सन 1899 ई. में हिन्दू स्कूल के अध्यापक हो गए। कुछ समय बाद यह महाराजा कश्मीर के निजी कार्यालय में भी रहे और फिर सिंचाई विभाग में भी कार्य किया पर यह सब व्यवसाय इन्हें रुचिकर न प्रतीत हुए। तदन्तर यह लखनऊ में कालीचरण हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक हो गए और बाद में महामना मदनमोहन जी मालवीय के अनुरोध पर काशी विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रधान नियुक्त हुए। इस पद पर रहकर इन्होने हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण सेवा की तथा अवकाश ग्रहण करने के बाद भी यह व्यक्तिगत रूप से साहित्य साधना में रत रहे !
विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में हिंदी का स्थान दिलाने वाले यह प्रधान व्यक्ति थे और निम्न कक्षाओं से उच्च कक्षाओं तक के लिए हिंदी की पाठ्य पुस्तकें तैयार करने में इनका व्यक्तित्व बेजोड़ है -
भाषा विज्ञान, वैज्ञानिक शब्दकोष, सैद्धांतिक समीक्षा, हिंदी साहित्य का इतिहास, हिंदी भाषा का इतिहास आदि विषयों से सम्बंधित पुस्तकों की रचना कर इन्होने हिंदी साहित्य के एक खटकते हुए अभाव की पूर्ती की।
इनकी हिंदी सेवाओं के उपलक्ष्य में तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने इन्हें 1 जनवरी सन 1927 में रायसाहब की और सन 1933 में अखिल भारत-वर्षीय हिंदी साहित्य सम्मलेन ने 'साहित्य वाचस्पति' की उपाधि प्रदान की। काशी विश्वविद्यालय ने भी इन्हें डी.लिट्. की उपाधि देकर सम्मानित किया और यह भी उल्लेखनीय है कि इन्हें यह उपाधि महात्मा गाँधी के हाथों प्रदान की गयी थी।
गद्य साधना -
श्यामसुंदर दास जी के समय में उपन्यास, नाटक, काव्य और कथा आदि क्षेत्रों में द्रुतगति से साहित्य निर्माण हो रहा था पर अनुसन्धान, भाषा विज्ञान और साहित्यालोचन आदि विषयों पर किसी का ध्यान नहीं गया था। इस प्रकार इन्होने पहली बार इस क्षेत्र में पदार्पण कर हिंदी की आवश्यकताओं को पूर्ण किया। अंग्रेजी साहित्य के ज्ञाता होने के कारण इन्होने अंग्रेजी साहित्य का आधार लेकर अनुसन्धान, भाषा विज्ञान , साहित्यालोचन, कवि समीक्षा और नाट्यशास्त्र जैसे गूढ़ और गंभीर विषयों पर हिंदी में लिखा। अंग्रेजी की समीक्षात्मक पुस्तकों का भावापहरण होने के कारण इनके सैद्धांतिक ग्रंथों में भले ही मौलिकता की कमी हो पर विवेचना का ढंग तो सर्वथा इनका निजी है और तत्कालीन परिस्थितियों व् युग में इसके अतिरिक कोई मार्ग भी न था। इस प्रकार यह हिंदी के मौलिक आलोचक हैं।
भाषा शैली -
श्यामसुंदर दास जी ने शुद्ध साहित्यिक हिंदी का प्रयोग किया है तथा विदेशी शब्दों को भी हिंदी के सांचे में ढाल लिया है। इनकी भाषा में संस्कृत के तत्सम और प्रचलित तद्भव शब्दों की अधिकता है। उर्दू शब्दों को भी ग्रहण करने के पूर्व इन्होने हिंदी भाषा की प्रकृति के अनुसार उनके रूप और ध्वनि में परिवर्तन कर दिया है। इनकी भाषा क्लिष्ट और जटिल नहीं है तथा सर्वत्र सुगठित और सुलझी हुई है।
गूढ़ से गूढ़ विषयों के प्रतिपादन में इनकी भाषा सफल रही है। इनकी भाषा गंभीर और संयत होते हुए भी धारावाहिक प्रवाह लिए हुए है।
श्यामसुंदर दास जी ने शैली को भाषा का व्यक्तिगत प्रयोग माना है, अतः शैली विषयक उनका मंतव्य भाषा विवेचन के प्रसंग में आ गया है। इनकी शैली में सरलता और सुबोधता का सहज गुण है जो विषयानुरूप सर्वत्र यथावसर परिवर्तनशील रही है। इनके निबंध प्राय तीन प्रकार के हैं, तदनुरूप इनकी लेखनी शैली भी तीन प्रकार की हो गयी है - व्याख्यात्मक, विचारात्मक और गवेषणात्मक . किन्तु बाबू जी मूलतः व्यास शैली के लेखक हैं।
कृतियाँ -
श्यामसुंदर दास जी के कृतित्व को हम निम्न वर्गों में रख सकते हैं।
मौलिक - हिंदी कोविद रत्नमाला, साहित्यालोचन, भाषा-विज्ञान, हिंदी भाषा का विकास, गद्य कुसुमावली, भारतेंदु हरिश्चंद्र, हिंदी भाषा और साहित्य, गोस्वामी तुलसीदास, रूपक रहस्य, भाषा रहस्य, हिंदी गद्य के निर्माता, मेरी आत्म-कहानी।
संपादित - चन्द्रावती या नासिकेतोपाख्यान, छत्र-प्रकाश, रामचरित मानस, पृथ्वीराज रासो, वनिता-विनोद, हिंदी- वैज्ञानिक कोष, इन्द्रावती, हम्मीर रासो, शकुंतला नाटक, प्रथम हिंदी साहित्य सम्मलेन की लेखावली, बाल विनोद, हिंदी शब्द सागर, मेघदूत दीनदयाल गिरि , ग्रंथावली, परमाल रासो, अशोक की धर्म लिपियाँ, रानी केतकी की कहानी, भारतेंदु नाटाकावली, कबीर ग्रंथावली, राधा कृष्ण ग्रंथावली, सतसई सप्तक, द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ, रत्नाकर, बाल-शब्दसागर, त्रिधारा, नागरी प्रचारिणी पत्रिका (भाग 1-28), सरस्वती (1900-1902), मनोरंजन पुस्तकमाला के पचास ग्रन्थ .
