साँझ के बादल
धर्मवीर भारती
ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आतीं
मंथर चाल।
नीलम पर किरनों
की साँझी
एक न डोरी
एक न माँझी,
फिर भी लाद निरंतर लातीं
सेंदुर और प्रवाल!
कुछ समीप की
कुछ सुदूर की
कुछ चंदन की
कुछ कपूर की,
कुछ में गेरू कुछ में रेशम
कुछ में केवल जाल।
ये अनजान नदी की नावें
जादू के-से पाल
उड़ाती
आतीं
मंथर चाल .. .. .. ..
बहुत सुन्दर कविता.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
सुंदर काव्य प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंAdbhut rachana!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना पढ़वाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंकितना सुन्दर शब्द चित्र..आभार!
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में
जवाब देंहटाएंकोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
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हमारी फिल्म का संगीत
वेद नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा
जंगल में चिड़ियों कि
चहचाहट से मिलती है.
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Feel free to surf my site ; खरगोश
बहुत ही अच्छा कविता है हम इसे पसंद करते है
जवाब देंहटाएंIska arth bhi bhej dete to aur Acha lagta
जवाब देंहटाएंइस कविता का विशेषतआए क्या है ?
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