आदरणीय गुणी जनों को अनामिका का सादर नमस्कार ! अगस्त माह से मैंने एक नयी श्रृंखला का आरम्भ किया है जिसमे आधुनिक काल के प्रसिद्ध कवियों और लेखकों के जीवन-वृत्त, व्यक्तित्व, साहित्यिक महत्त्व, काव्य सौन्दर्य और उनकी भाषा शैली पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है और विश्वास करती हूँ कि आप सब के लिए यह एक उपयोगी जानकारी के साथ साथ हिंदी राजभाषा के साहित्यिक योगदान में एक अहम् स्थान ग्रहण करेगी.
लीजिये भारतेन्दु हरिशचंद्र जी, श्री बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' जी और श्री नाथूराम शर्मा 'शंकर' जी की चर्चा के बाद आज चर्चा करते हैं श्रीधर पाठक जी की
श्रीधर पाठक
जन्म 1859 ई., मृत्यु 1928 ई.
जीवन वृत्त
इनका जन्म आगरा जिले के जोंधरी गाँव में हुआ था. हिंदी के अतिरिक्त इन्होने अंग्रेजी, फ़ारसी और संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया. आजीविका के लिए पाठक जी ने कलकत्ता में सरकारी नौकरी की . नौकरी के प्रसंग में ही इन्हें काश्मीर और नैनीताल भी जाना पड़ा, जहाँ इन्हें प्रकृति के निरीक्षण का अच्छा अवसर मिला. नौकरी के पश्चात ये प्रयाग में आकर रहने लगे. इन्होने बृजभाषा और खड़ी बोली दोनों में अच्छी कविता की हैं. इनकी बृजभाषा सहज और निराडम्बर है - परंपरागत रूढ़ शब्दावली का प्रयोग इन्होने प्रायः नहीं किया है.खड़ी बोली में काव्य रचना कर इन्होने गद्य और पद्य की भाषाओं में एकता स्थापित करने का एतिहासिक कार्य किया. खड़ी बोली के ये प्रथम समर्थ कवि भी कहे जा सकते हैं. यद्यपि इनकी खड़ी बोली में कहीं कहीं बृजभाषा के क्रियापद भी प्रयुक्त हैं, किन्तु यह क्रम महत्वपूर्ण नहीं है कि महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा 'सरस्वती' का सम्पादन संभालने से पूर्व ही इन्होने खड़ी बोली में कविता लिखकर अपनी स्वच्छन्द वृति का परिचय दिया. देश-प्रेम, समाज सुधार तथा प्रकृति - चित्रण इनकी कविता के मुख्य विषय हैं. इन्होने बड़े मनोयोग से देश का गौरव गान किया है, किन्तु देश भक्ति के साथ इनमे भारतेंदु कालीन कवियों के समान राजभक्ति भी मिलती है. एक ओर इन्होने ' भारतोत्थान' ; 'भारत प्रशंसा' आदि देशभक्ति पूर्ण कवितायें लिखी हैं तो दूसरी ओर 'जार्ज वन्दना' जैसी कविताओं में राजभक्ति का भी प्रदर्शन किया है. समाज सुधार की ओर भी इनकी दृष्टि बराबर रही है. 'बाल विधवा' में इन्होने विधवाओं की व्यथा का कारुणिक वर्णन किया है. परन्तु इनको सर्वाधिक सफलता प्रकृति चित्रण में प्राप्त हुई है. तत्कालीन कवियों में इन्होने सबसे अधिक मात्रा में प्रकृति चित्रण किया है. परिणाम की दृष्टि से ही नहीं, गुण की दृष्टि से भी वह सर्वश्रेष्ठ हैं. इन्होने रूढी का परित्याग कर प्रकृति का स्वतंत्र रूप में मनोहारी चित्रण किया है. इन्होने अंग्रेजी तथा संस्कृत की पुस्तकों के पद्यानुवाद भी किये. मातृभाषा की उन्नति की भी ये कामना करते हैं. इनके शब्दों में -
निज भाषा बोलहु लिखहु पढ़हू गुनहु सब लोग !
करहु सकल वषयन विषैं निज भाषा उपजोग !!
