प्रस्तुत संदर्भ जब विजय के पश्चात युधिष्ठिर सभी बंधु- बंधवों की मृत्यु से विचलित हो कहते हैं कि यह राजकाज छोड़ वो वन चले जाएंगे उस समय पितामह भीष्म उन्हें समझाते हैं ---
मानो , निखिल सृष्टि यह कोई
आकस्मिक घटना हो
जन्म साथ उद्देश्य मनुज का
मानों नहीं सना हो ॰
धर्मराज क्या दोष हमारा
धरती यदि नश्वर है ?
भेजा गया , यहाँ पर आया
स्वयं न कोई नर है ।
निहित न होता भाग्य मनुज का
यदि मिट्टी नश्वर में
चित्र - योनि धार मनुज जनमता
स्यात , कहीं अम्बर में -
किरण रूप , निष्काम , रहित हो
क्षुधा - तृषा के रुज से
कर्म-बंध से मुक्त , हीं दृग ,
श्रवण , नयन , पद , भुज से ।
किन्तु , मृत्ति है कठिन , मनुज को
भूख लगा करती है
त्वच से मन तक विविध भांति
की तृषा जागा करती है ।
यह तृष्णा , यह भूख न देती
सोने कभी मनुज को
मन को चिंतन -ओर , कर्म की
ओर भेजती भुज को ।
मन का स्वर्ग मृषा वह , जिसको
देह न पा सकती है
इससे तो अच्छा वह , जो कुछ
भुजा बना सकती है ।
क्यों कि भुजा जो कुछ लाती
मन भी उसको पाता है
नीरा ध्यान , भुज क्या ? मन को भी
दुर्लभ रह जाता है ।
सफल भुजा वह , मन को भी जो
भरे प्रमोद लहर से
सफल ध्यान , अंकन असाध्य
रह जाये न जिसका कर से ।
जहां भुजा का एक पंथ हो
अन्य पंथ चिंतन का
सम्यक रूप नहीं खुलता उस
द्वंद्व -ग्रस्त जीवन का ।
केवल ज्ञानमयी निवृत्ति से
द्विधा न मिट सकती है
जगत छोड़ देने से मन की
तृषा न घट सकती है ।
बाहर नहीं शत्रु , छिप जाये
जिसे छोड़ नर वन में
जाओ जहां , वहीं पाओगे
इसे उपस्थित मन में ।
पर जिस अरि को यती जीतता
जग से बाहर जा कर
धर्मराज , तुम उसे जीत
सकते जग को अपना कर ।
हठयोगी जिसका वध करता
आत्महनन के क्रम से
जीवित ही तुम उसे स्व-वश में
कर सकते संयम से।
और जिसे पा कभी न सकता
सन्यासी वैरागी
जग में रह कर हो सकते तुम
उस सुख के भी भागी ।
वह सुख जो मिलता असंख्य
मनुजों का अपना हो कर
हंस कर उसके साथ हर्ष में
और दुख में रो कर ।
वह , जो मिलता भुजा पंगु की
ओर बढ़ा देने से
कंधों पर दुर्बल - दरिद्र का
बोझ उठा लेने से ।
सुकृत -भूमि वन ही न ; महि यह
देखो बहुत बड़ी है
पग - पग पर साहाय्य -हेतु
दीनता विपिन्न खड़ी है ।
सुंदरतम्
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Aanad utha rahee hun.
जवाब देंहटाएंवह सुख जो मिलता असंख्य
जवाब देंहटाएंमनुजों का अपना हो कर
हंस कर उसके साथ हर्ष में
और दुख में रो कर ।
वाह, कितने सरल शब्दों में अद्भुत भाव..आभार !
श्रेष्ठ वचन...
जवाब देंहटाएंवह , जो मिलता भुजा पंगु की
जवाब देंहटाएंओर बढ़ा देने से
कंधों पर दुर्बल - दरिद्र का
बोझ उठा लेने से ।
अब तो कुरुक्षेत्र अंतिम पड़ाव की ओर है, पर संग्राम थमने वाला नहीं है।
सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का
जवाब देंहटाएंसांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
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