आदरणीय गुणी जनों को अनामिका का सादर नमस्कार ! अगस्त माह से मैंने एक नयी श्रृंखला का आरम्भ किया है जिसमे आधुनिक काल के प्रसिद्द कवियों और लेखकों के जीवन-वृत्त, व्यक्तित्व, साहित्यिक महत्त्व, काव्य सौन्दर्य और उनकी भाषा शैली पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जा रहा है और विश्वास करती हूँ कि आप सब के लिए यह एक उपयोगी जानकारी के साथ साथ हिंदी राजभाषा के साहित्यिक योगदान में एक और मील का पत्थर का स्थान ग्रहण करेगी.
लीजिये भारतेन्दु हरिशचंद्र जी और श्री बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' जी की चर्चा के बाद आज चर्चा करते हैं श्री नाथू राम शर्मा शंकर जी की
श्री नाथूराम शर्मा शंकर
जन्म सन 1859 ., मृत्यु 1932 ई.
जीवन वृत्त
पंडित नाथूराम शर्मा शंकर ( 1859-1932) का जन्म संवत् 1916 में हरदुआगंज, जिला अलीगढ में हुआ था. ये अपना उपनाम 'शंकर' रखते थे. आरम्भ से ही शंकर जी बड़े साहित्यानुरागी थे .ये हिंदी, उर्दू, फ़ारसी तथा संस्कृत भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे और पद्यरचना में अत्यंत सिद्ध हस्त थे. तेरह वर्ष की छोटी आयु में ही इन्होने अपने एक साथी पर एक दोहा रचा था. कानपूर में ये भारतेंदु -मंडल के प्रसिद्द कवि प्रतापनारायण मिश्र के संपर्क में आये तथा 'ब्राह्मण' में इनकी कवितायें छपने लगीं और उस समय के कवि समाजों में बराबर कविता पढने लगे थे। . समस्यापूर्ति ये बड़ी ही सटीक और सुंदर करते थे जिनसे इनका चारों ओर पदक, पगड़ी, दुशाले आदि से सत्कार होता था। बाद में इन्होने आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी द्वारा सम्पादित 'सरस्वती' के मुख्य कवियों में स्थान पाया.
भाषा शैली
प्रारंभ में ये बृजभाषा के कवि थे, किन्तु शीघ्र ही ये खड़ी बोली की ओर झुक गए थे. ये उर्दू में भी अच्छी कविता लिखते थे. ये प्रायः अतिशयोक्तिपूर्ण कविता लिखते थे. इनकी अतिशयोक्तियाँ आकाश-पाताल को एक कर देनेवाली हैं .
अतिश्योक्ति पूर्ण कविता का एक नमूना -
शंकर नदी नाद नदीसन के नीरन की ,
भाप बन अम्बर तें ऊँची चढ़ जाएगी.
दोनों ध्रुव छोरन लौं पल में पिघल कर,
घूम घूम धरनी धुरी सी बढ़ जाएगी !!
काव्य-सौन्दर्य
शंकर जी पर आर्यसमाज तथा तत्कालीन राष्ट्रीय आन्दोलनों का गहरा प्रभाव पड़ा. देश-प्रेम, स्वदेशी-प्रयोग, समाज सुधार, हिंदी अनुराग तथा विधवाओं और अछूतों का दारुड दुख इनके कविता के प्रमुख विषय हैं. सामाजिक कुरीतियों, आडम्बरों, अंधविश्वासों, बाल-विवाह आदि पर इन्होने बड़े तीखे व्यंग्य किये हैं. रीतिकालीन पद्धति पर इन्होने कुछ श्रृंगार मयी रचनाएं भी की. राजा रवि वर्मा के चित्रों के आधार पर भी शंकर जी ने सुन्दर कवितायें लिखीं. ये समस्यापूर्ति में बड़े कुशल थे. तत्कालीन कवि-समाजों और सम्मेलनों में इनकी धूम थी तथा ये 'कविता-कामिनी-कान्त' , 'भारतेंदु-प्रज्ञेन्दु', 'साहित्य-सुधाकर' आदि उपाधियों से विभूषित किये गए. छंद शास्त्र के ये बड़े मर्मज्ञ विद्वान थे. इनके काव्य में सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग हुआ है. छंदों के सुंदर नपे तुले विधान के साथ ही उनकी उद्भावनाएँ भी बड़ी अनूठी होती थीं। वियोग का यह वर्णन पढ़िए ,
झारेंगे अंगारे ये तरनि तारे तारापति
जारैंगे खमंडल में आग मढ़ जाएगी।
काहू बिधि विधि की बनावट बचैगी नाहिं
जो पै वा वियोगिनी की आह कढ़ जाएगी
