बुधवार, 22 सितंबर 2010

काव्य प्रयोजन (भाग-९) मूल्य सिद्धांत

काव्य प्रयोजन (भाग-९)

मूल्य सिद्धांत

पिछली आठ पोस्टों मे हमने (१) काव्य-सृजन का उद्देश्य, (लिंक) (२) संस्कृत के आचार्यों के विचार (लिंक), (३)पाश्‍चात्य विद्वानों के विचार (लिंक), (४) नवजागरणकाल और काव्य प्रयोजन (५) नव अभिजात्‍यवाद और काव्य प्रयोजन (लिंक) (६) स्‍वच्‍छंदतावाद और काव्‍य प्रयोजन (लिंक) (७) कला कला के लिए और (८) कला जीवन के लिए (लिंक) की चर्चा की थी। जहां एक ओर संस्कृत के आचार्यों ने कहा था कि लोकमंगल और आनंद, ही कविता का “सकल प्रयोजन मौलिभूत” है, वहीं दूसरी ओर पाश्‍चात्य विचारकों ने लोकमंगलवादी (शिक्षा और ज्ञान) काव्यशास्त्र का समर्थन किया। नवजागरणकाल के साहित्य का प्रयोजन था मानव की संवेदनात्मक ज्ञानात्मक चेतना का विकास और परिष्कार। जबकि नव अभिजात्‍यवादियों का यह मानना था कि साहित्य प्रयोजन में आनंद और नैतिक आदर्शों की शिक्षा को महत्‍व दिया जाना चाहिए। स्वछंदतावादी मानते थे कि कविता हमें आनंद प्रदान करती है। कलावादी का मानना था कि कलात्मक सौंदर्य, स्वाभाविक या प्राकृतिक सौंदर्य से श्रेष्ठ होता है। कला जीवन के लिए है मानने वालोका मत था कि कविता में नैतिक विचारों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। आइए अब पाश्‍चात्य विद्वानों की चर्चा को आगे बढाएं।

आई.ए. रिचर्ड्स ने कविता की उपयोगिता की व्याख्या वैज्ञानिक-पद्धति से की। उन्होंने मानवीय मूल्यों से इसे जोड़ा। उनका कहना था,
कविता का लक्ष्य विरुद्धों में सामंजस्य स्थापित करना है।”

कलावादियों के आनंद का विस्तार हो या सौंदर्यवादियों के सौंदर्य की सृष्टि, दोनों ही जीवनानुभूति से अलग नहीं है। कलानुभव भी तो जीवनानुभव ही है। कोई जीवन से अलग तो नहीं। इस आधार पर रिचर्ड्स का कला का प्रयोजन मानवीय मनोयोगों में सामरस्य और संतुलन स्थापित करना है।


रिचर्ड्स काव्य का प्रयोजन “आवेगों की शांति” मानते थे। मतलब आवेगों की संतुष्टि। इस तरह उन्होंने कलावादी दृष्टि का खंडन किया। उनके अनुसार आनंद नाम की कोई वस्तु है ही नहीं। रिचर्ड्स ने मूल्य सिद्धांत की स्थापना की। उनका कहना था काव्य का चरम मूल्य है – कलात्मक परितोष और भाव परिष्कार। कला तो जीवन का ‘पुनः-सृजन’ करती है।


टी.एस. एलियट ने मैथ्यू आर्नल्ड की नैतिकतावाद की आलोचना की। खुद को क्लासिसिष्ट कहते हुए उन्होंने स्वच्छंदतावाद का भी विरोध किया। दरअसल एलियट की दृष्टि रोमांटिक थी। वे मानते थे कि काव्य का प्रयोजन लोक-अभिरुचि को सुधारना है, उसे परिष्कृत करना है। उनका यह भी मानना था कि हर शब्द की अपनी सर्जनात्मकता होती है। साथ ही इसकी आलोचनात्मक मनोवृत्ति भी होती है।


एलियट के अनुसार जहां एक ओर काव्य का उद्देश्य कलाकृतियों का विशदन और रुचि परिष्कार है, वहीं दूसरी ओर इसका उद्देश्य साहित्य का बोध और आस्वाद भी है।

आई.ए. रिचर्ड्स (1893-1979) The Meaning of Meaning (with C. K. Ogden), Science and Poetry (1926), Practical Criticism (1929),

टॉमस स्टर्न्स एलियट (1888-1965) Prufrock (1917), Four Quartets (1943), The Waste Land (1922), In Ash Wednesday(1930), Murder in the Cathedral (1935), The Family Reunion (1939), Eliot of Notes towards the Definition of Culture(1948) The Cocktail Party(1949), The Confidential Clerk (1954), and TheElderStatesman(1959)

11 टिप्‍पणियां:

  1. रिचर्ड्स ठीक ही कहते हैं कि आनंद नाम की कोई चीज़ है ही नहीं। जिसे अनुभूति होगी,वही तो जानेगा।

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  2. आभार आपका..मैथ्यू आर्नॉल्ड (हालाँकि उनका अखाली जिकिर है) अऊर टी एस इलियट के बक्तव्य प्रस्तुत करने के लिए. दू अलग अलग कबियों का बिचार जानने को मिला.. रिचर्ड्स अऊर इलियट से मिलाने अऊर कबिता का परिभासा से परिचित कराने के लिए आभार पुनः!!

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  4. काव्य आवेगों की शांति ...सच ही तो कहा है ...

    आज की प्रस्तुति बहुत पसंद आई ...यह श्रंखला बहुत कुछ जानकारी दे रही है ..आभार

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  5. मुझे तो काव्य आवेगों की शान्ति और उससे उपजा आनन्द दोनो ही लगते हैं। बहुत अच्छी जानकारी । धन्यवाद।

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  6. काव्य प्रयोजन का हर अंक नवीन जानकारियाँ देता है । अत्यंत सुलझी हुई रचना । अगली कड़ी का इंतजार रहेगा ।

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  7. हिंदी का प्रचार करता हुआ भारत का नक्शा बहुत खूबसूरत लग रहा है । आज का शब्द भी ज्ञानवर्धक है ।

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  8. अच्छी एवं जानकारीयुक्त रचना ।

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  9. जानकारी अच्छी लगी .
    इसमें कही गई बातों से
    मैं सहमत हूँ .

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  10. जब आवेग शांत होंगे तो आनंद तो होगा ही । आपका आभार कि आपने इन विद्वानों के मतों से अवगत कराया । अगली कडी का इन्तज़ार है ।

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