उपन्यास साहित्य
हिन्दी उपन्यास साहित्य की चर्चा के क्रम में अब तक हमने १. अनुदित उपन्यास, २. आरंभिक हिन्दी उपन्यास ३. तिलस्मी-ऐयारी, जासूसी, ऐतिहासिक और भावप्रधान उपन्यास तथा ४. प्रेमचंद युगीन उपन्यास की चर्चा की है।
आगे की चर्चा करने के पहले प्रेमचंद जी के जीवन परिचय और उनके साहित्यिक योगदान की चर्चा ज़रूरी है।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म एक गरीब घराने में काशी से चार मील दूर बनारस के पास लमही नामक गाँव में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। उनका असली नाम श्री धनपतराय था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। आठ वर्ष की अल्पायु में ही उन्हें मातृस्नेह से वंचित होना पड़ा। परिवार में उर्दू पढ़ने की परम्परा के कारण बचपन से हिन्दी उर्दू पढ़ने का शौक लग गया। हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान उनका विवाह हो गया और गृहस्थी का भार आ पड़ा दुःख ने यहां ही उनका पीछा नहीं छोड़ा। चौदह वर्ष की आयु में पिता का निधन हो गया। उनके पिता मुंशी अजायबलाल डाकखाने में मुंशी थे। १५ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह कर दिया गया, जो दांपत्य जीवन में आ गए क्लेश के कारण सफल नहीं रहा। घर में यों ही बहुत गरीबी थी। ऊपर से सिर से पिता का साया हट जाने के कारण उनके सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। ऐसी परिस्थिति में पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा रोटी कमाने की चिन्ता उनके सिर पर आ पड़ी। फिर भी अपने बल-बूते से पढ़े। बी.ए. किया।
विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ा कर किसी तरह उन्होंने न सिर्फ़ अपनी रोज़ी-रोटी चलाई बल्कि मैट्रिक भी पास किया। मैट्रिक पास करते-करते उनकी आर्थिक स्थिति यहां तक पहुंच चुकी थी कि अपना निर्वाह वे पुरानी पुस्तकें बेच कर भी नहीं कर सकते थे। उन्होंने स्कूल में मास्टरी शुरु की। यह नौकरी करते हुए उन्होंने एफ. ए. और बी.ए. पास किया। एम.ए. भी करना चाहते थे, पर कर नहीं सके। शायद ऐसा सुयोग नहीं हुआ।
स्कूल मास्टरी के रास्ते पर चलते–चलते सन 1921 में वे गोरखपुर में डिप्टी इंस्पेक्टर स्कूल थे। जब गांधी जी ने सरकारी नौकरी से इस्तीफे का नारा दिया, तो प्रेमचंद ने गांधी जी के सत्याग्रह से प्रभावित हो, सरकारी नौकरी छोड़ दी। रोज़ी-रोटी चलाने के लिए उन्होंने कानपुर के मारवाड़ी स्कूल में काम किया। पर कुछ दिनों बाद ही त्यागपत्र देकर पत्रिकाओं का संपादन करने लगे।
प्रेमचंद ने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह कर लिया तथा उनके साथ सुखी दांपत्य जीवन जिए।
प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना शुरू किया। कहानी 1907 से लिखने लगे। उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों लिखी गई उनकी कहानी सोज़ेवतन 1910 में ज़ब्त की गई , उसके बाद अंग्रेज़ों के उत्पीड़न के कारण वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। 1923 में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की। 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया। इन्होने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया।
जीवन के अन्तिम दिनों के एक वर्ष छोड़कर, सन् (33-34) जो बम्बई की फिल्मी दुनिया में बीता, उनका पूरा समय बनारस और लखनऊ में गुजरा, जहाँ उन्होंने अनेक पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन किया और अपना साहित्य सृजन करते रहे ।
8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ।
प्रेमचंद का रचना संसार –
उपन्यास- वरदान, प्रतिज्ञा, सेवा-सदन(१९१६), प्रेमाश्रम(१९२२), निर्मला(१९२३), रंगभूमि(१९२४), कायाकल्प(१९२६), गबन(१९३१), कर्मभूमि(१९३२), गोदान(१९३२), मनोरमा, मंगल-सूत्र(१९३६-अपूर्ण)।
