शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

काव्‍य लक्षण-8 :: वक्रतामय कवि-कौशलयुक्‍त मर्मस्‍पर्शी शब्‍दार्थ काव्‍य है

काव्‍य लक्षण-8

वक्रतामय कवि-कौशलयुक्‍त मर्मस्‍पर्शी शब्‍दार्थ काव्‍य है

आचार्य कुन्‍तक ने आनन्‍दवर्धन और अभिनवगुप्त द्वारा प्रतिपादित काव्‍य दर्शन की व्‍याख्‍या करते हुए कहा कि “वक्रोक्ति” ही काव्‍य का व्‍यापक गुण है। यही काव्‍य की आत्मा है।

उनका मानना था कि कवि कर्म सामान्‍य आदमी के रास्‍ते से अलग है। कवि की शब्‍दाववली वक्र हो, तो उसमें कल्‍पना की उड़ान भरने के लिए काफी जगह होती है। आचार्य कुन्‍तक ने वक्रता को सुरूचि सम्‍पन्‍न व्‍यक्ति के द्वारा किसी बात को कहने का विशेष गुण माना। उन्‍होंने वक्रोक्तिजीवितम् में काव्‍य के लक्षण की चर्चा करते हुए कहा –

शब्‍दार्थौ सहितौ वक्र कवि व्‍यापारशालिनि।

बन्धे व्‍यवस्थितौ काव्‍यं तद्विदाह्लादकारिणी।।

इसमें काव्‍य के भाव पक्ष की व्‍याख्‍या की गई है। इसे समझने के लिए हमें वक्रोक्ति को समझना होगा। आचार्य कुन्‍तक का मानना था,

“वक्रतामय कवि-कौशलयुक्‍त मर्मस्‍पर्शी शब्‍दार्थ काव्‍य है।”

वक्रोक्ति से तात्‍पर्य यह है कि किसी विशेष अर्थ को अभिव्‍यक्‍त करने के लिए भाषा में अनेक शब्‍द होते हैं, किन्‍तु कवि उसी शब्‍द का प्रयोग करता है जो उस अर्थ-विशेष को व्‍यक्‍त करने में सबसे ज्‍यादा समर्थ हो।

आचार्य कुन्‍तक का मानना था कि काव्‍यार्थ सहृदय होता है। अर्थ और ध्‍वनित शब्द दोनों ही काव्‍य के अलंकार्य हैं, ये स्‍वयं अलंकार नहीं है। अलंकार तो काव्‍य की शोभा बाहर से बढ़ाते हैं। अलंकार शब्‍द और अर्थ दोनों को अलंकृत कर सकते हैं। जो रचना अलंकृत होगी उसका सौंदर्य अद्भुत होगा। कुन्‍तक वक्रोक्ति से अभिव्‍यंजना के सौन्दर्य का अर्थ लेते हैं। काव्य में जिस विषय का वर्णन किया जा रहा है, वक्रोक्ति,  उसमें नवदीप्ति उत्‍पन्‍न कर सकता है।

आचार्य कुंतक का मानना था कि वक्रोक्ति अभिव्‍यंजना की सीमा का अतिक्रमण कर जाती है। कुन्‍तक ने काव्य के वर्ण्‍य-पक्ष पर कम बल दिया और अभिव्‍यंजन पक्ष पर विशेष बल दिया। यही कारण है कि उनकी वक्रोक्ति विषय की अवधारणा बहुत ज्‍यादा प्रसिद्धि नहीं पा सकी ।

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