सोमवार, 20 अगस्त 2012

कुरुक्षेत्र .... सप्तम सर्ग .... भाग - 14 /रामधारी सिंह दिनकर


प्रस्तुत संदर्भ  जब विजय के पश्चात युधिष्ठिर सभी बंधु- बंधवों की मृत्यु से  विचलित हो कहते हैं कि यह राजकाज  छोड़ वो वन चले जाएंगे उस समय पितामह भीष्म उन्हें समझाते  हैं ---

भोगो तुम इस भांति मृत्ति को 
दाग नहीं लग पाये 
मिट्टी में  तुम नहीं , वही 
तुममें विलीन हो जाये । 

और सिखाओ भोगवाद की 
यही रीति जन - जन को 
करें विलीन देह को मन में 
नहीं देह में मन को । 

मन का होगा आधिपत्य 
जिस दिन मनुष्य के तन पर 
होगा त्याग अधिष्ठित  जिस दिन 
भोग - लिप्त  जीवन पर । 

कंचन को नर साध्य  नहीं 
साधन जिस दिन जानेगा 
जिस दिन सम्यक  रूप मनुज का 
मानव पहचानेगा । 

वल्कल - मुकुट , परे दोनों के 
छिपा एक जो नर है 
अन्तर्वासी एक पुरुष जो 
पिंडों  से ऊपर है । 

जिस दिन देख  उसे पाएगा 
मनुज ज्ञान के बल से 
रह न जाएगी  उलझ दृष्टि जब 
मुकुट और वल्कल से । 

उस दिन होगा सुप्रभात 
नर के सौभाग्य उदय का 
उस दिन होगा शंख ध्वनित 
मानव की महा विजय का । 

धर्मराज , गंतव्य देश है दूर 
न देर लगाओ 
इस पथ पर मानव समाज को 
कुछ आगे पहुंचाओ । 

सच है , मनुज बड़ा पापी है 
नर का वध करता है 
पर , भूलो मत , मानव के हित
मानव ही मरता  है । 

लोभ , द्रोह , प्रतिशोध , वैर 
नरता के विघ्न  अमित  हैं 
तप , बलिदान , त्याग के संबल 
भी न किन्तु , परिमित हैं । 

प्रेरित करो इतर प्राणी को 
निज चरित्र  के बल  से 
भरो पुण्य की किरण प्रजा में 
अपने तप निर्मल से । 

मत सोचो दिन - रात पाप में 
मनुज निरत होता है 
हाय , पाप के बाद वही तो 
पछताता  रोता है । 

यह क्रंदन, यह अश्रु मनुज की 
आशा बहुत बड़ी है 
बतलाता है यह , मनुष्यता 
अब तक नहीं मरी है । 

सत्य नहीं  पातक की ज्वाला 
में मनुष्य  का जलना 
सच है बल समेट  कर उसका 
फिर आगे को चलना । 

नहीं एक अवलंब  जगत का 
आभा पुण्य व्रती  की 
तिमिर - व्यूह  में फंसी किरण भी 
आशा है धरती की । 

फूलों पर आँसू के मोती 
और अश्रु में आशा 
मिट्टी के जीवन की छोटी 
नपी - तुली परिभाषा । 

आशा के  प्रदीप को जलाए चलो धर्मराज , 
एक दिन होगी मुक्त  भूमि  रण - भीति से । 
भावना मनुष्य की न राग  में रहेगी लिप्त , 
सेवित रहेगा  नहीं जीवन  अनीति  से । 
हार से मनुष्य की न महिमा घटेगी और , 
तेज  न बढ़ेगा किसी मानव  की जीत से । 
स्नेह - बलिदान होंगे माप नरता के एक , 
धरती मनुष्य  की बनेगी  स्वर्ग प्रीति  से । 

समाप्त 
 

6 टिप्‍पणियां:

  1. jab jab apki is shrinkhla ki nayi kadi padhi tab tab pratibha saxena ji ke paanchali shrinkhla me mujhe isse uthe sawalon ke jawab milte hue se prateet hue aur saamjasy bhi kaisa raha in dono shrinkhlaaon ka ki dono ka samapan bhi almost ek-sath hi hua. bheeshm dwara bar bar yudhishthar ko samjhane k kram me paanchali shrinkhla ki antim kadiyon me mano yudhishthar, bheeshm ke path-pradarshan se prerit ho yagy karte hai aas-paas ki praja ko ekatr kar unke man se nirasha aur vikaron ko hata utsaah/urja ka sanchaar karte hain. aur ant me pareekshit ko raajy ka karybhar saup panchon bhayi draupadi ke sath van-gaman karte hain.

    aabhar aapke is behtareen prayas ka. der-sawair maine is shrinkhla ko poora padha aur gyanoparjan kiya. umeed karti hun aage bhi aap aise pryas kar hame abhibhoot karti rahengi aur jald ki ki nayi shrinkhla ki shuruaat hogi.

    bahut bahut aabhar.

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  2. खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित
    है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है, स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर
    हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी
    किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद
    नायेर ने दिया है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से
    मिलती है...
    Review my site : फिल्म

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