कहानी-संग्रह- प्रेमचंद ने कई कहानियाँ लिखी है। उनके २१ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए थे जिनमे ३०० के लगभग कहानियाँ है। ये शोजे वतन, सप्त सरोज, नमक का दारोगा, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम द्वादशी, प्रेम प्रतिमा, प्रेम तिथि, पञ्च फूल, प्रेम चतुर्थी, प्रेम प्रतिज्ञा, सप्त सुमन, प्रेम पंचमी, प्रेरणा, समर यात्रा, पञ्च प्रसून, नवजीवन इत्यादि नामों से प्रकाशित हुई थी।
प्रेमचंद की लगभग सभी कहानियों का संग्रह वर्तमान में 'मानसरोवर' नाम से आठ भागों में प्रकाशित किया गया है।
नाटक- संग्राम(१९२३), कर्बला(१९२४) एवं प्रेम की वेदी(१९३३)
जीवनियाँ- महात्मा शेख सादी, दुर्गादास, कलम तलवार और त्याग, जीवन-सार(आत्म कहानी)
बाल रचनाएँ - मनमोदक, कुंते कहानी, जंगल की कहानियाँ, राम चर्चा।
अनुवाद : इनके अलावे प्रेमचंद ने अनेक विख्यात लेखकों यथा- जार्ज इलियट, टालस्टाय, गाल्सवर्दी आदि की कहानियो के अनुवाद भी किया।
(अगले अंक में हम प्रेमचंद जी के साहित्यिक योगदान की चर्चा करेंगे)
मुंशी प्रेमचंद जी के बारे में जानकारी अच्छी लगी।हिंदी साहित्य में इनके अनुपम योगदान को नकारा नही जा सकता। आज यदि उनकी साहित्यिक कृतियों को हिंदी साहित्य से निकाल दिया जाए तो तो यह साहित्य अधूरा सा प्रतीत होगा।प्रेमचंद ही एक ऐसे साहित्यकार हुए जिन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया। जानकारी अच्छी लगी।कृपया इसकी निरंतरता बनाए रखें।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद जी के बारे में दी गयी जानकारी संग्रहणीय है ...आपने प्रेमचंद जी के जीवन परिचय और उनके साहितियक कृतियों की जानकारी देकर सराहनीय कार्य किया है ....आपका आभार
जवाब देंहटाएंजीवन को उन्होंने जैसा देखा,भोगा,वैसा ही अभिव्यक्त किया।
जवाब देंहटाएंमुंशी प्रेमचंद की रचनाओं के कालजयी होने का प्रमाण हमने स्वयं देखा है.. गबन, शतरंज के खिलाड़ी, सद्गति जैसी रचनाओं बनी फ़िल्में आज भी आस पास घटित होती प्रतीत होती हैं.. प्रेमचंद की सार्थकता आज भी बनी है और वो आज भी प्रासंगिक हैं..
जवाब देंहटाएंउनका परिचय अच्छा योगदान है मनोज जी, इसे जारी रखें!!!
मुंशी प्रेम चन्द जी के बारे मे बहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रेम चंद जी का लिखा काफी साहित्य पढ़ा हुआ है ...आज भी उनकी कहानियां प्रासंगिक हैं ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रेमचंद जी के विषय में पुनः पढ़कर बहुत अच्छा लगा...ऐसा लगा स्कूल के दिनों में लौट गयी हूँ...मेरे प्रिय लेखक 'प्रेमचंद' विषय के अंतर्गत यह सब कई बार लिखा है...फिर से पढना मन आह्लादित कर गया.
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंमुंशी प्रेमचंद के बारे में इतनी ढेर सारी जानकारी पुनः देखर यानि की पिछली पढ़ी तो उड़ गयी दिमाग से , सब कुछ पढ़ कर लगा की हमें अपने इन साहित्यकारों से सरोकार हमेशा रखना है जिन्होंने उस समय भी समाज के लिए लिखा और उसको सजीव चित्रित करके संजो कर रखा है.
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द के बारे में उपयोगी जानकारी देने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंआदरणीय मनोज जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
मुंशी प्रेमचंद के बारे में इतनी ढेर सारी जानकारी
जानकारी देकर सराहनीय कार्य किया है
एक बार फिर से प्रेमचन्द्र जी के जीवन से रूबरू हुए.
जवाब देंहटाएंआभार.
mind blowing
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया, महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के बारे में विस्तार रूप से जानकारी हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं