जन्म -- 27 नवंबर 1907
निधन -- 18 जनवरी 2003
मधुशाला भाग - 3
जलतरंग बजता , जब चुंबन
करता प्याले को प्याला ,
वीणा झंकृत होती चलती ,
जब रुनझुन साकी बाला ,
डांट- डपट मधुविक्रेता की
ध्वनित पखावज करती है ,
मधुरव से मधु की मादकता
और बढ़ाती मधुशाला ।
मेहँदी - रंजीत मृदुल हथेली
पर माणिक मधु का प्याला
अंगूरी अवगुंठन डाले
स्वर्ण - वर्ण साकी- बाला
पाग बेंजनी जामा नीला
डाट - डटे पीने वाले
इंद्रधनुष से होड़ लगाती
आज रंगीली मधुशाला ।
हाथों में आने से पहले
नाज़ दिखाएगा प्याला
अधरों पर आने से पहले
अदा दिखाएगी हाला
बहुतेरे इंकार करेगा
साकी आने से पहले
पथिक , न घबरा जाना पहले
मान करेगी , मधुशाला ।
लाल सुरा की धार लपट सी
कह न देना इसे ज्वाला
फेनिल मदिरा है , मत इसको
कह देना उर की छाला ,
दर्द नशा है इस मदिरा का
विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो
आए मेरी मधुशाला ।
जगती की शीतल हाला सी
पथिक , नहीं मेरी हाला
जगती के ठंडे प्याले सा ,
पथिक , नहीं मेरा प्याला ,
ज्वाल - सुरा जलते प्याले में
दग्ध हृदय की कविता है
जलने से भयभीत न हो जो ,
आए मेरी मधुशाला ।
बहती हाला देखी , देखो
लपट उठाती अब हाला ,
देखो प्याला अब छूते ही
होठ जला देने वाला ,
होठ नहीं , सब देह दहे , पर
पीने को दो बूंद मिले ,
ऐसे मधु के दीवाने को
आज बुलाती मधुशाला ।
man prasann ho gaya ....madhushala padkar
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं आदरेया ||
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंदर्द नशा है इस मदिरा का
विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो
आए मेरी मधुशाला । ...वाह !!!
शुक्रिया संगीता दी...
सादर
अनु
आह ...वाह ...सुकून सा आ जाता है पढकर.
जवाब देंहटाएंbachchan to phir bachchan hi hain....
जवाब देंहटाएंmahaan kavi ki kaaljayi rachana
लाल सुरा की धार लपट सी
जवाब देंहटाएंकह न देना इसे ज्वाला
फेनिल मदिरा है , मत इसको
कह देना उर की छाला ,
दर्द नशा है इस मदिरा का
विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो
आए मेरी मधुशाला ।
वाह संगीताजी ...मज़ा आ गया आभार !
हरिवंशराय बच्चन की कालजयी रचना जब भी पढों तो ऐसा लगता है कि पहली बार पढ रहा हूँ ।
जवाब देंहटाएंpoorn aanadmay ho rahe hain is madhushala me aakar.
जवाब देंहटाएंदर्द नशा है इस मदिरा का
जवाब देंहटाएंविगत स्मृतियाँ साकी हैं
पीड़ा में आनंद जिसे हो
आए मेरी मधुशाला ।
कितना गहन-जीवन दर्शन है इस काव्य में!