खड़ी बोली का प्रचार होने पर वे उसमें बहुत अच्छी रचना करने लगे। इनकी पदावली कुछ उद्दंडता लिए होती थी। इसका कारण यह है कि उनका संबंध आर्यसमाज से रहा जिसमें अंधाविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के उग्र विरोध की प्रवृत्ति बहुत दिनों तक जागृत रही। उसकी अंतर्वत्ति का आभास इनकी रचनाओं में दिखाई पड़ता है। 'गर्भरंडा रहस्य' नामक एक बड़ा प्रबंधकाव्य उन्होंने विधवाओं की बुरी परिस्थिति और देवमंदिरों के अनाचार आदि दिखाने के उद्देश्य से लिखा था। उसका एक पद्य देखिए ,
फैल गया हुड़दंग होलिका की हलचल में।
फूल फूल कर फाग फला महिला मंडलमें
जननी भी तज लाज बनी ब्रजमक्खी सबकी।
पर मैं पिंड छुड़ाय जवनिका में जा दबकी
फबतियाँ और फटकार इनकी कविताओं की एक विशेषता है। फैशन वालों पर कही हुई 'ईश गिरिजा को छोड़ि ईशु गिरिजा में जाय' वाली प्रसिद्ध फबती इन्हीं की है। पर जहाँ इनकी चित्तवृत्ति दूसरे प्रकार की रही है, वहाँ की उक्तियाँ बड़ी मनोहर भाषा में है। यह कवित्त ही लीजिए ,
तेज न रहेगा तेजधारियों का नाम को भी,
मंगल मयंक मंद मंद पड़ जायँगे।
मीन बिन मारे मर जायँगे सरोवर में,
डूब डूब 'शंकर' सरोज सड़ जायँगे
चौंक चौंक चारों ओर चौकड़ी भरेंगे मृग,
खंजन खिलाड़ियों के पंख झड़ जायँगे।
बोलो इन अंखियों की होड़ करने को अब,
विस्व से अड़ीले उपमान अड़ जायँगे
कृतियाँ
'अनुरागरत्न', 'शंकर-सरोज', 'गर्भरंडा रहस्य' तथा 'शंकर सर्वस्व' (१९५१) इनके प्रमुख काव्य ग्रन्थ हैं. 'कवि व चित्रकार', 'काव्यसुधाकर', 'रसिक मित्र' आदि पत्रों में उनकी अनूठी पूर्तियाँ हैं.
संवत् 1989 में इनकी मृत्यु हो गयी.
अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत सुन्दर अनामिका जी...
जवाब देंहटाएंसच्ची, हम जैसे अल्पज्ञों के लिए बड़ी उपयोगी श्रंखला है .
आभार आपका एवं मनोज जी का.
सादर
अनु
बहुत ही ज्ञानवर्धक श्रंखला है अनामिका जी ! आप इसी तरह अतीत के खजाने के अनमोल मोतियों से हमें मिलवाती रहिये और हमारी अनुभव संपदा को समृद्ध करती रहिये ! अच्छा लगा श्री नाथूराम शर्मा 'शंकर' जी से मिलना ! आभार आपका !
जवाब देंहटाएंशंकर जी और उनकी शैली से परिचित करवाने का शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंइतिहास में कितना कुछ है जिससे अपिचित हैं अभी तक आज की पीड़ी ... उत्कृष्ट रचना संसार से मिलवाया है आपने ...
ज्ञानवर्धक और उपयोगी श्रंखला...
जवाब देंहटाएंउपयोगी एवं संग्रहणीय!
जवाब देंहटाएंपठनीय पोस्ट..
जवाब देंहटाएंइस महान साहित्यकार से परिचय कराने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत उत्क्रष्ट श्रंखला...शंकर जी के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा... आभार
जवाब देंहटाएंहिन्दी साहित्य के श्रेष्ठ कवियों से आज के पाठकों को परिचित करा कर और उनके क़तित्व की झाँकी प्रस्तुत कर आप बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं -साधुवाद स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर आधारित है जो कि खमाज
जवाब देंहटाएंथाट का सांध्यकालीन राग
है, स्वरों में कोमल
निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते
हैं, पंचम इसमें वर्जित
है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों
कि चहचाहट से मिलती है.
..
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उत्तम
जवाब देंहटाएंआभार