मंगलवार, 21 सितंबर 2010

मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय

मराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर

कुसुमाग्रज से एक परिचय


downloadअरुण सी राय

पिछले सप्ताह के अंक में मैंने कहा था कि हिंदी भाषा भाषियों को कम से कम ए़क भाषा हिंदी से इतर सीखनी चाहिए। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मैं आज आपका परिचय मराठी के मूर्धन्य कवि ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्री वि वा शिरवाडकर उर्फ़ कुसुमाग्रज से करवाता हूँ।

kusumgraj हिंदी और मराठी सगी बहनें हैं लेकिन उनमें वही अंतर है जो गंगा और गोदावरी में है या फिर पश्चिम घाटी और विन्द्य पर्वतमालाओं में । कुसुमाग्रज की कविताओं में केवल मराठी संवेदना नहीं है बल्कि भारतीय कविता का मूल स्वाभाव निहित है। उनकी कवितायें जहाँ खांटी भारतीय परंपरा की कविता है वही आधुनिक कविता के भाव भी हैं। भारतीय पारंपरिक कविता का मूल स्वाभाव है- गति... लय... लहर... नाद । और यही कुसुमाग्रज की कविताओं का भी मूल स्वाभाव था। वर्तमान काल में पश्चिमी काव्य परम्परा जिसतरह भारतीय कविताओं में पैठ कर रही है, कुसुमाग्रज की कविताओं में अपनी काव्य परम्परा को बचाए रखा।

kusumagraj_16458 कुसुमाग्रज धरती के कवि थे। आम जन के कवि थे। वे 'भारतीय स्वप्न' के कवि थे।  उनकी कविता में भाव प्रधान है। बौद्धिक जटिलता से दूर उनकी कविता में नाटकीयता, दृश्यात्मकता, व्यंग्य, पाखण्ड का खंडन, लोक कथा गायकों सा विस्तार उनकी कविता की विशेषताएं हैं ।  उनके कविता संग्रह में प्रमुख थे... जीवन लहरी (1933), विशाखा(1942), किनारा (1952), मराठी माटी (1960), हिमरेषा (1964), छंदोमयी (1982), मुक्तायन (1984), पाथेय (1990), महावृक्ष (1994), मारवा (1999)। उन्होंने कालिदास रचित मेघदूत का मराठी भाषांतर भी किया था।

कुसुमाग्रज जी का जन्म पुणे में १९१२ में हुआ था। १७ वर्ष की आयु से ही उनकी कवितायेँ प्रकाशित होने लगी थी। कविता लेखन के लिए उन्होंने अपना उपनाम कुसुमाग्रज रखा जबकि गद्य एवं पटकथा लेखन के लिए अपना मूल नाम शिरवाडकर ही रखा। 'नट सम्राट' नाटक के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था और १९९४ में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया था।

कुसुमाग्रज केवल कवि नहीं थे बल्कि समय समय पर सामाजिक गतिविधियों को भी दिशा दी , जैसे कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश में सहयोग, आदिवासी बच्चों की पढाईके साथ साथ काव्य एवं ललित कला बोध हेतु काम, नासिक में 'ग्रन्थ यात्रा 'का आयोजन और सरकारी कामकाज में अंग्रेजी की बजाय मराठी और हिंदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास। सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में उनकी संलिप्तता से उनकी संवेदनशीलता, भावानुभूति एवं उनका विशाल  दृष्टिकोण सामने आता है.

