शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

दोहावली .... भाग 20 / संत कबीर


जन्म  --- 1398

निधन ---  1518



जा घट प्रेम संचरे, सो घट जान समान
जैसे खाल लुहार की, साँस लेतु बिन प्रान 191


ज्यों नैनन में पूतली, त्यों मालिक घर माहिं
मूर्ख लोग जानिए, बाहर ढ़ूंढ़त जांहि 192


जाके मुख माथा नहीं, नाहीं रूप कुरूप
पुछुप बास तें पामरा, ऐसा तत्व अनूप 193


जहाँ आप तहाँ आपदा, जहाँ संशय तहाँ रोग
कह कबीर यह क्यों मिटैं, चारों बाधक रोग 194


जाति पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान 195


जल की जमी में है रोपा, अभी सींचें सौ बार
कबिरा खलक तजे, जामे कौन विचार  196


जहाँ ग्राहक तँह मैं नहीं, जँह मैं गाहक नाय
बिको यक भरमत फिरे, पकड़ी शब्द की छाँय 197


झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद
जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद 198


जो तु चाहे मुक्ति को, छोड़ दे सबकी आस
मुक्त ही जैसा हो रहे, सब कुछ तेरे पास 199


जो जाने जीव आपना, करहीं जीव का सार
जीवा ऐसा पाहौना, मिले  दूजी बार 200


13 टिप्‍पणियां:

  1. उज्ज्वल भक्ति ज्वाल है, उजियारा है नाम।
    कबिरा रस की गागरी, कबिरा सत कै धाम॥


    सादर आभार।

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  2. संगीता जी
    कबीरदास जी के दोहे आज सदियों पश्चात भी ज़िन्दगी के करीब हैं ..इनमे सच छुपा है ..
    ज़िन्दगी का निचोड़ है इनमे..
    ज्ञानवर्धक प्रस्तुति..

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  3. झूठे सुख को सुख कहै, मानता है मन मोद ।
    जगत चबेना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद ॥

    कबीर सर्वकालिक हैं...समसामयिक है...और हमेशा रहेंगे...

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  4. kabeer k dohe aaaj bhi aise lagte hain jaise aaj k haalaton par hi kahe gaye hain.....lekin ye samsaamyikta hamesha na rahe ye dua hai.

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  5. आपके इस प्रयास ने तो मेरा काम ही बिल्कुल सरल कर दिया।इसके लिए आपको धन्यवाद।

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  6. आपके इस प्रयास ने तो मेरा काम ही बिल्कुल सरल कर दिया।इसके लिए आपको धन्यवाद।

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  7. आपके इस प्रयास ने तो मेरा काम ही बिल्कुल सरल कर दिया।इसके लिए आपको धन्यवाद।

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