मंगलवार, 18 मई 2010

चिठियाना टिपिआना वाद-विवाद .... आंखों देखा हाल .... लाईव फ़्रॉम ब्लॉगियाना मंच ---- कमेंटेटर -- छदामी लाल और खदेरन

चिठियाना टिपिआना

वाद-विवाद

.... आंखों देखा हाल

.... लाईव फ़्रॉम

ब्लॉगियाना मंच --

कमेंटेटर -- छदामी लाल

और खदेरन

 

नमस्कार दोस्तों! मैं छदामी लाल आपका वेलकम करता हूँ। ब्लॉगियाना मंच पर आपका स्वागत है। अद्भुत, अनोखा और अभूतपूर्व खेल यहां खेला जाने वाला है। हम सब उस ऐतिहासिक घड़ी का गवाह बनेंगे। सामने मंच पर अभी हरा पर्दा पड़ा हुआ है जो कुछ ही क्षणों में उठेगा और आज की कार्रवाई शुरु हो जाएगी।

मैं खदेरन आपको नमस्कार करता हूं। मंच के ठीक सामने दो सोफा लगे हैं जिस पर मुख्य अतिथि बस पधारने ही वाले हैं। पीछे श्रोताओं के खड़े होने का इंतज़ाम किया गया है। पूरा दर्शकदिर्घा खचाखच भरा हुआ है। दोनों मुख्य अतिथियों के समर्थकों के लिए हॉल के दोनों ओर दो शामियाने लगे हुए हैं। अभी उसमें कोई खास चहल-पहल नहीं है। छदामी मैं पीछे देख रहा हूं कि मुख्य द्वार से कोई पूरे आराम से चहलकदमी करते हुए आ रहा है। आप कुछ कहना चाहेंगे उनके बारे में।

जी हां खदेरन। ये हैं आज के पहले मुख्य अतिथि चिठियाना।

चिठियाना … कौन चिठियाना?

खदेरन जी इनकी अलमस्त चाल पर नहीं जाइए, ये हमारे ब्लॉगियाना मंच के बहुत पुराने और पहुंचे हुए खिलाड़ी हैं! हां थोड़ा आराम तलबी हैं पर एक बार खेल शुरु हुआ नहीं कि एक से एक धांसू आइडिआ फेंक देते हैं और सारा ब्लॉगियाना उसे पकड़ते-जकड़ते, खांसते-बांचते रहते हैं।

ओह! पर उस दूसरे गेट से कौन आ रहा है?

वो हमारे दूसरे मुख्य अतिथि हैं टिपियाना।

छदामी जी उनके बारे में भी हमारे श्रोताओं को कुछ बताइए।

अरे! खदेरन जी ये तो बड़े ही प्रसिद्ध खिलाड़ी हैं। न सिर्फ़ सारा ब्लॉगियाना इनके ऊपर फ़िदा है बल्कि ये भी अपने प्यार से सबको सम्मोहित किए रहते हैं। सबके घर जा-जा कर उनसे गले मिलते हैं, दिल से उन्हें चाहते हैं, अपना हाल-चाल सुनाते हैं और उनकी खोज-खबर लेते रहते हैं!

हूं! अभी मैं देख रहा हूं कि दोनों ने अपना-अपना स्थान ग्रहण कर लिया है। दोनों के चेहरे पर प्रसन्नता भी है, गाम्भीर्य भी। उनका आपस में बतियाना ज़ारी है। उधर मंच से पर्दा धीरे-धीरे उठ रहा है और वहां पधार रहे हैं आज के कार्यक्रम के संचालक। हालाकि इस कर्यक्रम का आयोजन भी उन्होंने ही किया है। उन्होंने घोषणा करनी शुरु कर दी है। बता रहे हैं कि विद्वानों, सुधि जनों और बुद्धिजीवियों की इस सभा में एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया है।

इस वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है कौन है नम्बर वन – चिठियाना या टिपियाना? लोग अपने विचार या तो विषय के पक्ष में या फिर विपक्ष में रख सकते हैं। पर ये मैं क्या देख रहा हूँ? ज्यों ही विषय का ऐलान हुआ, हॉल में मौज़ूद ब्लॉगियना दो दलों में बंट गये हैं। एक दल चिठियाना शामियाने की ओर देख कर बढ-बढ़ कर, चढ़-चढ़ कर आवाज़ लगा रहे हैं। तो वहीं दूसरा दल टिपियाने की ओर देख कर बढ-बढ़ कर, चढ़-चढ़ कर आवाज़ लगा रहे हैं।

छदामी जी क्या इसी को कहते हैं वाद और विवाद?

जी हां खदेरन जी आप देख ही रहे हैं एक तरफ़ है वाद और दूसरी तरफ़ है विवाद। और … और … बीच में … बीच में

छदामी जी! बीच मे फंस गया है संवाद। जी हां दोस्तों, कुछ .. कुछ तीव्र बुद्धि वाले ब्लॉगियाना ने तटस्थता की स्थिति बना रखी है, और वे संवादहीनता की दिव्य भावना से ग्रस्त हैं। अब आगे का हाल छदामी जी बताएंगे।

हां दोस्तों! दोनों खेमा अपने-अपने शामियाने में समा, ..  नहीं जमा हो चुके हैं। बीच में बुद्धिमान श्रोता वर्ग है जो इस पूरे आयोजन को बड़े मनोयोग से देख रहा है। वाद-विवाद अपने पूर शवाब पर है। दोनों तरफ़ से तर्कों का एक-से-बढ़कर शब्द वाण फेंके जा रहे हैं। ऐसा रंग जमा है कि देखते बनता है। यहां तक कि अब मुख्य अतिथि भी अपने आप को रोक नहीं पा रहे हैं। खदेरन जी बिल्कुल उनके पास पहुंच गये हैं और वहीं से बता रहे हैं … …

मैं मंच के सामने हूँ और देख रहा हूं कि मुख्य अतिथि का आपस में बतियाना बंद हो चुका है। वे अब सोफ़े पर से उठ चुके हैं और अपने-अपने तंबू की और जमा अपने समर्थकों से शांत होकर वार्तालाप करने की अपील कर रहे हैं। उन्हों ने भोंपू भी पकड़ रखी है। दोनों अपने अपने विचारों का प्रासार भोंपू से कर रहे हैं। उधर क्या हाल है छदामी जी?

