बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

श्री पदमसिंह शर्मा

Anamika 7577 की प्रोफाइल फोटोप्रबुद्ध पाठकों को अनामिका का सादर  नमन ! जैसे एक ही उद्गम से निकलकर एक नदी अनेक रूप धारण कर लेती है वैसे ही हिंदी साहित्य का इतिहास भी प्रारंभिक अवस्था से लेकर अनेक धाराओं के रूप में प्रवाहित होता हुआ आधुनिक काल रूप में परिवर्तित होता है। तो आइये आधुनिक काल के प्रसिद्द कवियों और लेखकों के जीवन-वृत्त, व्यक्तित्व, साहित्यिक महत्त्व, काव्य सौन्दर्य और उनकी भाषा-शैली पर प्रकाश डालते हुए आज चर्चा करते हैं श्री पदमसिंह शर्मा जी की...                  
अनामिका


श्री पदमसिंह शर्मा

जन्म   सन 1876 ई. ,  मृत्यु  सन 1932 ई.
जीवनवृत -

पं पदमसिंह शर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जिले के नगवा नामक ग्राम में सन 1876 ई. में हुआ था। इनके पिता उमरावसिंह भूमिहार ब्राह्मण थे और अपने गाँव के मुखिया, नम्बरदार व् प्रभावशाली व्यक्ति थे। दस - बारह वर्ष की अवस्था में शर्माजी का विद्यारम्भ कराया गया और प्रारंभ में इन्हें उर्दू-फारसी की शिक्षा देने के उपरांत सारस्वत कौमुदी, रघुवंश आदि संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन कराया गया। इन्होने अष्टाव्यायी भी पढ़ी और काशी, मुरादाबाद, लाहौर, जालंधर व ताजपुर आदि स्थानों में रहकर संस्कृत का अध्ययन किया। यह आरम्भ से ही वैदिक सिद्धांतों के पक्षपाती थे और भाषण कला पर इनका अपूर्व अधिकार था। अतः सन 1930 में उत्तरप्रदेश की आर्य प्रतिनिधि सभा में इन्हें उपदेशक नियुक्त किया गया।


यह 'सत्यवती' नामक  साप्ताहिक पत्र के सम्पादकीय विभाग में भी नियुक्त हुए और यहीं से इनकी संपादन व् लेखन कला का श्रीगणेश हुआ। सं. 1965 में यह अजमेर गए और 'परोपकारी' व् 'अनाथ रक्षक' का संपादन करने लगे पर एक वर्ष उपरान्त यहाँ से त्याग पत्र देकर ज्वालापुर चले गए तथा वहां के महाविद्यालय में आठ वर्ष तक अध्यापक रहे। पिता का स्वर्गवास हो जाने से इन्हें गाँव लौटना पड़ा पर वहां इनका जी न लगता था, अतः यह काशी  के ज्ञानमंडल कार्यालय के प्रकाशन विभाग में काम करने लगे।

इसी बीच इनकी बिहारी सतसई की भूमिका-भाग प्रकाशित हुई और लगभग एक वर्ष 'सरस्वती' में सतसई 'संहार' पर लेखमाला प्रकाशित होती रही। इससे इन्हें हिंदी जगत में अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई और यह प्रांतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन  के सभापति निर्वाचित हुए तथा बिहारी सतसई सम्बन्धी प्रकाशित अंश पर इन्हें मंगलाप्रसाद पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। यह अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति भी बनाये गए।

भाषा-शैली -

शर्माजी मिश्रित भाषा के पक्षपाती थे और इन्होने हिंदी साहित्य सम्मेलन, मुरादाबाद के सभापति पद से दिए गए भाषण में अपना दृष्टिगोचर स्पष्ट करते हुए कहा भी है - "हिंदी लेखक प्रचलित और आम फहम फ़ारसी शब्दों का जो उर्दू में आ मिले हैं और उर्दू सूक्तियों का व्यवहार करना बुरा नहीं समझते, पर उर्दू-ए -मुअल्ला के पक्षपाती ठेठ हिंदी शब्दों को चुन-चुन कर उर्दू से बाहर कर रहे हैं। ----यह अच्छे लक्षण नहीं हैं।" इस प्रकार इन्होने संकृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू फ़ारसी के तीमारदार, मुद्दत, शिद्दत, जबरदस्ती, कागज़, नुमायाँ, आफत, गनीमत, इन्तजार, अजीज तथा अंग्रेजी के रिक्वेस्ट, स्कीम, न्यू लीडर, स्प्रिट, विजिटिंग कार्ड, पार्टी, फीलिंग, फंड, स्पीड, ओरिएण्टल आदि अनेक शब्दों को अपनाया है। साथ ही प्रचलित मुहावरों का व्यवहार भी इन्होने बहुत अधिक किया है।

