गुरुवार, 1 सितंबर 2011

आज प्रथम गाई पिक पंचम


निराला की कविता-3
आज प्रथम गाई पिक पंचम
आज प्रथम गाई पिक पंचम
गूँजा है मरु विपिन मनोरम। 

मरुत-प्रवाह, कुसुम-तरु फूले,
बौर-बौर पर भौंरे झूले,
पात-पात के प्रमुदित झूले,
छाई सुरभि चतुर्दिक उत्तम।

आँखों से बरसे ज्योति-कण,
परसे उन्मन - उन्मन उपवन,
खुला धरा का पराकृष्ट तन
फूटा ज्ञान गीतमय सत्तम।

प्रथम वर्ष की पांख खुली है,
शाख-शाख किसलयों तुली है,
एक और माधुरी चली है,
गीत-गंध-रस-वर्णों अनुपम।

10 टिप्‍पणियां:

  1. अनुपम कविता पढ़वाने के लिए आभार ...मनोज जी ..

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  2. वाह मनोज जी बेहतरीन प्रस्तुति . साहित्य सेवा हेतु बधाई

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  3. निराला तो बस निराला ही हैं

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  4. निराला जी की सुन्दर रचना पढवाने का आभार

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  5. श्री गणेश उत्सव पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं...

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  6. वाह उत्तम रचना पढवाने के लिये आभार्।
    विघ्नहर्ता विघ्न हरो
    मेटो सकल क्लेश
    जन जन जीवन मे करो
    ज्योति बन प्रवेश
    ज्योति बन प्रवेश
    करो बुद्धि जागृत
    सबके साथ हिलमिल रहें
    देश दुनिया के नागरिक

    श्री गणेशाय नम:……गणेश जी का आगमन हर घर मे शुभ हो।

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  7. वाह! हमे आदरणीय मनोज जी द्वारा अच्छे अच्छे साहित्यकारों के बारे मे, प्रसिद्ध कवियों की रचनाओं को पढ़ने यहीं मिल जाता है…।वे सचमुच साधुवाद के पात्र हैं…आभार…।

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  8. अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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