खदेरन जी इधर का हाल तो पूरा बेकाबू है। श्रोताओं ने अपने-अपने पक्ष का न सिर्फ़ ज़ोर-शोर से प्रचार किया बल्कि अपने नेता से सामने आकर उनके समर्थन में कुछ कहने का आग्रह भी किया है। खदेरन जी मैं देख रहा हूं उधर मंच की तरफ़ कुछ हलचल है।

जी हां छदामी जी! इधर मंच पर चिठियाना आ चुके हैं और उन्होंने एक लंबा भाषण दे डाला है।

क्या कहा है उन्होंने?

चिठियाना ने काफ़ी लंबा वक्तव्य रखा है। उसका सारंश यही है कि इस ब्लॉगियना में पहले वो आये हैं। उनका अस्तित्व सबसे ऊपर है। वो हैं तो टिपियाने की ज़रूरत पड़ती है। इसलिए चिठियाना बड़ा है। उधर का आप बताएं छदामी जी।

इधर तो हलचल और बढ़ गई है। टिपियाना पक्ष भी टिपियाना से पुरज़ोर अपील कर रहा है कि इधर से भी वक्तव्य रखा जाए और ये क्या टिपियाना भी मंच की तरफ़ प्रस्थान कर गये हैं। खदेरन जी ज़रा मंच से हाल बताएं।

छदामी जी मंच से टिपियाना ने ऐलान किया है कि बिना टिपियाने के द्वारा स्तुति गायन के चिठियाना की हैसियत दो कौड़ी का है। इसलिए टिपियाना बड़ा है।

खदेरन जी इस बयान के आ जाने के बाद दोनों पक्ष के समर्थक एक-दूसरे पर फिर से पिल पड़े हैं। स्थित्ति हाथ से बाहर जाते दिख रही है।

छदामी जी इधर मंच पर मैं देख रहा हूं कि चिठियाना और टिपियाना दोनों एक दूसरे से बतियाने में मशगुल हैं।

खदेरन जी दोनों को बतियाते देख इधर समर्थक एक बार फिर से अपने-अपने तंबू में चले गए हैं।

अच्छा! छदामी जी लगता है इस स्थिति से प्रफुल्लित हो चिठियाना और टिपियाना ने अपना-अपना पैंतरा बदल लिया है। चिठियाना ने मंच से टिपियाना के सम्मान में आरती गाना शुरु किया है। जय टिप्पा भैया, तुम सबके रक्षक, पार लगओ नैया। जय टिप्पा भैया। उनकी आरती गायन की समाप्ति पर टिपियाना की तरफ़ से ज़ोरदार तालियों की आवाज़ आई है। अब टिपियाना ने चिठियाना को माला पहनाया और फिर भजन गाया है त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देवः। और कहा है हम तो आपके शागिर्द हैं जी, बच्चे के समान हैं।

खदेरन जी इस हार्दिक मिलन के अवसर पर दोनों पक्ष के समर्थक हतप्रभ हैं। ठगे से महसूस कर रहे हैं। और जो तटस्थ दर्शक थे लुटे-पिटे अपने-अपने रास्ते लौट रहे हैं

हां छदामी जी, आख़िर दोनों पक्षों की वार तो वो ही झेल रहे थे।

पर खदेरन जी मैं देख रहा हूं, इस वाद-विवाद के आयोजक मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं।

छदामी जी ये क्या? चिठियाना तो अपनी क़ीमती गाड़ी में आराम से लेटकर इस स्थान से प्रस्थान कर गये हैं।

हां खदेरन जी। टिपियाना भी अपनी गाड़ी में बैठ चुके हैं और उनकी गाड़ी देखते ही देखते हवा से बातें करने लगी है।

बुद्धिजीवी ब्लॉगियाना वर्ग किं-कर्त्व्यविमूढ़ है।

आयओजक ने पर्दा गिरा दिया है।

पटाक्षेप

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नेपथ्य से आवाज़ आती है -- “नाटक अभी बाक़ी है दोस्तों!”

दृश्य परिवर्तन

समय – गोधूलि

स्थल – ब्लॉगियाना सितारा होटल

पात्र – चिठियाना, टिपियाना, और आयोजक-संचालक।

क्रिया कलाप --

ठंढ़े पेय पदार्थों के बीच गंभीर किंतु सहज ढ़ंग से विचारमग्न! तीनों मान रहे हैं कि आयोजन सफल रहा। सफल नहीं “हिट!!!” अब उन्हें तीन बातों का निर्णय लेना है

१. ब्लॉगियाना उथल-पुथल को कौन सी दिशा दी जाए?

२. अगले वाद-विवाद की तिथि का निर्धारण।

३. इस बार संचालन की भूमिका कौन निभाएगा?

(बत्ती धीरे-धीरे डिम होती जाती है!)

अंधेरा गहराता जाता है।

पूर्ण प्रकाश। मंच पर कोई नहीं है।

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