सच है कि सर्द रातों में गुदगुदे बिस्तर पर लिहाफ़ की गर्मी में बहुत सुकून भरी नींद आती है . और सच ये भी है कि सारी रात अलाव के पास मात्र एक चीथड़े में हाथ तापते हुए वो सर्द रात किसी के द्वारा गुज़ारी जाती है. सच है कि - अनगिनत पकवानों को सामने देख क्षुधा है कि मर सी जाती है और सच ये भी है कि कहीं - कहीं , कभी - कभी कचरे से बीन कर कुछ खाते हुए भूख मिटाई जाती है स्वयं के लिए एक वितृष्णा सी जागती है कि- हमारी निगाह में ऐसे सारे सच मात्र एक घटना क्रम हैं और खुद की ज़रा सी पीड़ा का हमे कितना बड़ा भ्रम है . कोई भी उसमें खुश नहीं रहता जितना उसे मिला है हर शख्स को भगवान से क्यों शिकवा - गिला है . काश- हम हर सच का सही आकलन कर पाते तो अपनी भ्रामक पीड़ा से खुद को बचा पाते.. संगीता स्वरुप |
सोमवार, 4 अप्रैल 2011
भ्रामक पीड़ा
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bahut khoob sangeeta ji...agar insan swaym se ooper uthkr sochna suru kr de to aadhi samasyayen kam ho jaye...aabhar
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता.. बढ़िया कानत्रास्ट दिखाया है आपने !
जवाब देंहटाएंमानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण कविता , जो हमें अप्रत्यक्ष रूप से यह भी बताती है कि विषमता पर आधारित समाज व्यवस्था को बदलने की ज़रूरत है.
जवाब देंहटाएंआभार. आज भारतीय नव-वर्ष विक्रम-संवत २०६८ के शुभागमन और चैत्र-नव-रात्रि की आपको सपरिवार हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .
bhavpravan kavita ..kshugdha-kshudha
जवाब देंहटाएंयही विडंबना है...अति मार्मिक!!
जवाब देंहटाएंपीड़ा और वितृष्णा , छलक रही है कविता की शब्दों से . संवेदनशील ह्रदय में उथल पुथल से उदगमित .
जवाब देंहटाएंयही द्वंद्व है, इस जगत और जीवन दोनों का. सुख और सौदर्य क्या है? सब एहसास और अनुभूति का विषय है. अपनी-अपनी बोध और बोग की अभिव्यक्ति मात्र है. सच क्या है कौन जनता? और इस सच्चाई को कौन नहीं जानता? एक झकझोर देनेवाली रचना जो सोचने को बाध्य करती है हमारी विषमताओं को. कितने हैं जी एहसास करते हैं? और कितने हैं जो एहसास करने के बावजूद कुछ प्रयास करते हैं. बहुत कुछ कह रही है यह रचना बह सुनने के लिए कान होना चाहिए और देखने के लिए नेत्र, अनुभूति के लिए मन और ह्रदय...आभार बहुत-बहुत आभार इस भावुक प्रस्तुति के लिए. लेखनी, प्रस्तुति,शैली और शब्दों को नमन....
जवाब देंहटाएंबहुत सही ओर ध्यान आकृष्ट किया है आपने |सकारात्मक सोच से भरी -सन्देश देती हुई अच्छी रचना |
जवाब देंहटाएंहमारी निगाह में
जवाब देंहटाएंऐसे सारे सच
मात्र एक घटना क्रम हैं
और खुद की ज़रा सी
पीड़ा का
हमे कितना बड़ा भ्रम है .
bhramak jivan se nikalna khud per hai... suksh avlokan bhram se pare hai ...
हमारे यहाँ कहावत है - संतोषी सदा सुखी। जितना प्रभु ने दिया है वे अमृततुल्य है, बस ऐसा ही मानना चाहिए।
जवाब देंहटाएंनग्न यथार्थ की बेबाक प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंयही एक कटु सच है जिसे देखने के बाद भी अनदेखा किया जाता है
जवाब देंहटाएंजीत की बधाई के साथ नववर्ष ( सम्वत्सर ) और नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं
...यही जीवन की सच्चाई है!...कही बाढ आ जाती है ,तो कही जान लेवा सूखा पड जाता है!...सुंदर रचना...शुभ-नवरात्री!
जवाब देंहटाएंपीडा का आकलन बहुत ही खूबसूरती से किया है…………गहरा वार करती रचना सोचने को मजबूर करती है।
जवाब देंहटाएंआपको नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
पीड़ा का स्वरूप भिन्न-भिन्न हो सकता है,किंतु उसे भ्रामक बताना ठीक नहीं। बहुधा,सम्पन्न लोग ही सर्वहाराओं की पीड़ा के लिए उत्तरदायी नहीं होते।
जवाब देंहटाएंbahut achchi lagi aapki ye sundar kavita.
जवाब देंहटाएंसमाज के कटुयथार्थ को दर्शाती यह कविता गहरे द्वन्द्व में हमें छोड़ देती है।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है. बधाई
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लॉग भी देखें
अब पढ़ें, महिलाओं ने पुरुषों के बारे में क्या कहा?
सच्चे चित्रों ने एक सच्ची और संवेदनशील कविता को बेहद मार्मिक और प्रभावशाली बना डाला है
जवाब देंहटाएंयथार्थ चित्रण है.आप सब को नवसंवत्सर एवं नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएं.
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का हृदय से आभार ....
जवाब देंहटाएं@@ कुमार राधारमण जी ,
पीड़ा के स्वरुप को लेकर कुछ नहीं कहा है ..बस कहना चाहती हूँ कि हम इस भ्रम में रहते हैं कि हमारी ही पीड़ा सबसे ज्यादा है ..आभार अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा मुझे भी सोचने को बाध्य किया ...
काश-
जवाब देंहटाएंहम हर सच का सही
आकलन कर पाते
तो अपनी भ्रामक पीड़ा से
खुद को बचा पाते..
Excellent presentation !
.
पीड़ा का तुलनात्मक विश्लेषण बहुत हृदयग्राही है ! अपना दुःख सबको बड़ा लगता है ! दूसरों के दुःख का आकलन करने की जिसमें क्षमता है वही उनकी पीड़ा को कम करने के लिये कृतसंकल्प भी हो सकता है ! जागरूक करती सी एक बहुत ही सार्थक रचना ! बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंye sach hai ki ham hamesha upar dekh kar chalte hain agar neeche bhi dekh len asantushti ka kahin bhi ahsaas hi na ho.
जवाब देंहटाएंकाश-
जवाब देंहटाएंहम हर सच का सही
आकलन कर पाते
तो अपनी भ्रामक पीड़ा से
खुद को बचा पाते..
Sangeeta ji! Kitna sahee kaha aapne!
Ateev sundar rachana!
अंतर्द्वंद्व से उबर कर सही आकलन तो करना ही होगा। यही तो चुनौती है एक संवेदनशील व्यक्तित्व का। संवेदनशील कविता।
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