रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की पुण्य तिथि 24 अप्रैल के अवसर पर हमने कल एक आलेख प्रस्तुत किया था। आज प्रस्तुत है
डॉ. रमेश मोहन झा
मो. नं. 09433204657
आधुनिक हिन्दी काव्य के पुरोधा, मिट्टी की सुगंध के अमर गायक, प्राची के आलोकधन्वा और युगधर्म की हुंकार राष्ट्रकवि स्वर्गीय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का ‘रश्मिरथी’ कथावस्तु, शील निरुपण और संवाद योजना की दृष्टि से एक लब्ध प्रतिष्ठित प्रबंध काव्य ही नहीं अपितु काव्य प्रयोजन की दृष्टि से भी स्वयं युगधर्म की हुंकार माना जा सकता है। छायावाद की कुहेलिका को चीरकर आधुनिक हिन्दी काव्य कमल को जीवन की वास्तविकता एवं मिट्टी की गंध से परिपूरित करने वाले मानवतावादी ‘दिनकर’ का हृदय ‘कुरुक्षेत्र’ में युद्ध के लिए युद्ध का तांडव करने के कारण घबड़ा गया। तब उन्होंने रश्मिरथी के कर्ण के बहाने दलितों, पीड़ितों के उद्धार का आदर्श प्रस्तुत करके अपने को पीड़ा मुक्त करने का प्रयास किया है। ‘रश्मिरथी’ का प्रयोजन या उद्देश्य तो सूर्य के प्रकाश या चांद की चादनी या फूलों की ख़ुश्बू या धन्वा की टंकार के समान इस काव्य के नायक महारथी महादानी कर्ण के शील संदेश और आदर्श में सन्निहित है। काव्य के चतुर्थ सर्ग में देवराज इन्द्र के संदर्भ में कर्ण ने जो अपने संदेश और आदर्श की व्याख्या की है, वही वस्तुतः इस काव्य का उद्देश्य या प्रयोजन की रीढ़ की हड्डी है।
फिर कहता हूं नहीं व्यर्थ राधेय यहां आया है,
एक नया संदेश विश्व के हित वह भी लाया है।
मैं उनका आदर्श कहीं जो व्यथा न खोल सकेंगे,
पूछेगा जग किन्तु पिता का नाम न बोल सकेंगे।
जिनका निखिल विश्व में, कोई कहीं न अपना होगा,
मन में उमंग लिए चिरकाल कल्पना होगा।
वस्तुतः यही वह मूल प्रयोजन है जो इस पौराणिक काव्य की आधुनिक युग जीवन को गौरव और अर्थकत्ता प्रदान करता है। साथ ही आर्थिक विषमता, रंगभेद, नीति, जाति, कुल सम्प्रदाय एवं साम्राज्यवाद से पीड़ित विश्व-मानव से रिश्ता जोड़ता है।
‘रश्मिरथी’ एक ऐसी रचना है जिसके पौरुष में पुनीत अनल में जातिवाद, संप्रदायवाद जलकर खाक हो जाते हैं। यह काव्य दैववाद के प्रत्याख्यान की जगह मानवतावाद की स्थापना का पुण्य प्रयास है, नियतिवाद का विरोध और कर्मवाद का जयघोष है। मानवीय उद्यम के द्वारा पृथ्वी पर स्वर्ग उतारने की सफल साधना है। इस स्वार्थपूर्ण सृष्टि से आत्मदान का शंखनाद एवं मानव की उच्चाभिलाषा एवं कर्म का दर्प-स्फीत जयगान है।
विप्र वेशधारी छली देवराज इन्द्र को कवच-कुंडल दान के पूर्व महादानी कर्ण ने अपनी करूण जीवन गाथा का वर्णन करते हुए विश्व को एक नया संदेश और आदर्श प्रदान किया है। जीवन जय के लिए कर्ण ने शूरधर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा है –
“कि शूर जो चाहे कर सकता है,
और नियति भाल पर पुरुष पांव निज धर सकता है।”
मानवशक्ति का निवास स्थान, वंश या कुल नहीं अपितु वीर पुरुषों का पृथुल वक्ष है। इस काव्य में उन्होंने संदेश दिया है कि चाहे धर्म धोखा दे या पुण्य ज्वाला बन जाए, लेकिन “मनुष्य तब भी न कभी सुपथ से टल सकता है।” विजय मानव का लक्ष्य है। लेकिन विजय तिलक लिए कुपथ पर चलना पाप है।
इस प्रकार ‘रश्मिरथी’ मानवतावाद की स्थापना पर ज़ोर देते हुए भाग्यवाद की जगह कर्मवाद का शंखनाद है। देवराज इन्द्र को चुनौती देते हुए कर्ण ने कहा है,
विधि ने था क्या लिखा भाग्य में यह खूब जानता हूं मैं,
बाहों को कहीं भाग्य से बलि मानता हूं मैं,
महाराज, उद्यम से विधि का अंक उलट जाता है,
किस्मत का पासा पौरूष से हार पलट जाता है।
‘रश्मिरथी’ समता और मानवता के धरातल पर खड़ा महाकवि ‘दिनकर’ का युगधर्मी शंखनाद है जिसकी गूंज से विषमताओं और रूढ़ियों की बेड़ियां खुल जाती हैं और वसुंधरा पर कर्ण के सपनों के अनुसार एक नए समाज के सूर्योदय की संभावना बढ़ जाती है।
रश्मिरथी जैसी कालजयी कृति के सर्जक राष्ट्रकवि दिनकर को नमन
जवाब देंहटाएंसाम्राज्यवाद के खिलाफ यदि किसी कवि ने आवाज़ बुलंद की और राष्ट्रीयता का भाव भरा तो वे दिनकर जी ही थे.. रश्मिरथी वास्तव में राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत काव्य था.. बढ़िया आलेख पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार ! झा जी को पढना सदैव ही प्रभावित करता है..