संकलित ग्रन्थ और पाठ्य पुस्तकें - मांस सूक्तावली, संक्षिप्त रामायण, हिंदी निबंध माला भाग 1-2, संक्षिप्त पद्मावत हिंदी निबंध रत्नावली, भाषा सार-संग्रह, भाषा-पत्र बोध, प्राचीन लेख मणिमाला, आलोक चित्रण, हिंदी पत्र लेखन, हिंदी प्राइमर, हिंदी की पहली पुस्तक, हिंदी ग्रामर, गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया, हिंदी संग्रह, बालक विनोद, सरल संग्रह, नूतन संग्रह, अनुलेख माला, नयी हिंदी रीडर भात 6-7, हिंदी संग्रह भाग 1-2, हिंदी कुसुम संग्रह भाग 1-2, हिंदी कुसुमावली, साहित्य सुमन भाग 1-4, गद्य रत्नावली, साहित्य प्रदीप, हिंदी गद्य कुसुमावली 1-2, हिंदी प्रवेशिका पद्यावली, हिंदी प्रवेशिका गद्यावाली, हिंदी गद्य संग्रह, साहित्यिक लेख।
स्थान और महत्त्व - हिंदी निबंध-साहित्य के इतिहास में निबंध लेखकों की पंक्ति में बाबु श्यामसुंदर दास आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के बाद आते हैं। द्विवेदी युगीन निबंधकारों में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। द्विवेदी युगीन विचारात्मक निबंधकारों में महत्वपूर्ण होते हुए भी हिंदी निबंध साहित्य में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पश्चात ही आपका स्थान है।
श्यामसुंदर दास जी जीवन के 71वें वर्ष में बीमार पड़े तो फिर उठ न सके और सं. 2002 में इनका स्वर्गवास हो गया !
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जवाब देंहटाएंशायद कभी पढ़ा नहीं बाबू श्यामसुन्दर दास जी को....
जवाब देंहटाएंजानकारी युक्त पोस्ट के लिए आभार हूँ..
सादर
अनु
एम.ए. हिन्दी में पढा हुआ पाठ्यक्रमं यहाँ काम आ रहा है!
जवाब देंहटाएंसुनदर प्रस्तुति!
स्थान और महत्त्व - हिंदी निबंध-साहित्य के इतिहास में निबंध लेखकों की पंक्ति में बाबु।।।।।।।( बाबू )........... श्यामसुंदर दास आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के बाद आते हैं। द्विवेदी युगीन निबंधकारों में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। द्विवेदी युगीन विचारात्मक निबंधकारों में महत्वपूर्ण होते हुए भी हिंदी निबंध साहित्य में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पश्चात ही आपका स्थान है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा व्यक्तित्व और कृतित्व से पारिचय करवाया आपने .
याद आता है, इनके लिखे कुछ निबंध पढ़े हैं अपने हाईस्कूल की पाठ्यपुस्तक में जो भाषा व शैली में अद्भुत थे। इतनी सुंदर जानकारी के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंदेवेन्द्र
शिवमेवम् सकलम् जगत
जानकारी युक्त बढ़िया पोस्ट |
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट:- ठूंठ
"मातृभाषा के हुए जो विगत वर्ष पचास
जवाब देंहटाएंनाम उनका एक ही है श्यामसुंदर दास।'
- पहले पढ़े हुये पूरे पाठ याद आ गये ,धन्यवाद !
एक बेहतरीन आलेख जिसके द्वारा कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई।
जवाब देंहटाएंबाबू श्यामसुंदर दास जी के बारे में में अच्छी जानकारी मिली। ऐसी जानकारियां हमारे साहित्यिक ज्ञान में वृद्धि करती हैं। बड़ी लड़की की बीमारी के कारण मन एकाग्रचित नही रहता था। इस वजह से मैं कुछ दिनों से इस दुनिया से अलग रहा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति
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