कुसुमाग्रज जी की कुछ अनुदित कवितायें प्रस्तुत हैं  ।

kusumagrajmarathiday2010

ओसकण

अनंतता का गहन सरोवर

मंझधारे में विश्वकमल है

                     खिला सनातन ।

कमल पंखुड़ी पर

पड़ा हुआ है ,

                    एक ओस कण ।

उसके झिलमिल कम्पन को

हम धरती के वासी मानव,

                  कहते जीवन ।

पालकी

चार पांच कोकिला

भोर गए गान कर

पंचम सुरों की,

बांधती है पालकी ।

मरण की सीमा पर

भटके हुए मुझको

पालकी में उठा

वापस जीवन में डालती ।

भीड़

महाप्रलय के विकराल लहरों की,

एक ए़क बूँद अलग कर देखी,

तो किसी न किसी दूब पर,

वह कभी थरथराई थी।

बिजली के भीषण तांडव से,

एक एक किरण अलग कर देखी,

तो किसी गुलाब पंखुड़ी पर

वह कभी झिलमिलाई थी।

निर्दय क्रोध से दौड़ रही भीड़ में

ए़क ए़क आदमी अलग कर देखा

तो करुणा उसके ह्रदय में भी

कभी झलक आयी थी।

सिवा *

मैं प्रान्त नहीं देखता

देश के सिवा

और देश नहीं देखता

पृथ्वी के सिवा

पृथ्वी भी न दीखती मुझे,

विश्व के सिवा

विश्व नहीं देखता

अपने सिवा  ।

तस्मात्, सिवा * को नमस्कार ।

*सिवा - शिव

अंतिम विस्फोट

उस अंतिम विस्फोट के बाद

अशेष नहीं होगी केवल मानव जाति

अशेष होंगे

ताजमहल और कैलाश

शकेस्पीयर और कालिदास ।

लाखों, अरबो वर्षों में

कण कण से,

क्षण क्षण से जुटाए हुए

चाँद को छुआए हुए

ज्ञान विज्ञान के

गगन गामी स्तम्भ।

बूद्ध येशु से महात्माओं ने

कोटि कलेजाओं में बसाये हुए

करुणा के मंदिर,

सब कुछ -

और पृथ्वी पर बचेगा शेष

ए़क विराट ब्रह्माण्ड

राख का , दल दल का ।

फिर कदाचिद

धरा व्यापी राख से,

अदम्य जिवेच्छा से,

फूट पड़ेगा कोई अंकुर

हरी घास का।

दलदल में आरम्भ होगा बिलबिलाना

ए़क अमीबा का ।

ऐसे होगा प्रारंभ

नई उत्क्रांति के,

प्रथम चरण का ।

शुरू होगा सिलसिला का,

लाखों शताब्दियों का,

ब्रह्मचक्र के  दूसरे आवर्त का ।

और अंत में , १९९२ में उनके सम्मान में अमरीका की अंतर्राष्ट्रीय स्टार सोसाइटी ने ए़क तारे का नाम 'कुसुमाग्रज' का नाम दिया है... और उनकी ए़क कविता में यह भाव स्पष्ट है।

जाते जाते

जाते जाते गाऊंगा   मैं

गाते गाते जाऊँगा मैं

जाने पर भी नील गगन में

गीतों में रह जाऊँगा मैं

कवि कुसुमाग्रज अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी कवितायें आशा का मशाल बनकर मराठी साहित्य को प्रदीप्त कर रही हैं। हिंदी में उनका अनुवाद पढ़ना भी किसी अनुभव से कम नहीं।

26 टिप्‍पणियां:

  1. एक अनमोल धरोहर हैं यह सहित्य जो हिंदी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं में भी उपलब्ध हैं. साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ ने इनका अनुवाद कर इनकी उपलब्धता क एक नया विस्तार दिया है... कुसुमाग्रज जी कि कविताओं से परिचय कराने का आभार!!

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  2. कुसुमाग्रज जी का परिचय और उनकी चुनिन्दा कविताएँ बहुत अच्छी लगीं ....इस जानकारी के लिए आभार ..बहुत अच्छी जानकारी पाठकों तक पहुंचाई

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  3. कुसुमाग्रज जी की कवितायें पढ्वाने के लिये धन्यवाद उनको विनम्र श्रद्धाँजली।

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  4. ऐसी शख्सियत जिनका आपने हम सबको परिचय दिया एवं उनकी कविताओं को पढ़वाने का बहुत-बहुत आभार ।

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  5. कुसुमाग्रज जी कि कविताओं से परिचय कराने का आभार!!

