प्रस्तुत संदर्भ जब विजय के पश्चात युधिष्ठिर सभी बंधु- बंधवों की मृत्यु से विचलित हो कहते हैं कि यह राजकाज छोड़ वो वन चले जाएंगे उस समय पितामह भीष्म उन्हें समझाते हैं ---
इसे चाहिए अन्न , वसन , जल ,
इसे चाहिए आशा ,
इसे चाहिए सुदृढ़ चरण , भुज
इसे चाहिए भाषा ।
इसे चाहिए वह झांकी ,
जिसको तुम देख चुके हो ,
इसे चाहिए वह मंज़िल
तुम आकर जहां रुके हो ।
धर्मराज , जिसके भय से तुम
त्याग रहे जीवन को
उस प्रदाह में देखो जलते
हुये समग्र भुवन को ।
यदि सन्यास शोध है इसका
तो मत युक्ति छिपाओ
सब हैं विकल, सभी को अपना
मोक्ष मंत्र सिखलाओ ।
जाओ शमित करो निज तप से
नर के रागानल को
बरसाओ पीयूष , करो
अभिसिक्त दग्ध भूतल को ।
सिंहासन का भाग छीन कर
दो मत निर्जन वन को
पहचानो निज कर्म युधिष्ठिर !
कड़ा करो कुछ मन को ।
क्षत - विक्षत है भरत - भूमि का
अंग - अंग वाणों से
त्राहि - त्राहि का नाद निकलता
है असंख्य प्राणों से ।
कोलाहल है महा त्रास है ,
विपद आज है भारी ,
मृत्यु - विवर से निकल चतुर्दिक
तड़प रहे नर -नारी ।
इन्हें छोड़ वन में जा कर तुम
कौन शांति पाओगे ?
चेतन की सेवा तज जड़ को
कैसे अपनाओगे ?
पोंछो अश्रु , उठो , द्रुत जाओ
वन में नहीं भुवन में
होओ खड़े असंख्य नरों की
आशा बन जीवन में ।
बुला रहा निष्काम कर्म वह ,
बुला रही है गीता
बुला रही है तुम्हें आर्त हो
महि समर - संभीता ।
इस विविक्त , आहत वसुधा को
अमृत पिलाना होगा
अमित लता - गुल्मों में फिर से
सुमन खिलाना होगा ।
हरना होगा अश्रु ताप
हृत - बंधु अनेक नरों का
लौटाना होगा सुहास
अगणित - विषण्ण अधरों का ।
मरे हुओं पर धर्मराज ,
अधिकार न कुछ जीवन का
ढोना पड़ता सदा
जीवितों को ही भार भुवन का ।
मरा सुयोधन जभी , पड़ा
यह भार तुम्हारे पाले
संभलेगा यह सिवा तुम्हारे
किसके और संभाले ?
मिट्टी का यह भार संभालो
बन कर्मठ सन्यासी
पा सकता कुछ नहीं मनुज
बन केवल व्योम प्रवासी ।
ऊपर सब कुछ शून्य - शून्य है ,
कुछ भी नहीं गगन में ,
धर्मराज ! जो कुछ है , वह है
मिट्टी में , जीवन में ।
सम्यक विधि से इसे प्राप्त कर
नर सब कुछ पाता है
मृत्ति - जयी के पास स्वयं ही
अम्बर भी आता है ।
क्रमश:
आभार...
जवाब देंहटाएं............
कितनी बदल रही है हिन्दी !
भीष्म पितामह का संदेश अनुकरणीय है । आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत ............शुभकामनाएँ.........
जवाब देंहटाएं.............जयहिन्द............
............वन्दे मातरम्..........
कुरुक्षेत्र...जीवन का यथार्थ...अतीत के पात्रों से बहुत सुंदर ढंग से कहा गया है.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!!
खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
जवाब देंहटाएंस्वरों में कोमल निशाद
और बाकी स्वर शुद्ध लगते
हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती
है...
Also visit my page : फिल्म