रविवार, 16 मई 2010

लड़की

लड़की

clip_image002

हरीश प्रकाश गुप्त, हिन्दी अनुवादक

आयुध उपस्कर निर्माणी, कानपुर

 

acd_wallpaper लड़की

खेलती है गली में

नुक्कड़ में,

बच्चों के साथ,

उसे छूट है

खेलने की ।

Picture 062 लड़की खेलती है

गुड्डे और गुड़िया से

सजाती और शृंगार करती है

फिर कराती है

शादी दोनों की ।

Picture 092 लड़की बनाती है

घरौदा-

मिट्टी का,

अपने मकान के एक कोने में-

एक घर,

रंगती है

पोतती है

सजाती है

बिठा देती है उसमें

गुड्डे और गुड़िया को ।

Picture 113 लड़की बड़ी होती है

अब नहीं खेलती

गुड्डे और गुड़िया से

घरौंदे से,

उसकी बड़ी समझ में

अब

इनकी कोई जरुरत नहीं,

उसका बनाया घरौंदा

अब भी खड़ा है-

भर दी जाती हैं

उसमें आलू, प्याज और सब्जियाँ

8 टिप्‍पणियां:

  1. हरिश जी की एक और अच्छी कविता.धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  2. आज अक्षय त्रितिया है। और इस प्रान्त मे गुड्डी गुड्डो की शादी आज के दिन कराने का रिवाज है। इस मौके पर लिखी गई इस कविता के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत संवेदनशील रचना....एक लडकी की जिंदगी उतार दी है शब्दों में

    जवाब देंहटाएं
  4. इस कविता की व्याख्या नहीं की जा सकती । कोई टीका नहीं लिखी जा सकती । सिर्फ महसूस की जा सकती है । इस कविता को मस्तिस्क से न पढ़कर बोध के स्तर पर पढ़ना जरूरी है – तभी यह कविता खुलेगी ।

    जवाब देंहटाएं

आप अपने सुझाव और मूल्यांकन से हमारा मार्गदर्शन करें