पाठक जी कुशल अनुवादक थे - कालिदास कृत 'ऋतुसंहार' और गोल्डस्मिथ-कृत 'हरमिट', 'टेजटेंड विलेज' तथा 'प ट्रैवलर' का ये बहुत पहले ही 'एकांतवासी योग', ऊजड ग्राम और श्रांत पथिक शीर्षक से काव्यानुवाद कर चुके थे.
इनकी मौलिक कृतियों में 'वनाश्टक' 'काश्मीर सुषमा' (1904), 'देहरादून'(1915), 'भारत गीत'(1928), 'गोपिका गीत' , 'मनोविनोद' , 'जगत सच्चाई- सार' विशेषतः उल्लेखनीय हैं.
पाठक जी की काव्यशैली के उदाहरण स्वरुप एक अवतरण देखिये -
चारु हिमाचल आँचल में एक साल बिसालन कौ बन है !
मृदु मर्मर शीत झरैं जल-स्त्रोत है पर्वत -ओट है निर्जन है !!
लिपटे हैं लता द्रुम, गान में लीन प्रवीन विहंगन कौ बन है !
भटक्यों तहां रावरौं भूल्यौं फिरै, मद बावरौ सौ अलि को मन है !!
लीजिये उनकी प्रमुख कृतियों में से एक कृति
भारत गीत
जय जय प्यारा, जग से न्यारा
शोभित सारा, देश हमारा.
जगत मुकुट, जगदीश दुलारा
जन सौभाग्य सुदेश,
जय जय प्यारा, देश हमारा.
प्यारा देश, जय देशेश
अजय अशेष, सदय विशेष
जहाँ न संभव अघ का लेश
केवल पुन्य प्रवेश
जय जय प्यारा, देश हमारा.
स्वर्गिक शीश फूल पृथ्वी का
प्रेम मूल, प्रिय लोकत्रयी का.
सुललित प्रकृति -नटी का टीका
ज्यों निशि का राकेश !
जय जय प्यारा, देश हमारा.
जय जय शुभ्र हिमाचल शृंगा
कलरव निरत कलोलिनी गंगा
भानुप्रताप चमत्कृत अंगा
तेज पुंज तपदेश
जय जय प्यारा, भारत देश .
जग में कोटि कोटि जुग जीवे
जीवन सुलभ अमी रस पीवे,
सुखद वितान सुकृत का सीवे,
रहे स्वतंत्र हमेश !
जय जय प्यारा, भारत देश !!
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बहुत ही सुंदर जानकारी पाठक जी के बारे में
जवाब देंहटाएंश्रीधर पाठक जी के बारे में प्रस्तुत जानकारी बेहद प्रशंसनीय है । आपका यह प्रयास हमें उन साहित्यकारों के कृतियों से केवल अवगत ही नही कराता अपितु वर्तमान समय पर हाशिए पर रखे गए इन लोगों के साहित्य के प्रति बहुमूल्य योगदान पर भी प्रकाश डालता है। साहित्य के विद्यार्थियों के लिए यह पोस्ट ज्ञानवर्द्धक साबित होगा। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी शृंखला
जवाब देंहटाएंvery good thoughts.....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग
जीवन विचार पर आपका हार्दिक स्वागत है।
वाह क्या कहने..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
इन साहित्यकार से परिचय न था। आपके इस लेख के माध्यम से परिचय हुआ। आभार आपका इस प्रस्तुति के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी.....
जवाब देंहटाएंश्रन्खला का पूरा लाभ उठाने का प्रयास करूंगी.
आभार अनामिका जी.
अनु
अनामिका जी : बेहद जानकारीपरक श्रंखला शुरू की है आपने. शुभकामनाये और धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज थाट
जवाब देंहटाएंका सांध्यकालीन राग है, स्वरों में
कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित
है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग
बागेश्री भी झलकता है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद
नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत
कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
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आदरणीया अनामिका जी,आपने बहुत ही प्रेरणास्पद श्रृंखला बनाई हैं। इससे देश के सभी आधुनिक युग के साहित्य कारों से लोगों का परिचय होगा।जो कि साहित्य और साहित्यकारों दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा।
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