गुरुवार, 20 मई 2010

हाइकू :: हरीश प्रकाश गुप्त

J0341653 भरा उदधि

हुआ मधु विस्‍फोट

फूटी कविता ।

उतर गई

अन्‍तस में, नैनन

पढ़ कविता ।

मेरी कविता

मेरे मन का गीत

सुर संगीत।

रात निठल्‍ली

सोई, दिन ने थक

बेबस ढोई ।

अचल बिंदु

के इर्द-गिर्द घूम

रहा बेसूध ।

गली-गली में

घूमा, ठहरा, सोचा

लेकिन कहॉं?

कुत्ता ले भागा

रोटी, नुक्‍कड़ वाले

भिखमंगे की ।

दरक गया

शीशे-सा जब देखा-

सच, सपना

शीशे में देखा

चेहरा, अपना या

कुछ उनका ।

गली में शाम

नुक्‍कड़ में रोशनी

मीना बाजार ।

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