मंगलवार, 28 सितंबर 2010

अगर क़लम का साथ नहीं मिला होता तो मैं बहुत पहले मर गई होती- डॉ. इंदिरा गोस्वामी

अगर क़लम का साथ नहीं मिला होता तो मैं बहुत पहले मर गई होती- डॉ. इंदिरा गोस्वामी


अरुण सी राय

untitled वर्ष २००८ में मैं पूर्वोत्तर की यात्रा पर गया था जिसमें असम, मणिपुर, अगरतल्ला आदि राज्यों के पर्यटक स्थलों की यात्रा की थी, वहां के जनजीवन को करीब से देखने की कोशिश की थी.  पूर्वोत्तर से लौटते हुए हमारा अंतिम पड़ाव था गुवाहाटी. गुवाहाटी जाओ और माँ कामख्या से दर्शन ना करो यह हो नहीं सकता. कहा जाता है कि आप एक बार माँ कामाख्या के दर्शन करो और माँ आपको दो बार और बुलाएंगी.  माँ कामख्या के मंदिर परिसर में मैं जब मैं गया मुझे डॉ. इंदिरा गोस्वामी जी का उपन्यास का हर चरित्र, हर प्रसंग, हर दृश्य  जीवंत हो उठा और रोंगटे खड़े हो गए. मन भय मिश्रित रोमांच से भर उठा. यदि मैं ने डॉ. इंदिरा गोस्वामी जी का उपन्यास 'छिन्नमस्ता'  नहीं पढ़ा होता तो शायद माँ कामाख्या के मंदिर परिसर और आस पास के वातावरण, असमिया संस्कृति व परंपरा को नहीं समझ पाता, नहीं देख पाता.

बहुभाषी भारत की लोक संस्कृति और सामाजिक विविधता को समझने के लिए आंचलिक साहित्य को मूल रूप में अथवा उसके अनुवाद को पढ़े बिना संभव नहीं है.  और जितना समृद्ध अपना हिंदी साहित्य है उस से कमतर अन्य भाषा के साहित्य नहीं हैं.  डॉ. इंदिरा गोस्वामी इसके सबसे सशक्त उदहारण हैं. असमिया की बहुचर्चित कथाकार और उपन्यासकार तथा  भारतीय ज्ञानपीठ से पुरस्कृत डॉ. इंदिरा गोस्वामी की रचनाओं में असम और सम्पूर्ण पूर्वोत्तर क्षेत्र धड़कता हुआ महसूस होता है। उसमें असम का सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास नज़र आता है। इंदिरा जी की रचनाओं, विशोषकर कहानियों में चित्रित असमी जीवन के विविध परिदृश्यों से गुजरते हुए हमें लगता हैं कि जैसे हम खुद वहाँ की यात्रा पर निकल पड़े हो।

डॉ. इन्दिरा गोस्वामी ने असमिया में लगभग एक दर्जन उपन्यास और सैकड़ो कहानियाँ लिखी हैं,  जिनमें  प्रमुख उपन्यास हैं  : 'चेनाबार सोत ' (1972), 'नीलकंठी ब्रज' (1972), 'अहिरन' (1980), 'मामरे धरा तरोवाल' (१९८०), "छिन्नमस्ता" (१९९८), 'बलूद स्टेण्ड पेजिज' (2002) . डॉ. गोस्वामी जी के उपन्यास असमी जनता के दुःख-दर्द, आशा-आकांक्षा, राग-विराग, संघात-संघर्ष को उजागर करने के साथ हमाने मानस लोक में एक ऐसे समाज का प्रतिबिम्ब रच देते हैं, जिनके बारे में हमारी जानकारी बहुत सीमित है। इंदिरा जी सिर्फ साहित्य नहीं लिखती, बल्कि वे समाज का अंतरंग विश्लेषण भी प्रस्तुत कर देती हैं।

indiragoswami इंदिरा जी का बहुचर्चित उपन्यास 'छिन्नमस्ता' के माध्यम असमिया साहित्य लोक के असाधारण सृष्टि पर रोशनी डालती हैं . यह उपन्यास शक्तिपीठ कामाख्या की पृष्ठभूमि में 1921 से 1932 की अवधि की घटनाओं पर आधारित हैं . छिन्नमस्ता दो विरोधी विचारधाराओं- अहिंसा और हिंसा- के टकराओं के बीच गरीबी, निरक्षरत, अज्ञान और अन्धविशावसों से घिरे कामरूप के जन-जीवन की सच्ची कहानी है । इसलिए उनकी रच्नूं को पढ़कर पाठक केवल मुग्ध ही नहीं होता बल्कि उद्वेलित भी होता है। वे पाठकों को किसी जादुई यथार्थ में नहीं ले जाती बल्कि सच्चाई के रूबरू खड़ा कर देती हैं। इंदिरा गोस्वामी जी की रचनाएं ना केवल कथ्य  की दृष्टि से बल्कि अभिव्यक्ति क्षमता में भी अप्रतिम हैं.  डॉ. इंदिरा जी की रचनाएं धीरे-धीरे मन्द आंच पर पकती  हुई निष्पत्ति पर पहुँचती हैं, जिनका स्वाद देर तक बना रहता हैं।

डॉ. इन्दिरा गोस्वामी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' (1983), 'असम साहित्य सभा पुरस्कार' (1988), 'कथा पुरस्कार' (1993), ज्ञानपीठ पुरस्कार' (2000).

