मंगलवार, 13 सितंबर 2011

हमारी हिंदी

रघुवीर सहायरघुवीर सहाय की कविताएं –5

हमारी हिंदी

हमारी हिंदी एक दुहाजू की नयी बीबी है
बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली

गहने मढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ

वह मुटाती जाये
पसीने से गन्धाती जाये घर का माल मैके पहुंचाती जाये

पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को लेकर लड़े

घर से तो खैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
औरतों को जो चाहिए घर ही में है

एक महाभारत है एक रामायण है

तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है जिसके प्राण अकच्छ किये जा सकें
एक गुचकुलिया-सा आंगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिये कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फर्श पर ढंनगते गिलास
खूंटियों पर कुचैली चादरें जो कुएं पर ले जाकर फींची जायेंगी

घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पांच सेर सोना भी
और संतान भी जिसका जिगर बढ़ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और जमीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा

कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे।

10 टिप्‍पणियां:

  1. सोचने पर मजबूर करती प्रस्तुति ..कटु सत्य है

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  2. कमाल का सच.. नंगा सच और सच की ऐसी शब्दावलि.. असंभव.. स्तब्ध करती है और हिन्दी की अवस्था पर करारा व्यंग्य भी करती है!!
    एक महान कवि की महान रचना!!

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  3. हिंदी की नग्न हकीकत . एक झन्नाटेदार तमाचे की तरह कविता

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह! सटीक और सार्थक

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  5. सटीक प्रस्तुति...वाह!

    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...

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  6. और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
    तब तो वह अपनी साध पूरी करे।...
    व्यंग्य में भी सीख है!
    आभार!

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  7. सार्थक व सटीक लेखन ...प्रस्‍तुति के लिये आभार

    । हिन्‍दी दिवस की शुभकामनाएं ।

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