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  6. अरुण जी आपकी इस प्रस्‍तुति पर अभी बस एक नजर डाली है। बाद में आराम से देखूंगा। पर दो तीन बातें सामने आईं।
    कवि हमेशा रहता 'है' वह कभी 'था'या'थे' नहीं होता। उसकी लिखी रचनाएं भी हमेशा जीवित रहती हैं इसलिए उसके संग्रह भी 'थे' नहीं 'हैं'। अत: आपकी इस पोस्‍ट को इस नजरिए से संपादित करने की जरूरत है। और तब अधिक जब वह राजभाषा हिन्‍दी के ब्‍लाग पर लगी है।
    दूसरी बात पोस्‍ट में वर्तनी की अशुद्धियां हैं। एक ही वाक्‍य में शब्‍दों का दोहराव है।
    तीसरी बात कविताओं के अनुवादक का नाम मुझे नजर नहीं आया।

    यह आपको निरुत्‍साहित करने के लिए बल्कि इस काम को गंभीरता से करने के आग्रह के साथ लिख रहा हूं। इस पहल के लिए बधाई और शुभकामनाएं।

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  7. कुसुमाग्रज जी का परिचय और उनकी कविताएँ बहुत अच्छी लगीं ....जानकारी के लिए आभार ..
    http://sudhirraghav.blogspot.com/

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  8. कुसुमाग्रज जी का परिचय और उनकी कविताएँ त अच्छी लगीं.

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  9. अपने जो भाषाएँ जानने की बात कही है तो बताना चाहूंगी की मुझे गुजराती भाषा लिखनी बोली और पढनी आती है जबकि मैं यू पी की रहने वाली हूँ और अब दिल्ली में रह रही हूँ तो कुछ दिन में पंजाबी भी सीख लुंगी

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  10. कुसुमाग्रज जी का परिचय अपने आप में बहुत महत्व
    रखता है |महत्वपूर्ण जानकारी के लिए बधाई |
    आशा

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  11. कुसुमाग्रज...मराठी साहित्य का एक चमकता सितारा था!...मैने आप की बहुत सी कविताएं पढी है!....मनोजजी!...आपने बहुत सुंदर ढंग से यहां कुसुमाग्रज जी की रचनाएं प्रस्तुत की है...धन्यवाद एवं बधाई!

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  12. कुसुमाग्रज जी कि कविताओं से परिचय कराने का आभार!!

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  13. एक अनमोल धरोहर की चर्चा कर आपने हमें बहुत अच्छी और रोचक जानकारी दी। कुसुमाग्रज की अनुदित कविताओं की प्रस्तुति ने हमारा काफ़ी ज्ञान वर्धन किया।
    आभार आपका।

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  14. कवि कुसुमाग्रज जी की कविताए बहुत अच्छी लगी । बिल्कुल सही बात कही है आपने कि .........
    हिंदी में कवि कुसुमाग्रज जी का अनुवाद पढ़ना भी किसी अनुभव से कम नहीं ।

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  15. anuvaad bahutachchha laga| isake saath mool rachanaye hotee to aurbhi aanand aataa!!

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  16. प्रस्तुत पोस्ट के लिये आपका आभार.अच्छी जानकारी मिली.

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  17. जाते जाते गाऊंगा मैं

    गाते गाते जाऊँगा मैं

    जाने पर भी नील गगन में

    गीतों में रह जाऊँगा मैं


    बहुत अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद !

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  18. ब्लॉग पर उनके बारे में इतनी वृहत् चर्चा शायद पहली बार हुई है। आभार।

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  19. कुसुमाग्रज जी को पढने की उत्कंठा जगा दी आपने।

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  20. @सम्वेदना के स्वर
    @संगीता स्वरुप
    @ निर्मला कपिला
    @ sada
    @संजय भास्कर
    @राजेश उत्‍साही
    @सुधीर
    @रचना दीक्षित
    @Asha
    @ डा. अरुणा कपूर
    @ZEAL
    @मनोज कुमार
    @रीता
    @संध्या
    @बूझो तो जानें
    @शमीम
    @अशोक बजाज
    @शिक्षामित्र
    @कुमार राधारमण
    कुसुमाग्रज पर आलेख पर मेरा उत्साह बढाने के लिये बहुत बहुत आभार !

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  21. बहुत अचछा लगा कुसुमाग्रज की हिंदी में अनुवादित कविताएँ पढ कर । कुसुमाग्रज जी को पढा है इसीसे और आनंद आया आपका कविताओं का चयन बहुत अच्छा लगा । मूल कविताएं देते तो और भी अच्छा रहता ।

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  22. मराठी कवि से हमारा परिचय कराने के लिए धन्यवाद

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  23. अरुण जी, ये जो चार कविताएँ आपने उद्धृत की हैंं वे मेरे अनुवाद संग्रह आनन्दलोक से ली हैं (और पहले हिमप्रस्थ में भी प्रकाशित हुई थीं) इतना भी तो लिख देते।

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