जहाँ छिन्नमस्ता उपन्यास में कामाख्या मन्दिर का एक परिपूर्ण चित्र अंकित किया गया है। यहाँ की पूजा-अर्चना के विभिन्न रूप, आतार-नीति, लोक-विश्वास, लोकगाथा, देवीपीठ के साथ जुड़ी हुई किंवदन्तियाँ, देवीपीठ का इतिहास, यहां की धार्मिक परम्परा (मनसा-पूजा में यहाँ मुस्लिम सम्प्रदाय के लोग भी बलि चढ़ाते थे), साथ ही इसके नकारात्मक पहलू आदि को कथानक का रूप दिया गया है... वहीँ साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित असमिया उपन्यास "मामरे धरा तरोवाल" यानी "जंग लगी तलवार" में मामोनी रायसम गोस्वामी (इन्दिरा गोस्वामी) ने श्रमिकों की मजबूरी और बदहाली की गाथा प्रस्तुत की है। 

edit1 श्रमिकों को हड़ताल के लिए कौन प्रेरित करता है और उससे किस तरह उनकी हालत दिन-ब-दिन बदत्तर होती जाती है,.इसी के चरम बिन्दु तक इस उपन्यास की कहानी जाती है। पुरानी होती जाती पड़ताल के साथ ही अनिश्चितता और हताशा से पीड़ित श्रमिक यन्त्र की तरह दिन काटते हैं। भूख की ज्वाला में खलासी लंगर में स्वीपर लाइन के बच्चे रोटी के लिए कुत्तों तरबूज जानवरों की तरह चबाकर खानेवाली बसुमती बुढिया और बीमार पति तथा बच्चे के लिए दवाई और दूध खरीदने में असमर्थ और अपने सम्मान को दाँव पर लगानेवाली नारायणी की मनोदशा एक जैसी ही है।

अंत में, श्रीमती गोस्वामी ने इन सभी रचनाओं में अपने स्थानीय पात्रों एवं परिवेश को ही नहीं जिया है-अपनी रचनात्मक प्रतिश्रुतियों का भी भरपूर निर्वाह किया है. इनके उपन्यासों और कहता संग्रहों का हिंदी अनुवाद भारीतय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है और सुलभता से उपलब्ध हैं, साथ ही पठनीय है.

उनके उपन्यास 'छिन्मस्त्ता' के कुछ अनुदित अंश, जिसे पुस्तक में पापोरी गोस्वामी ने अनुवाद किया हैं.

१.

"छिन्नमस्ता के संन्यासी के लिए प्रतीक्षारत भक्तों ने एक साथ कहा, ‘‘रक्त को त्याग दो ! फूलों से देवी की पूजा करो ! फूलों में ज़्यादा शक्ति है। रक्त को त्याग दो ! फूलों से जगज्जननी के पैर धुलाओ ! फूलों की पंखुड़ियों में मनुष्य-हृदय छुपा रहता है। मनुष्य की अदृश्य आत्मा को फूल ही सुगन्धित बनाये रखते हैं। रक्त को त्याग दो, फूलों से देवी माता की पूजा करो !’’

२ लेखिका को विश्वास है कि भावनाएँ अधिक फलप्रद होती हैं। कुछ-एक उदाहरण इस प्रकार हैं-
‘‘रत्नधर हाथ के नाखून से ज़मीन कुरेदने लगा उसके मुँह से झाग निकलने लगा। वह गला फाड़कर चिल्लाने लगा, ‘‘पकड़ो, पकड़ो ! बलि देने के लिए लाया गया है ! ओफ्, ओफ् !! वह वधस्थल में जाना नहीं चाहता है, डर के मारे उसकी विष्ठा निकल गयी है। ओह्, ओह् ! उसकी आँखें देखो ! उस पर रहम खाओ ! रहम खाओ उस पर ! वह मरना नहीं चाहता है ! उसे मुक्ति नहीं चाहिए। उसे घसीटकर इस तरह मुक्ति देने की ज़रूरत नहीं है। पकड़ो, पकड़ो ! वह ज़िन्दा रहना चाहता है। देवी माँ की बनाई हुई इस हरी-भरी धरती पर वह ज़िन्दा रहना चाहता है। पकड़ो, पकड़ो !’’रत्नधर के सीने में जैसे भैंसा के खुर की खट् खट् आवाज गूँजने लगी। उसकी देह के रक्तप्रवाह के साथ यह शब्द मिलकर एक हो गया है ! ". उनकी रचनात्मक क्षमता और सजग लेखनी का पता चलता है।