जवाब देंहटाएंदिनकर जी को शत शत नमन्……………रश्मिरथी एक कालजयी कृति है।
जवाब देंहटाएंरश्मिरथी के कुछ अंश पढ़े हैं पूरी कृति पढ़ने का मन है .
जवाब देंहटाएंदिनकर मेरे पसंदीदा रचियताओं में से हैं
उन्हें नमन.
राष्ट्र कवि दिनकर जी की रचनायें पढ़ते पढ़ते अघाते नहीं . दिनकर जी को सादरनमन !
जवाब देंहटाएंयुग-चारण एवं उर्जस्वित कवि रामधारी सिंह 'दिनकर'द्वारा रचित प्रबंध काव्य 'रश्मिरथी' पर डा. रमेश मोहन झा द्वारा प्रस्तुत आलेख अच्छा लगा। दिनकर जी की पुण्य तिथि पर मैं उन्हे विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ
जवाब देंहटाएंडॉ.झा ने अपनी इस रचना में रश्मिरथी में अन्तर्निहित तथ्यों को बड़ी कुशलता से रेखांकित किया है।
जवाब देंहटाएंaaj ka lekh bahut jankari dene wala vishay hai. maine rashmirathi nahi padhi hai ho sake to ye bhi upkar kijiyega ki net par kahin iska link mile to bhejne ki kripa karen.
जवाब देंहटाएंविधि ने था क्या लिखा भाग्य में यह खूब जानता हूं मैं,
बाहों को कहीं भाग्य से बलि मानता हूं मैं,
महाराज, उद्यम से विधि का अंक उलट जाता है,
किस्मत का पासा पौरूष से हार पलट जाता है।
in lines ke liye to ye vichar aa rahe hain ki hame in lines ko apni har subeh ki shuruat karne ke liye aatmsaat kar lena chaahiye....hame, tumhe hi nahi balki har desh wasi ko.
naman aapki is koshish ko ham tak pahuchane ke liye.
रश्मिरथी एक ऐसी अनूठी रचना जिसे जितनी बार भी पढ़ो उसका आनंद बढ़ता ही जाता है ...मैं अनगिनत बार पढ़ चुकी हूँ ..और जब भी मन उदास स होता है तब मैं दिनकर की रश्मिरथी या कुरुक्षेत्र पढ़ कर अवसाद को भगा देती हूँ ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पोस्ट लगी ...आभार ..
यदि किसी को पढनी है तो "कविता कोश" में पढ़ सकते हैं ..
राम-राम जी,
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं पता था कि ऐसा अनमोल ब्लाग भी है आपका धन्यवाद।
रश्मि रथी सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक आदर्श है। वह आदर्श जो मानवता की पराकाष्ठा है। यह एक अद्भुत काव्य खंड है, और डॉक्टर रामधारी सिंह दिनकर जी ने शायद स्वयं कर्ण बनकर इस कार्य को लिखा होगा, और यहां पर आपने जो व्याख्या या समीक्षा प्रस्तुत की है वह प्रशंसनीय है साधुवाद। काव्य रंग पर रश्मिरथी का काव्यपाठ करने का गौरव मिला। आप सभी देखकर कृतार्थ कर https://youtube.com/playlist?list=PLwOxREdsnEsBOI2UMqeB1-JLwcwjbo0Sv । आप का पुनः हॄदय से धन्यवाद, जो अपने इतना सुंदर लेख लिखा।
जवाब देंहटाएंRashmirathi aaj tk ki sabse adbhut kavita hai
जवाब देंहटाएंMast kavita hi Rashmirathi🙏🙏🙏🙏
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