" खिल
उठे पलाश " काव्य संग्रह है
कवयित्रि सारिका मुकेश जी का जो इस समय वी॰ आई॰ टी॰ यूनिवर्सिटी वैल्लोर ( तमिलनाडु) में अँग्रेजी की असिस्टेंट प्रोफेसर ( सीनियर ) के रूप में
कार्य रात हैं . इससे पहले भी इनके दो काव्य संग्रह ‘ पानी पर लकीरें और
एक किरण उजाला ‘प्रकाशित हो चुके हैं । कवयित्रि के विचारों
की एक झलक मिलती है जो उन्होने अपनी पुस्तक की भूमिका में कही है -
“वैश्वीकरण
ने भारत को
दो हिस्सों में बाँट दिया है --एक जो पूरी तरह से वैश्वीकरण का आर्थिक
लाभ ( ईमानदारी से ,भ्रष्टाचार से या फिर दोनों
से ) उठा कर अमीर बन चुका है ; जिसे हम
शाइनिंग इंडिया के नाम से जानते हैं और दूसरा जहां वैश्वी
करण की आर्थिक वर्षा की एक - दो छींट ही पहुँच सकी हैं और जो भारत ही बन कर
रह गया है ...
मन के
दरवाजे पर संवेदनाओं की आहटें ही कविता को विस्तार देती हैं
जिनमें जीवन की धड़कनें समाहित होती हैं । ”
सच ही इस पुस्तक की संवेदनाओं ने मन के दरवाजे
पर ज़बरदस्त दस्तक दी है ..... यूं तो हर रचना अपने आप में मुकम्मल
है लेकिन जिन रचनाओं ने मन पर विशेष प्रभाव छोड़ा है वो हैं --
मिलन ---
जहां वृक्ष लता को एक दृढ़ सहारा देने को दृढ़ निश्चयी है जैसे कह
रहा हो मैं हूँ न ।
फिर जन्मी
लता / पली और बढ़ी / और फिर एक दिन /लिपट गयी वृक्ष से / औ वृक्ष भी / कुछ झुक गया
/ करने को आलिंगन / लता का /
सामाजिक
सरोकारों को उकेरती कुछ कवितायें एक प्रश्न छोड़ जाती हैं जो मन को मथते रहते हैं
---
तुमने
देखा है कभी / कोई आठ साल का लड़का .....सीने में गिनती करती पसलियाँ ...
आज वक़्त
बदल रहा है .... लड़कियां भी कदम दर
कदम आगे बढ़ रही हैं –
प्रतियोगिता
के स्वर्णिम सपनों को आँखों में लिए / कठोर परिश्रम कर डिग्री पा कर / अपने मुकाम को पाने हेतु /
मनुष्य
को जो आपस में बांटना चाहिए उससे विमुख हो कर धरती , आकाश यहाँ तक कि हवा पानी भी
बांटने को तत्पर है ।
वर्जीनिया
वुल्फ़ --- यह ऐसी रचना है जिसमे लेखिका के पूरे जीवन को ही उकेर कर रख दिया है ।
शब्दों का
फेर / नयी सदी का युवा ..... यह वो रचनाएँ हैं जो हंसी का पुट लिए हुये गहरा कटाक्ष करती प्रतीत
होती हैं ।
एक हादसा
/सफलता के पीछे वाला व्यक्ति / आधुनिकता का असर / दिल्ली में सफर करते हुये ....
यह ऐसी कवितायें हैं जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं .... आज इंसान की फित्रत
बदल रही है ....
तुम पर ही
नहीं पड़े निशान --- यह नन्ही नज़्म बस महसूस करने की है कुछ लिखना
बेमानी है इस पर ।
और अंतिम
पृष्ठ तो गजब ही लिखा है एक सार्थक संदेश देते हुये .... मृत्यु जन्म से
पहले नहीं घटती ... बहुत सुंदर
इस तरह इस पुस्तक के माध्यम से मैंने बीज से वृक्ष तक का
सफर किया ...... हर कविता को महसूस किया .... और क्यों कि कविता निर्बाध गति
से एक आँगन से दूसरे आँगन तक बहती है तो मैं भी इसमें बही ..... पाठक भी नि: संदेह इस पुस्तक से
स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे । पुस्तक की साज सज्जा और आवरण बेहतरीन है ।
रचनाकार
को मेरी हार्दिक शुभकामनायें ।
पुस्तक का नाम ----
खिल उठे पलाश
ISBN ------ 978-8188464-49-4
मूल्य
---------- 150 /
प्रकाशक
--- जाह्नवी
प्रकाशन , ए - 71 ,विवेक
विहार ,फेज़ -
2 , दिल्ली
- 110095
हमारी भी ढेरों शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंबधाई
जवाब देंहटाएंSundar sameeksha!badhayi ho!
जवाब देंहटाएंइस समीक्षा को पढ़कर सारिका जी की किताब पढ़ने की उत्कंठा जग गई।
जवाब देंहटाएंलगता है मेरी टिपण्णी इस पोस्ट पर पूर्व में की गई स्पैम बोक्स में चली गई .सटीक संक्षिप्त सुन्दर समीक्षा .
जवाब देंहटाएंमुझे आशा ही नही वरन पूर्ण विश्वास है कि पुस्तक परिचय का यह क्रम हमारे ज्ञान के भंडार में बढ़ोत्तरी करने का एक सफल माध्यम बनेगा। हम जो भी सीखते हैं उसका श्रेय पुस्तकों को ही जाता है। हिंदी के साहित्यकार निर्मल तालावार का यह कथन कि पुस्तकें ही हमारे मन के तिमिर को दूर करने में अहम भूमिका का निर्वहन करनी हैं, बहुत सार्थक प्रतीत होती है । इस पोस्ट की प्रस्तुति के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसमस्त प्रिय/माननीय विद्वजनों,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रियाएं पाकर अच्छा लग रहा है; पुस्तक पढ़कर आपकी पूर्ण प्रतिक्रिया पाकर और अच्छा लगेगा!
आप सभी के स्नेहाशीष के प्रति हम ह्रदय से आभारी हैं; आप सभी से मिले प्रेम और आत्मबल को अनुभूत कर आज सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल जी की यह पंक्तियाँ लिखते वक्त मुझे यह पंक्तियाँ स्मरण हो उठी हैं:
मुझे प्राप्त है जनता का बल
वह मेरी कविता का बल है
मैं उस बल से
शक्ति प्रबल से
एक नहीं सौ साल जिऊँगा...
आशा है आप सब अपना स्नेह यूँ ही बरसाते रहेंगे!
पुस्तक प्राप्ति के लिए आप drsarikamukesh@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं!
मंगल कामनाओं सहित,
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/
दीदी, "खिल उठे पलाश" पुस्तक पर आपकी समीक्षा और आपकी इस पोस्ट में इसे पाकर आह्लादित हूँ; आपका बहुत-बहुत आभार! अपना स्नेह यूँ ही बनाए रखें!
जवाब देंहटाएंसादर/सप्रेम,
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/
सुंदर समीक्षा संगीता दी. सारिका जी को बहुत बहुत बधाई इस सुंदर काव्य संग्रह के लिये.
जवाब देंहटाएंयह पुस्तक मैं भी पढ़ रहा हूं; कविताएं समाज और व्यक्ति की संवेदनाओं के संबंध में बहुत कुछ कहती हैं। जीवन के छोटे-छोटे अनुभवों को नई दृष्टि से देखा गया है।
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर
जवाब देंहटाएंआधारित है जो कि खमाज
थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल
निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने
इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल
में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
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