2006110402290101 औरतों के बारे में डॉ. इंदिरा गोस्वामी ने एक बार बी बी सी के साथ एक साक्षातकार में कहाँ था कि  "अगर क़लम का साथ नहीं मिला होता तो मैं बहुत पहले मर गई होती. पहले के मुक़ाबले, आज की औरत की तस्वीर बदली है. लेकिन आज भी 85 प्रतिशत औरतें दहलीज़ के इस पार ठिठकी हुई हैं. ज़रूरत उन्हें हाशिए से उठाने की है. तब औरत की तस्वीर साफ़ नज़र आएगी. मुझे ख़ुशी है कि आज महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाब हो रही हैं. लेकिन आज़ादी की आड़ में फ़ूहड़ नग्नता को अपना अधिकार मान लेना ठीक नहीं है. "

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा आलेख. डॉ. इंदिरा गोस्वामी के बारे में इतना कुछ बताया , हम कोई हर व्यक्तित्व असे वाकिफ नहीं होता. इसके लिए हार्दिक धन्यवाद.

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  2. साहित्यकरों का परिचय और उनका जीवन वृत्त पढना बहुत अच्छा लग रहा है. शुभकामनाएँ!!

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  3. डॉ. इंदिरा गोस्वामी के बारे में जानकारी के लिए आभार .......अच्छा आलेख !!

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  4. डॉ. इंदिरा गोस्वामी के बारे में जानकारी के लिए आभार .......अच्छा आलेख !!

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  5. इंदिरा जी का परिचय बहुत अच्छा लगा। उनके जीवन से प्रेरना मिलती है। औरतो के जीवन के बारे मे उन्होंने बिलकुल सही कहा है खास कर ये बात
    ;लेकिन आज़ादी की आड़ में फ़ूहड़ नग्नता को अपना अधिकार मान लेना ठीक नहीं है. " धन्यवाद

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  6. इस तरह से विभिन्न भाषा साहित्य से मोतियों को चुन-चुन कर पेश करने का आपका यह सद्‌प्रयास वंदनीय है। बहुत संदर आलेख, ज्ञानवर्धक भी। आभार व शुभकामनाएं।

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  7. अरुण जी ,

    इंदिरा गोस्वामी जी से परिचय कराना सार्थक प्रयास है ...और उनके उपन्यास के बारे में बहुत अच्छी जानकारी मिली ..आभार .

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  8. डाक्टर इंदिरा गोस्वामी से परिचय और उनकी लेखन यात्रा का वृतांत पढ़कर ज्ञानवर्धन का लाभ तो मिला ही साथ ही आपके पठन लेखन तथा दूसरी भाषाओँ के लेखकों और साहित्यकारों के बारे में आपकी रूचि को जानने का मौका मिला . लेखन क्षेत्र के पूर्वजों से साक्षात्कार कराने के लिए आप निश्चय ही बधाई के पात्र हैं . यह यात्रा अनवरत जारी रहे .शुभकामनायें.

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  9. डॉ. इंदिरा गोस्वामी के बारे मे इतना सब जानकर बहुत अच्छा लगा………………बेहद संवेदनशील व्यक्तित्व की मलिका हैं…………………औरतों के जीवन के बारे मे उन्होने बिल्कुल सही कहा है अभी और मेहनत की जरूरत है …………………उनके उपन्यास के बारे मे बताने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।

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  10. कहने को तो यह आपका यात्र संस्मरण है मगर इससे डॉ. इन्दिरा गोस्वामी के व्यक्तित्व और कृतित्व की बहुमूल्य जानकारी भी मिली है!
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    यदि आपके पास ऐसे ही अन्य भी संस्मरण हो तो उन्हे भी लोगों में अवश्य शेयर कीजिए।।
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    आपका बहुत-बहुत आभार!

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  11. डॉ. इंदिरा गोस्वामी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में विस्तृत जानकारी आपने हमें उपलब्ध कराई ...आभार

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  12. आपने न केवल इंदिरा जी से हमें रूबरू कराया बल्कि उनके माध्यम से असम संस्कृति के पृष्टों को भी खोला है। आपकी लेखनी सशक्त है .. साथ ही आप एक अध्ययनशील सृजनकर्ता है। ऐसे ही साहित्यकारों की आवश्यकता है ... समूचे भारत को एकता में पिरोने हेतु।

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  13. डॉ. इंदिरा गोस्वामी के बारे में जानकारी के लिए आभार .......अच्छा आलेख !!

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  14. साहित्यकरों का परिचय और उनका जीवन वृत्त पढना बहुत अच्छा लग रहा है. शुभकामनाएँ!!

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