सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

मधुशाला ---- भाग -3 / हरिवंश राय बच्चन



जन्म -- 27 नवंबर 1907 
निधन -- 18 जनवरी 2003 


मधुशाला  भाग - 3 


जलतरंग बजता , जब चुंबन 
करता  प्याले   को     प्याला , 
वीणा   झंकृत   होती  चलती ,
जब  रुनझुन  साकी     बाला , 
              डांट- डपट  मधुविक्रेता  की 
              ध्वनित  पखावज  करती है , 
मधुरव से मधु की मादकता 
और  बढ़ाती      मधुशाला ।

मेहँदी - रंजीत मृदुल हथेली 
पर माणिक मधु का प्याला 
अंगूरी    अवगुंठन     डाले 
स्वर्ण - वर्ण    साकी- बाला 
              पाग बेंजनी जामा नीला 
              डाट - डटे    पीने    वाले 
इंद्रधनुष से होड़ लगाती 
आज रंगीली  मधुशाला । 

हाथों   में  आने से  पहले 
नाज़  दिखाएगा   प्याला 
अधरों पर आने  से पहले 
अदा    दिखाएगी    हाला 
              बहुतेरे   इंकार  करेगा 
              साकी   आने से  पहले 
पथिक , न घबरा जाना पहले 
मान   करेगी ,     मधुशाला । 

लाल   सुरा  की धार लपट सी 
कह   न   देना   इसे   ज्वाला 
फेनिल मदिरा है , मत इसको 
कह   देना   उर    की   छाला , 
              दर्द नशा है इस मदिरा का 
              विगत स्मृतियाँ  साकी हैं 
पीड़ा  में आनंद जिसे हो 
आए   मेरी   मधुशाला । 

जगती की शीतल हाला सी 
पथिक ,  नहीं  मेरी   हाला 
जगती   के ठंडे   प्याले सा , 
पथिक , नहीं मेरा प्याला , 
          ज्वाल - सुरा जलते  प्याले में 
          दग्ध  हृदय   की   कविता  है 
जलने से भयभीत न हो जो , 
आए     मेरी       मधुशाला । 

बहती हाला देखी , देखो 
लपट  उठाती अब हाला , 
देखो प्याला अब छूते ही 
होठ  जला   देने    वाला , 
            होठ नहीं , सब देह दहे , पर 
            पीने   को   दो   बूंद    मिले ,
ऐसे  मधु   के दीवाने को 
आज बुलाती  मधुशाला । 




9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर.....
    दर्द नशा है इस मदिरा का
    विगत स्मृतियाँ साकी हैं
    पीड़ा में आनंद जिसे हो
    आए मेरी मधुशाला । ...वाह !!!

    शुक्रिया संगीता दी...
    सादर
    अनु

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  2. आह ...वाह ...सुकून सा आ जाता है पढकर.

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  3. लाल सुरा की धार लपट सी
    कह न देना इसे ज्वाला
    फेनिल मदिरा है , मत इसको
    कह देना उर की छाला ,
    दर्द नशा है इस मदिरा का
    विगत स्मृतियाँ साकी हैं
    पीड़ा में आनंद जिसे हो
    आए मेरी मधुशाला ।
    वाह संगीताजी ...मज़ा आ गया आभार !

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  4. हरिवंशराय बच्चन की कालजयी रचना जब भी पढों तो ऐसा लगता है कि पहली बार पढ रहा हूँ ।

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  5. दर्द नशा है इस मदिरा का
    विगत स्मृतियाँ साकी हैं
    पीड़ा में आनंद जिसे हो
    आए मेरी मधुशाला ।
    कितना गहन-जीवन दर्शन है इस काव्य में!

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