सामान्यतः इनकी गद्य रचनाओं में शैली के मूलतः दो रूप दृष्टिगोचर होते हैं और एक ओर  तो संस्कृत की तत्समता से संपन्न गंभीर विचारात्मक शैली के दर्शन होते हैं तथा दूसरी ओर  मिश्रित भाषा से संपन्न शैली का सशक्त , सप्राण, प्रभावशाली, प्रवाहमय रूप दीख पड़ता है जिसमे हास-परिहास व् व्यंग्य-विनोद की छटा भी है। यही शैली इनकी स्वाभाविक शैली है और इस पर इनके व्यक्तित्व की अमिट  छाप है।

कृतियाँ -

शर्माजी की बिहारी सतसई की भूमिका, पद्य पराग प्रबंध-मंजरी और हिंदी उर्दू हिन्दुस्तानी नामक चार रचनाये ही मिलती हैं। इनके पत्रों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ है पर अभी भी इनके बहुत से लेख और व्याख्यान असंकलित ही हैं तथा इधर-उधर बिखरे पड़े हैं।

गद्य-साधना -

शर्माजी संपादक, टीकाकार, आलोचक और निबंधकार के रूप में हमारे सामने आते हैं पर हिंदी साहित्य में यह प्रधानतः आलोचक के रूप में ही अधिक प्रसिद्द हैं और तुलनात्मक आलोचना के तो यह जनक माने  जाते हैं। इनका आलोचक इनके निबंधकार से निस्संदेह श्रेष्ठ  है और इनके निबंध संग्रहों में भी आलोचनात्मक निबंधों की संख्या आधिक है। इन्होने साहित्य-समीक्षा, जीवनी, संस्मरण, श्रद्धांजलियां आदि विषयों पर निबंध लिखे हैं और इनके निबंध भावात्मक व विचारात्मक हैं।

निधन -

जीवन के अंतिम दिनों में यह गाँव में ही रहते थे और प्लेग की बीमारी से सन 1932 ई. में इनका स्वर्गवास हो गया।


18 टिप्‍पणियां:

  1. विजयादशमी की शुभकामनाएं |
    सादर --

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  2. पदम सिंह जी के बारे मे विस्तृत जानकारी के लिए आभार,
    विजयादशमी की शुभकामनाएं |

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  3. "हिंदी लेखक प्रचलित और आम फहम फ़ारसी शब्दों का जो उर्दू में आ मिले हैं और उर्दू सूक्तियों का व्यवहार करना बुरा नहीं समझते, पर उर्दू-ए -मुअल्ला के पक्षपाती ठेठ हिंदी शब्दों को चुन-चुन कर उर्दू से बाहर कर रहे हैं.. ----यह अच्छे लक्षण नहीं हैं।"
    बहुत ठीक कहा था लेकिन हर चीज़ एक सीमा तक ही ग्राह्य हो सकती है .
    विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. पं पदमसिंह शर्मा जी के साहित्यिक जीवनी से परिचित कराती आपकी यह पोस्ट अच्छी लगी। हिंदी साहित्य के संबंध में अपने ज्ञान को प्रखर करने वाले लोगों के लिए यह पोस्ट READY RECKONER साबित होगा। धन्यवाद।

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  5. विजयादशमी की "बिलेटेड" बधाई
    इतिहासकारों जीवनी प्रस्तुतीकरण के लिए बहुत बहुत बधाई.... सुन्दर रचना

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  6. यह पोस्ट अच्छी लगी. बहुत बहुत बधाई.

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