सोमवार, 11 अप्रैल 2011

तृष्णाएँ


ज़िन्दगी एक धोखा है
फिर भी लोग विश्वास करते हैं
कि हम जीते हैं
और न जाने
कब तक जीते रहेंगे
इस जीने की उम्मीद पर ही
तृष्णाएँ जन्म लेती हैं
और हावी हो जाती हैं
मनुष्य की ज़िन्दगी पर ,
उन तृष्णाओं की तृप्ति में ही
मनुष्य लगा देता है सारा जीवन ,
पर क्या सही अर्थों में
उसे तृप्ति मिलती है ?
निरंतर प्रयासों के बाद भी
मानव तृषित रहता है
और फिर -
स्वयं को धोखा देता है
यह विश्वास करके कि
वह प्रसन्न है , संपन्न है
उसमे अपनी इच्छाओं को
पूरा करने का दम है ,
उसके लिए मात्र
एक ज़िन्दगी कम है।

संगीता स्वरुप

26 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन में जिंदगी के कई रूप हमारे सामने उभर कर आते हैं,कुछ रूप और कुछ रंग अपना अलग प्रभाव छोड़ जाते हैं एवं कुछ प्रभावित कर जात है कामनाएं ही मूल कारण हैं जो जिंदगी को एक नई दशा और दिशा देती हैं। दिनकर जी की पक्तिया इसकी सार्थकता को सिद्ध करती है-
    कामनाओं के झकोरे रोकते हैं राह मेरी.
    खींच लेती है तृषा पीछे पकड़ कर बांह मेरी।।सुंदर भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  2. स्वयं को धोखा देता है
    यह विश्वास करके कि
    वह प्रसन्न है , संपन्न है
    उसमे अपनी इच्छाओं को
    पूरा करने का दम है ,
    उसके लिए मात्र
    एक ज़िन्दगी कम है।



    ज़िन्दगी की सच्चाई से रू-ब-रू करवा रहे हैं आपके शब्द ......!
    सुंदर रचना ...
    जय माता की ....!!

    जवाब देंहटाएं
  3. मृग तृष्णा मानव को भाग भागकर हांफने को मजबूर कर देती है . फिर माया मिले ना राम वाली स्थिति सामने होती है .

    जवाब देंहटाएं
  4. जीवन दुविधा का सटीक चित्रण!!

    स्वयं को धोखा देता है
    यह विश्वास करके कि
    वह प्रसन्न है , संपन्न है
    उसमे अपनी इच्छाओं को
    पूरा करने का दम है ,
    उसके लिए मात्र
    एक ज़िन्दगी कम है।

    जवाब देंहटाएं
  5. sach kahaa aapne.....एक ज़िन्दगी कम है।
    bahut sundar prastuti

    जवाब देंहटाएं
  6. आंतरिक तृप्ति,संतुष्टि ,सुख ये सब आदमी के अंदर ही है.जो इसे बाहर तलाशते हैं उन्हें ये चीज़ें भला कैसे मिल पायेंगी.मिलेंगी तभी, जब जो चीज़ जहाँ है वहां तलाशी जाये.

    जवाब देंहटाएं
  7. यदि ज़िन्दगी के सच को स्वीकार करके हम चलते हैं तो तृष्णाएँ हमारे मार्ग को अवरुद्ध नहीं करती, पर जब हम सिर्फ प्राप्य की अपेक्षा में चलते हैं तो ज़िन्दगी क्षणांश को भी साथ नहीं होती

    जवाब देंहटाएं
  8. खुशियों को नापने के लिए सभी के पैमाने अलग-अलग हैं। कुछ फक्‍कड रहकर खुश हो लेता है और कुछ ताजमहल बनाकर। कुछ जिन्‍दगी को धोका कहते हैं तो कुछ जीवन को अमूल्‍य बताते हैं। साहित्‍यकार सभी पक्षों पर लिखता है, जिसको जैसा उचित लगता है उसे अपना लेता है। जब दुख आता है तब जिन्‍दगी धोका लगने लगती है और जब सुख आता है तो जिन्‍दगी स्‍वर्ग बन जाती है। यह जीवन की अवस्‍थाएं हैं, इससे प्रत्‍येक व्‍यक्ति गुजरता है।

    जवाब देंहटाएं
  9. कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...नवरात्रा की आप को शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  10. अगर तृष्णायें मिट जायें तो इंसान इंसान ना रहकर भगवान बन जाये……………ये ही तो मनुष्य से पाप , गलत कार्य आदि करवाती है और इसी व्यूहजाल मे अंत तक इंसान फ़ंसा रहता है।

    जवाब देंहटाएं
  11. ये तृष्णायें ही तो आदमी के दुख का कारण है फिर भी उनका मोह त्याग नही पाता। सुन्दर रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. तृष्णा कभी नहीं मिटती है। प्रसिद्धि और धन उस समुद्री जल के समान है,जिसे पीने पर प्यास और बढ़ती जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  13. यूँही मिथ्याकाश में ही तो इंसान सारी जिंदगी गुजारता है,यही सत्य है..बहुत ही सुंदर गुढ़ रहस्यों को दर्शाती.....लाजवाब रचना।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत दार्शनिक सी कविता.तृष्णा कभी नहीं मिटती...शायद...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत पसंद आई , भ्रम तोडती ये रचना।

    जवाब देंहटाएं
  16. ज़िन्दगी की सच्चाई से रू-ब-रू करवा रहे हैं आपके शब्द ......!
    सुंदर रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  17. भ्रमों में जीने की आदत स्वयं इंसान ही डाल लेता है और फिर उन छलावों से खुद ही भयभीत हो जाता है ! यदि यथार्थ को जैसा वह है उसी तरह स्वीकार कर लिया जाये तो भ्रमों की स्थिति से उबरा जा सकता है वरना ये तृष्णायें जीवन भर पीछा नहीं छोडतीं ! बहुत सुन्दर रचना ! बधाई स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  18. यह धोखा भी जीवन जीने का एक सबब बन जाता है!....यही जीवन की सच्चाई है!
    सुंदर रचना ...सुंदर भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  19. स्वयं को धोखा देता है
    यह विश्वास करके कि
    वह प्रसन्न है , संपन्न है
    उसमे अपनी इच्छाओं को
    पूरा करने का दम है ,

    chalo yun hi sahi is bahane kuchh to prasann ho leta hai insaan chahe jhoothi ummedon ke sahare hi sahi ....varna is duniya me itna gam hai ki insaan muskurana bhi bhool jaaye.

    जवाब देंहटाएं
  20. मृग तृष्णा सुंदर भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  21. हाँ, सच है पर तृष्णा छूट गयी ती लगेगा अब जिंदगी में बचा ही क्या?

    जवाब देंहटाएं
  22. हम्म..जीवन दर्शन........:-|
    मगर अच्छा लगा पढ़ना...:)
    वैसे देखा आये तो कहाँ कोई संतुष्ट हो पता है मम्मा.....सबको कहीं न कहीं समझौते करने को होते हैं..........नहीं???
    कविता के लिए बधाई...!!

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें